आयोजन

अगम बहै दरियाव के बहाने बतरसिया आयोजन

 

हिन्दी जगत में एक छोटे से प्रयास के साथ अपना सर उठाती एक संस्था ‘बतरस’ अपनी स्थापना के मात्र चौथे वर्ष में चर्चा का विषय बनी हुई है। इसका वार्षिक आयोजन ‘बतरस-2023’ 27, 28 और 29 अक्टूबर 2023 को बैसवारा के छोटे से गाँव मधुकरपुर के ‘प्रज्ञा भवन’ में सम्पन्न हुआ।

बैसवाड़ा और पश्चिम बंगाल के साहित्य-प्रेमियों ने इस आयोजन को अपनी उपस्थिति से सार्थकता प्रदान की। आयोजन की सबसे बड़ी विशेषता यह‌ है कि इसमें तीन‌ पीढ़ियों की भागीदारी रही। आयोजन के पहले दिन चित्रकार शिवाशंकर श्रीवास्तव ने कला की महत्ता और सामाजिक उपादेयता के साथ कलाकार के जीवन-संघर्ष को अपने वक्तव्य में रेखांकित किया। संगीतकार राजीव लोचन सिन्हा द्वारा संगीत के तकनीकी विषय पर विस्तृत चर्चा की गयी तथा आज के दौर में संगीत में रिमिक्स की संस्कृति पर भी उन्होंने अपना विचार रखा। 

इसी क्रम में समाज, साहित्य और स्त्री विषय पर डॉ. पूजा पाठक, आसनसोल गर्ल्स कॉलेज, पश्चिम बंगाल द्वारा सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किया गया जिसमें स्त्री की सामाजिक स्थिति, उसकी राजनीतिक भागीदारी व देह की वर्जनाओं‌ से मुक्ति के साथ कोख‌ पर स्त्री के एकाधिकार ‌पर बड़ी बेबाकी से बात रखी गयी।‌ 

डॉ. जोतिमय बाग, देशबंधु कॉलेज,चितरंजन (प. बंगाल) ने दलित साहित्य और उसकी सामाजिक स्थिति पर विचार करते हुए दलितों के प्रति सहानुभूति के स्थान पर सहभागिता की पैरवी की। साथ ही उन्होंने यह जोड़ा कि दलित-समाज के उत्थान के लिए जमीनी स्तर पर काम किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि राजनीति के स्तर पर दलित उत्थान व्यक्तिगत लाभ तक सीमित रह जाता है और एक बड़े तबके की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है। 

इस संवाद को आगे बढ़ाते हुए श्री शिक्षायतन, कोलकाता की प्राध्यापिका प्रो. अल्पना नायक ने आदिवासी साहित्य और समाज पर महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया। अपने वक्तव्य के क्रम में वे आदिवासियों की जीवन शैली को सबसे अधिक व्यावहारिक और प्रकृति के अनुकूल बताती हैं। वे आगे कहती हैं कि पर्यावरण को बचाए रखने के लिए आदिवासियत को बचाए रखने की आवश्यकता है। एक महत्त्वपूर्ण सवाल आदिवासी समाज के‌ सन्दर्भ में किया जाता है कि क्या आदिवासी समाज विकास विरोधी है इसका उत्तर देते हुए वे कहती हैं कि आदिवासी समाज कभी विकास विरोधी नहीं रहा लेकिन उसकी विकास की अवधारणा मुख्यधारा के सबकुछ ग्रास लेने की प्रवृत्ति से इतर प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए अपनी आवश्यकता भर उपयोग को वरीयता देना है न कि लोभवश प्रकृति का विनाश करना। इस सत्र का संचालन इलाहाबाद वि.वि. के शोधार्थी दीप अमन द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन किया शैलेश प्रताप सिंह जी ने। पहले दिन के दूसरे सत्र में जन- सरोकार और साहित्य पर आधार वक्तव्य श्री दिनेश ‘प्रियमन’ जी ने देते हुए कहा कि लेखक की निष्ठा जनसरोकारों में होनी ही चाहिए। उन्होंने भी श्रोताओं‌ के प्रश्ऩों के समुचित उत्तर दिये।

‘साहित्य : यश, अर्थ और अभिरुचि का सवाल’ पर आधार वक्तव्य डॉ. राम‌नरेश जी ने रखा और रेखांकित किया हिन्दी साहित्यकार मूलतः अभिरुचि के कारण ही साहित्य लेखन करता है, उसे थोड़ा बहुत यश मिल जाए अलग बात है अर्थ तो अधिकांश साहित्यकारों को न के बराबर ही मिलता है। उन्होंने भी श्रोताओं से‌‌ संवाद करते हुए उनके प्रश्नों का उत्तर दिया। ‘भारतीय समाज और रंगमंच’ पर श्री रामजी यादव जी ने रंगमंच से सम्बन्धित मुद्दों पर अपने विचार रखे।

भारतीय समाज‌ और सिनेमा पर आधार वक्तव्य में श्री मृत्युंजय श्रीवास्तव जी ने वर्तमान समय में ‌सिनेमा के सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव पर अपनी बात रखी तथा आयोजन में उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों का‌ शमन किया।‌ 

भारतीय समाज और नृत्य पर अपना आधार वक्तव्य रखते हुए नर्तक व शिक्षक रवि सिंह जी ने वर्तमान परिस्थितियों में हो रहे बदलाव पर विचार करते हुए अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत से विमुख और पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करने वाली पीढ़ी के प्रति चिन्ता जाहिर की। भारतीय सभ्यता व संस्कृति की धरोहर में से एक, कत्थक की हो रही उपेक्षा और व्यक्तिगत संघर्ष को भी साझा किया। 

