कोरोना बन्दी के सांस्कृतिक योद्धा
- यादवेन्द्र
पूरी दुनिया में कोविड 19 की चपेट में आने पर सम्भावित मानव विनाश के मद्दे नजर अन्य गतिविधियों के साथ साथ सांस्कृतिक गतिविधियाँ महीनों से पूरी तरह ठप पड़ी हुई हैं – औद्योगिक कामकाज तो नए ढंग से करने के लिए मानव जाति कमर कसती मालूम हो रही है पर (यदि फिल्मों को कुछ रियायत दी जा सके तो) मंच आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तो सामूहिक साझेपन के बगैर कल्पना करना भी सम्भव नहीं है। यूरोप के कुछ नाट्य समूहों ने महीनों से बन्द पड़े मंच पर दिन रात एक लाइट जलाये रख कर दर्शकों को यह प्रतीकात्मक संदेश दिया है कि हम काम काज बन्द नहीं कर रहे हैं , जल्दी लौट कर नए नाटक के साथ आपके बीच होंगे।
इन डरावनी खबरों के बीच जर्मनी से एक सकारात्मक संदेश आया है कि सख्त सोशल डिस्टेंसिंग नियमों के बीच एक थियेटर ग्रुप भूमिगत कार पार्किंग में नाटक कर रहा है – उससे बड़ी और खास बात यह है कि नाटक के केंद्र में कोविड 19 से भी भयावह स्वास्थ्य सम्बन्धी डर पैदा करने वाला निरंकुश तानाशाही तन्त्र है …. और उसे अंगूठा दिखाने वाले विचारवान और दृढ प्रतिज्ञ युवा भी। भले ही यह नाटक 2043 के जर्मनी की बात करे पर वर्तमान महामारी की आड़ में दुनिया भर में (भारत सहित) नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को बड़े शातिर तरीके से चीन जा रहा है और सर्वसत्तावादी अवसर का भरपूर फ़ायदा उठाया जा रहा है।
मैं अपने भले के बारे में जितना जानता हूँ, राष्ट्र मुझसे बेहतर जानता है
“सत्ता को समय-समय पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए उदाहरण देना जरूरी लगता है, खासतौर पर तब जब अन्दर से इसका अपने पर से विश्वास डगमगाने लगता है।”
“यदि हम एक दिन के लिए भी सुरक्षा और सफाई का काम करना सामूहिक रूप से रोक दें तो महामारी को हमें गिरफ्त में लेने में कुछ हफ्तों का समय भी नहीं लगेगा।”
“मैं अपना भरोसा उस राष्ट्र से प्राप्त करता हूँ जो खुद मुझसे बेहतर जानता है कि मेरे लिए अच्छा क्या है, भला क्या है।”
(“द मेथड” के उद्धरण)
जूली जेह 1974 में जन्मी जर्मन वकील और लेखक हैं। उनके कई उपन्यास और अन्य विधाओं में किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से कुछ को जर्मनी के प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों से नवाजा गया है। दुनिया की करीब 30 भाषाओं में उनकी किताबों के अनुवाद हुए हैं और वर्तमान और भविष्य की सम्भावित राजनीति पर उनकी विशेष नजर रही है और अनेक सामाजिक मुद्दों पर वह अपनी कलम से बेहद मुखर होकर बेवाक राय व्यक्त करने से घबराती नहीं हैं। 2007 में एक थिएटर फेस्टिवल के लिए उन्होंने एक नाटक लिखा था अंग्रेजी में जिसका शीर्षक “द मेथड” था।
वह नाटक की प्रबुद्ध जगत में जितनी चर्चा हुई उसे देखते हुए उन्होंने दो वर्ष बाद इसी स्क्रिप्ट को आधार बना कर इसी शीर्षक से अपना उपन्यास लिखा जिसके बारे में कहा गया कि वैसे तो यह 2043 के जर्मनी (भविष्य) की बात करता है पर यह असल में हमारे आज की कहानी है । इस उपन्यास में वे यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि यदि कोई नेक विचार भी तानाशाही तरीके से समाज पर थोपा जाए तो स्थिति कितनी विडम्बनापूर्ण और भयावह हो सकती है।
“आप इतिहास की किताबें उठाकर देख लीजिए – हर कोई आप को बुखार, पीठ के दर्द या बदहजमी की शिकायत करता हुआ मिल जाएगा। इसकी वजह यह रही कि उन सबों को अपनी ओर ध्यान खींचना था, जिसकी दरअसल कोई दरकार नहीं थी। शारीरिक रोग और व्याधि बातचीत के सबसे बड़े और गंभीर मुद्दे बन गये` थे…डॉक्टर के यहाँ जाना एक राष्ट्रीय खेल जैसा बन गया था। ऐसा लगता था कि यदि आपको कोई बीमारी नहीं है तो आप जीवित नहीं है क्योंकि बीमारी आपके अस्तित्व का प्रमाण बन गयी थी।” (उपन्यास का उद्धरण) ……
