नया साल और नये सवाल पर गोष्ठी की रपट
‘सब हिमालयन रिसर्च इंस्टिट्यूट’ और ‘सबलोग’ के बैनर तले 25 जनवरी 2025 को हुई ऑनलाइन गोष्ठी की रपट
विगत 25 जनवरी को ‘सब हिमालयन रिसर्च इंस्टिट्यूट’ (श्री) और ‘सबलोग’ के बैनर तले ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह गोष्ठी सबलोग के जनवरी अंक के विषय: ‘नया साल और नये सवाल’ पर केन्द्रित थी। सब हिमालयन रिसर्च इंस्टिट्यूट’ के प्रतिनिधि डॉ. रमन ने उपर्युक्त विषय पर उपस्थित वक्ताओं के परिचय से गोष्ठी की शुरूआत की। उन्होंने सबलोग पत्रिका द्वारा बौद्धिक विमर्श को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए कहा कि आज के समय में नीति, नैतिकता और प्रौद्योगिकी के अन्तर्सम्बन्धों को समझना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
वक्ताओं के परिचय के बाद सबलोग के संयुक्त संपादक श्री प्रकाश देवकुलिश ने सबलोग के इस अंक में प्रकाशित लेखों का सार प्रस्तुत किया और बहस के मुख्य बिंदुओं को सामने रखा। उन्होंने बताया कि बाजार की आक्रामकता, प्रतिरोध और प्रतिपक्ष को निगलने की कोशिशें, क्रय शक्ति के आधार पर सम्बन्धों का निर्धारण, नफरत का वातावरण – ये आम चिंताएँ हैं। उन्होंने इन लेखों की अन्तर्दृष्टियों तथा पैनल के दृष्टिकोणों के बीच समानता पर बल दिया। क्रोनी कैपिटिलिज्म और तेजी से बढ़ती तकनीकी चुनौतियों से निपटने की सामयिक जरूरत पर जोर देते हुए श्री देवकुलिश ने ग्रामीण सशक्तिकरण और सतत विकास के महत्व को दुहराया और इन मुद्दों को व्यापक भू-राजनीतिक सन्दर्भों से जोड़ा।
विषय प्रवेश पर अपनी बातें रखते हुए प्रो. मणीन्द्र नाथ ठाकुर ने भारतीय एवं वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में उपजे सवालों से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि राज्य का स्वरूप बदल रहा है। सरकार जनता को धर्म और विकसित टेक्नोलॉजी के खूँटे से बाँध रही है। समझने की जरूरत है कि क्या अमेरिका में ट्रंप द्वारा लोगों को समूह में देश से बाहर निकालना नये वर्ष में कोई नया संकेत दे रहा है।
शासन और प्रौद्योगिकी प्रभाव पर विशेषज्ञता रखने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो.. सुधीर कुमार सुथार ने तेजी से विकसित होती प्रौद्योगिकी और उसके मानव संज्ञान और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने तर्क दिया कि तकनीकी प्रगति मानव के संज्ञानात्मक क्षमताओं के मुकाबले अधिक तेजी से आगे बढ़ रही है, जिसके अनपेक्षित नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। उनकी चिंताएं रोजगार, बुनियादी ढांचे, बाजार की गतिशीलता और राजनीतिक संरचनाओं से जुड़ी हुई थीं। प्रो.. सुधीर ने इन परिवर्तनों के बीच बौद्धिक स्वायत्तता को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और स्वाभाविक जटिलता का ध्यान रखते हुए मौलिक दार्शनिक प्रश्नों पर फिर से ध्यान केन्द्रित करने का आह्वान किया।
साहित्यकार सुनीता सृष्टि ने शिक्षा और अकादमिक जगत की सामाजिक विमर्श में भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने पारम्परिक ज्ञान प्रणालियों के पुनर्मूल्यांकन और आधुनिक तकनीकी प्रगति के साथ संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर अपनी बात रखते हुए तकनीक के कारण साहित्य में आए बदलाव और मूल्यों के ह्रास की ओर संकेत किया।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त अध्यापक और विख्यात समाजशास्त्री प्रो.. आनंद कुमार ने वैश्विक विकास लक्ष्यों, अन्तरराष्ट्रीय राजनीति और दक्षिण एशियाई क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थितियों की ओर ध्यान दिलाते हुए सतत विकास लक्ष्यों (SDG’s) और बहुराष्ट्रीय निगमों की बढ़ती भूमिका पर प्रकाश डॉ.ला। उनकी चिन्ता में यह शामिल रहा कि कैसे आज के समय के संकट और संभावनाओं के बीच सेतु निर्माण का उद्यम सम्भव किया जा सकता है।
प्रश्नोत्तर काल में वरिष्ठ मीडियाकर्मी श्री धीरंजन मालवे ने प्रमुख देशों द्वारा पर्यावरण की अनदेखी पर चिन्ता जतायी और बताया कि इस तरह विश्व ने धरती की मौत की घोषणा कर दी है। दर्शन शास्त्र के वरिष्ठ अध्येता श्री आलोक टंडन ने समस्याओं के मौलिक समाधान की बात की।
बैठक का समापन अध्यक्ष प्रो.. रत्नेश्वर मिश्रा के वक्तव्यों के साथ हुआ। उन्होंने समावेशी नीति-निर्माण और समकालीन चुनौतियों के समाधान में अन्तरविषयक अनुसन्धान की भूमिका के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने विद्वानों से लोकतंत्र, नैतिक शासन और तकनीकी युग में बौद्धिक स्वायत्तता के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए आगे भी ऐसे बौद्धिक आयोजन को और लोगों तक ले जाने का आह्वान किया। समाज को और सुन्दर, बेहतर करने के ‘सबलोग’ के वर्षों के उद्यम की उन्होंने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की और इस पर अफसोस जाहिर किया कि उन्हें इसकी खबर ही नहीं थी। सम्पादक श्री किशन कालजयी के समर्पण और श्रम के प्रति साधुवाद ज्ञापित करते हुए प्रो.. रत्नेश्वर मिश्र ने पत्रकारिता की साख को बनाए रखने में इस पत्रिका के योगदान को महनीय बताया।
गोष्ठी में सबलोग के सम्पादक किशन कालजयी, सेवाराम त्रिपाठी, अमनदीप, बसंत हेतमसरिया, मृत्युंजय श्रीवास्तव, प्रो.. मंजु रानी सिंह, डॉ. रत्नेश सिन्हा, चेतन कश्यप, प्रमोद कुमार झा तथा दुनिया के अन्य हिस्सों के लोगोँ समेत लगभग सौ लेखक, संस्कृतिकर्मी और बुद्धिजीवी शामिल हुए।
गोष्ठी को आप नीचे देख सकते हैं।
.
.