प्रियदर्शन
-
Sep- 2024 -12 Septemberकविताघर
यह धुआँ कहाँ से उठता है?
जोशना बनर्जी आडवाणी की कविता को लेकर पिछले दिनों फेसबुक पर छिड़ा युद्ध बताता है कि किसी एक कविता के पाठ एक-दूसरे से किस हद तक भिन्न हो सकते हैं। एक समूह इसे कविता मानने को तैयार नहीं है,…
Read More » -
Aug- 2024 -24 Augustकविताघर
जो कविता से बड़ी कविताएँ होती हैं
मगर हिन्दी में लम्बी कविताओं की भी एक परम्परा है। बल्कि हिन्दी की परम्परा में जो महाकाव्य या खण्ड काव्य हैं, वे इतने लम्बे हैं कि उनसे पूरी किताब बन जाती है। मैथिलीशरण गुप्त की ‘साकेत’, जयशंकर प्रसाद की…
Read More » -
1 Augustकविताघर
लिफ्ट में एक खिड़की रहती थी
अगर आप तीन गुना पाँच फुट के आसपास की एक तंग जगह में लगभग दो दिन दो रात फँसे रहें, जिसमें खिड़की-दरवाजे तो दूर, साँस लेने की हवा आने भर कोई सूराख न हो, कोई आपकी बात सुनने वाला…
Read More » -
Jul- 2024 -3 Julyकविताघर
कविता का जो घर मुक्तिबोध बनाते हैं
कविता के घर का परिसर बहुत बड़ा होता है। इसमें सारी दुनिया समाई होती है। इसमें कई आवाजें बसती हैं। कुछ आवाजें हम बहुत आसानी से पहचान लेते हैं। कुछ आवाजें बड़ी सहजता से अपनी बात कह जाती हैं।…
Read More » -
Jun- 2024 -1 Juneकविताघर
जो कहा जाए, वह कैसे कहा जाए
भवानी प्रसाद मिश्र की एक कविता है- ‘यह तो हो सकता है’- जिसकी शुरुआती पंक्तियाँ कुछ इस तरह हैं- ‘यह तो हो सकता है कि / थक जाऊँ मैं पढ़ने-लिखने से / कवि की तरह दिखने से / अच्छा…
Read More » -
May- 2024 -8 Mayकविताघर
कविता में मौन की जगह
अज्ञेय की एक छोटी सी कविता है- छंद। वे लिखते हैं- ‘मैं सभी ओर से खुला हूं / वन–सा, वन–सा अपने में बन्द हूं / शब्द में मेरी समाई नहीं होगी / मैं सन्नाटे का छन्द हूं।‘ प्रगतिशील हलकों…
Read More » -
Dec- 2023 -17 Decemberकविताघर
क्योंकि कविता उपभोग का सामान नहीं होती
आपको कैसी कविता पसंद आती है? या आपको कौन से कवि पसंद आते हैं? ये दोनों सवाल पूछने वाले और इनके बहुत सटीक जवाब दे सकने वाले लोग दरअसल जाने-अनजाने कविता को उसके न्यूनतम इस्तेमाल की ओर ले जाते…
Read More » -
Jul- 2023 -23 Julyमुद्दा
क्योंकि हम स्त्रियों को नागरिक नहीं मानते…
मणिपुर का वीडियो हमारे भीतर एक भयावह सिहरन पैदा करता है। वह दिमाग को सुन्न कर डालता है, रक्त को रगों में कहीं जमा डालता है। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि हम इस वीडियो में अन्याय और अपमान की…
Read More » -
Mar- 2021 -22 Marchआवरण कथा
लोहिया होते तो राजनीति इतनी क्षुद्र न होती
बीती सदी के अस्सी के दशक में कभी तब की मशहूर पत्रिका ‘रविवार’ ने डॉ. राममनोहर लोहिया पर एक विशेषांक निकाला था। विशेषांक में एक लेख जाने-माने पत्रकार राजकिशोर का भी था। उन्होंने कहा कि आज की राजनीति में…
Read More »