इन सब दुर्बलताओं को सुधार कर जो नई दुनिया निर्मित की गयी उसके वाहक के रूप में ‘ मेथड ‘ के नियामक सिद्धान्त गढ़े गये`। जूली जेह की नई दुनिया में शारीरिक स्वास्थ्य सबसे बड़ा क्या एकमात्र राजनीतिक गुण माना जाने लगा, बीमारी को अश्लील घोषित कर दिया गया और शासन द्वारा निर्धारित सावधानियाँ बरतने में किसी तरह की ढील ढाल को कानूनन अपराध घोषित कर दिया गया।
स्वास्थ्य केन्द्रित शासन के नियामक सिद्धान्त
- स्वास्थ्य सिर्फ कमजोरी या बीमारियों की अनुपस्थिति को नहीं कहते बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण और क्षेम की संपूर्ण अवस्था है।
- स्वास्थ्य प्रत्येक अंग और कोशिका के माध्यम से शरीर के अन्दर जीवन का सतत और अवरोध मुक्त प्रवाह है।
- स्वास्थ्य शरीर और मन की समरसता है जिसके कारण जैविक ऊर्जा बगैर किसी अड़चन या रोक के सर्वोच्च शिखर तक पहुँच सकती है।
- पूर्ण रूप से स्वस्थ शरीर अपने आसपास के पर्यावरण के साथ सकारात्मकता के साथ अतः क्रिया करता है।स्वस्थ मनुष्य खुद को स्फूर्त, सबल और सक्षम अनुभव करता है।
- स्वास्थ्य कोई स्थैतिक प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह शरीर और मस्तिष्क के बीच गत्यात्मक सम्बन्ध बनाता है। स्वास्थ्य को दैनिक आधार पर सालों और दशकों तक सँभाल कर ही नहीं रखना चाहिए बल्कि इसमें निरंतर सुधार करते रहना चाहिए,लगातार बुढ़ापे तक।
- स्वास्थ्य सिर्फ़ सांख्यिकीय औसत नहीं है बल्कि वर्तमान प्रभाव को निरंतर बढ़ाते जाने वाली कसौटी है – व्यक्तिगत उपलब्धि का अधिकतम सम्भावित स्तर है। यह हमारी इच्छा शक्ति का प्रत्यक्ष स्वरूप है,हमारे संकल्पों का स्थायी स्मरण चिह्न।
- स्वास्थ्य वह ऊँचाई है जहाँ हम व्यक्ति रूप में स्वाभाविक रूप से पहुँचने की इच्छा रखते हैं इसीलिए यह हमारे समाज, राजनीति और कानून का कुदरती ध्येय भी है। यदि हम स्वास्थ्य के लिए उद्यम करने में ढिलाई बरतने लगेंगे तो यह नहीं कि हम बीमारी के खतरों से घिरने लगेंगे बल्कि मान लीजिए हम बीमार हो चुके हैं।
जर्मनी की एक थिएटर कंपनी ड्यूश थियेटर ने इस संकट काल में नाटक “द मेथड” करना शुरू किया जो किसी हॉल में नहीं बल्कि भूमिगत कार पार्क में दर्शकों को आमन्त्रित कर किया गया। जर्मनी में लागू सोशल डिस्टेंसिंग के सख्त कानूनों के कारण पारम्परिक स्टेज पर ऐसे कार्यक्रम करना सम्भव नहीं है इसलिए भूमिगत कार पार्क को चुना गया। सभी आमन्त्रित – हालाँकि उनकी संख्या सीमित रही – दर्शक अपनी कार के अन्दर खिड़की के शीशे बन्द कर के बैठे रहते हैं इसलिए एक दूसरे के बीच किसी तरह के शारीरिक सम्पर्कित की सम्भावना नहीं रहती। अभिनेता बाहर अपना काम करते हैं और उनके संवाद और पृष्ठभूमि की ध्वनि विशेष प्रबंध कर के सीधे कार के अन्दर पहुँचाई जाती है जिससे दर्शकों के साथ ज्यादा से ज्यादा आत्मीय सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।
यह अलग बात है कि यह रिश्ता एकॉस्टिक्स के माध्यम से जोड़ने की कोशिश की जा रही है जिसका अभ्यास न तो दर्शकों को है और न ही नाटक टीम को । थियेटर के मैनेजर एरिक सिडलर ने एक इंटरव्यू में बताया कि हमने यह नाटक खास तौर पर इस लॉक डाउन के लिए ही चुना क्योंकि नाटक की थीम और हमारे आसपास जो कुछ भी हो घटित हो रहा है उस वर्तमान में बहुत समानता है। वे कहते हैं कि दर्शकों से जुड़ने की हमारी हर सम्भव कोशिश के बाद भी हमारा मकसद पूरा हो नहीं पाता और हमारे सामने बड़ी चुनौती भौतिक दूरी को पार कर के मानवीय अन्तरंगता प्राप्त करने की रहती है जिसकी गुंजाईश वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बिलकुल खत्म हो गयी है।
मिया होल एक युवा और अनुशासित जीव विज्ञानी है दुर्भाग्य से जिसकी दुनिया में अपने भाई मोरित्ज होल को छोड़ कर किसी अन्य के साथ दोस्ती नहीं है। वह पूरी तरह से इस बात से आश्वस्त है कि शासन द्वारा खड़ा किया गया नियामक तन्त्र उसके लिए और सम्पूर्ण समाज के भले के लिए है और निर्विकल्प भी। अचानक एक दिन उसके भाई मोरित्ज को किसी स्त्री के बलात्कार और हत्या का दोषी करार दिया जाता है – एकमात्र वजह यह कि मोरित्ज के डी एन ए नमूने मृत स्त्री के शरीर पर पाए जाते हैं। मिया अपने भाई को इतनी अंतरंगता से जानती है कि किसी सूरत में आरोपों को मानने को राजी नहीं होती।
मोरित्ज के अपने बचाव के सभी तर्क जब अनसुने कर दिए जाते हैं तब वह गले में फाँसी लगा कर ख़ुदकुशी कर लेता है – जेल में उसे फंदा लगाने के लिए रस्सी मिया लाकर देती है। भाई के साथ हुए हादसे से वह उबर नहीं पाती और धीरे धीरे अपने प्रति लापरवाही बरतने लगती है …. शासन के स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की अवहेलना करने लगती है। उसे पहले तो चेतावनी दी जाती है पर वह मानती नहीं – भाई के साथ जिन जिन प्रतिबंधित जगहों पर जाती थी वहाँ जाने लगती है, सरकारी पाबन्दी के बावजूद सिगरेट पीने लगती है। पर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की बहाली के लिए संघर्षरत मिया होल का जबरदस्ती सबके ऊपर थोपे नियमों को ठेंगे पर रखने का यह बर्ताव बगावत माना जाता है।
देश में स्वास्थ्य तानाशाही के लिए जिम्मेदार मेथड का सिद्धान्तकार हेनरिक क्रेमर उससे कहता है : “मैं अपना भरोसा उस राष्ट्र से प्राप्त करता हूँ जो खुद मुझसे बेहतर जानता है कि मेरे लिए अच्छा क्या है, भला क्या है।” और मिया होल को भी ऐसा ही करने की चेतावनी देता है। न मानने पर उसपर मुकदमा चलाया जाता है जिसमें वैसे ही चिर परिचित आरोप लगाए जाते हैं जो हर निरंकुश सत्ता अपने वैचारिक विरोधियों पर लगाती है :
मिया होल (प्रतिवादी) पर लगाए गये` आरोप
प्रतिवादी मेथड विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने की दोषी पाई गयी :
*आतंकवादी प्रचार की साजिश
*अशांति और अव्यवस्था भड़काना
*जहरीले पदार्थों का गैरकानूनी सेवन
* स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए अनिवार्य जाँच पड़ताल में असहयोग
इस उपन्यास के पिछले आवरण पर किताब में उठाये सवालों के बारे में कहा गया है : इक्कीसवीं सदी के मध्य की चर्चा करता यह उपन्यास इन अनिवार्य व ज्वलंत प्रश्नों से सामना करता है : राष्ट्र कितनी हद तक व्यक्तिगत अधिकारों में कटौती कर सकता है ? नागरिकों के पास राष्ट्र की इस निरंकुशता का विरोध करने का कोई अधिकार है भी या नहीं ?
एक कानूनी ट्रायल के रूप में बुना गया यह उपन्यास बहुतेरे गहरे कानूनी सवाल उठाता है – जूली जेह स्वयं वरिष्ठ वकील हैं और संवैधानिक कोर्ट की जज रह चुकी हैं इसलिए उनके उठाये सवालों को हलके से नहीं लिया जा सकता और न ही नजर अंदाज किया जा सकता है। जूली जेह कहती हैं कि उनका यह नाटक किसी तरह की भविष्यवाणी नहीं करता पर जर्मनी की आज की वास्तविक स्थितियाँ बता रही हैं कि कोरोना महामारी का अनावश्यक भय दिखा कर नागरिकों की आज़ादी पर अंकुश लगाने के लिए दंडात्मक हथकंडे अपनाये जा रहे हैं।
संदर्भ :
www.dw.com/en/juli-zeh-the-method/a-45454332
www.theguardian.com/books/2012/apr/06/the-method-juli-zeh-review
edith-lagraziana.blogspot.com/2015/09/method-by-juli-zeh.html
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