ग्रामीण परिवेश में शिक्षा, साहित्य और‌ संस्कृति पर ममता सिंह जी ने ग्रामीण क्षेत्रों में आए बदलाव को रेखांकित किया। विद्यालयों व शिक्षकों की चुनौतियों और उसके समाधान पर अपना वक्तव्य रखा और कहा कि न केवल सैद्धांतिक वरन व्यावहारिक‌ रूप में इसे सम्भव बना कर‌ उन्होंने ग्रामीण स्तर की शिक्षा में नया प्रयोग किया है।

कवयित्री मंजू श्रीवास्तव ने अपनी चयनित कविता का पाठ किया। उनकी कविताएँ आज की समस्याओं को व्यक्त करती हैं। जिसमें युद्ध की समस्या व वृद्धों‌‌ की समस्या है तो वहीं उनकी ‘खिड़की’ कविता आशा की कविता है।

मंजू श्रीवास्तव की कविता की प्रो आशुतोष ने भावपूर्ण व सार्थक समीक्षा की। सत्र के अन्त में राजीव लोचन‌ सिन्हा, गायिका सविता जी व रवि सिंह ने अपने गायन से सभा को पुनर्जीवित कर दिया। सत्र का संचालन दिलीप कुमार श्रीवास्तव जी ने किया।

आयोजन का दूसरा दिन हिन्दी के मूर्धन्य ‌साहित्यकारों की जन्मभूमि की यात्रा को समर्पित था।‌ सबसे पहले आलोचना जगत के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर डॉ. रामविलास शर्मा के जन्मस्थान ऊंचगाँव, सानी, फिर छायावादी आलोचकों में शीर्षस्थ आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के गाँव मगरायर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के पैतृक गाँव गढ़ाकोला‌, गीतकार शिवमंगल सिंह सुमन के गाँव झगरपुर, लम्बे समय तक सरस्वती के संपादक रहे पंडित देवीदत्त शुक्ल जी के गाँव बक्सर की यात्रा बतरस परिवार द्वारा किया गया। इस यात्रा में 40 के लगभग ‘बतरसी’ सदस्य थे। इस यात्रा में प्रोफेसर अमरनाथ की उपस्थिति ने सबका उत्साहवर्द्धन किया और साहित्यकार दिनेश ‘प्रियमन’ तथा राम नरेश जी का सहयोग मिला। सबसे अधिक रोचक स्थानीय लोगों द्वारा किया गया सत्कार था जो इस बात का सूचक है कि बैसवाड़े की भूमि साहित्य व साहित्य-प्रेमियों का आदर करना‌ जानती है। निःसंदेह यही वजह रही है कि हिन्दी साहित्य जगत को‌ जितनी प्रतिभाएँ इस जनपद से मिली‌ वह शायद ही किसी अन्य क्षेत्र से मिली होगी। यदि बैसवाड़े को हिन्दी साहित्य का तीर्थस्थल कहा जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी।

त्रिदिवसीय इस आयोजन के अन्तिम दिन‌ का पहला सत्र ‘भविष्योन्मुखी‌ बतरस’ था।‌‌ जिस‌ तरह विद्वानों द्वारा आने वाले समय में हिन्दी भाषा और साहित्य के भविष्य के प्रति चिन्ता जाहिर की जा रही उसी के मद्देनज़र बतरस का यह सत्र हिन्दी के भविष्य सम्बन्धी चिन्ता के समाधान का प्रयास है, क्योंकि साहित्यिक अभिरुचि बची रहेगी तभी‌ साहित्य भी बचा रहेगा और तभी हिन्दी भाषा के बचने की सम्भावना भी रहेगी। इसी अवधारणा के तहत बच्चों द्वारा संगीत- गायन, नृत्य, काव्य‌-आवृत्ति, स्वरचित काव्य-पाठ का आयोजन किया गया। ओजस, अंबास्तू, अनुभूति, आराध्या, प्रानिका ने गायन‌ किया। आराध्या व आराध्य द्वारा संभाषण प्रस्तुत किया गया। अनन्या, लिपिका द्वारा नृत्य प्रस्तुत किया गया। कविता पाठ किया श्रद्धा, अंशु प्रताप, इहा ने। अंश, उज्ज्वल ने भी मंच पर अपनी प्रतिभा दर्शायी। सत्र का संचालन किया सागरिका श्रीवास्तव ने तथा सुरेश आचार्य द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। 

दूसरे सत्र का विषय था ‘ग्रामीण जीवन का यथार्थ और अगम‌ बहै दरियाव’। कथाकार शिवमूर्ति के अद्यतन उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर केन्द्रित इस संवाद सत्र‌ की अध्यक्षता की रामनारायण रम‌णजी ने।‌ स्वयं शिवमूर्ति जी की उपस्थिति में इस उपन्यास पर विविध दृष्टिकोण से चर्चा की गयी।‌ सबसे पहले डॉ. पूजा पाठक, आसनसोल गर्ल्स कॉलेज, पश्चिम बंगाल ने जातिगत् शोषण और पात्रों द्वारा इस शोषण के प्रतिकार पर विचार किया तथा शिल्प पक्ष पर बात की। 

डॉ. प्रवीण कुमार यादव, (अम्बेडकर नगर) ने उपन्यास में चित्रित लगभग चार दशक के किसानी जीवन पर विस्तृत विचार किया। किसानी जीवन‌ की समस्या, उसकी दुर्दशा व इसके लिए जिम्मेदार व्यवस्था पर अपनी बात रखते हुए शिवमूर्ति को ग्रामीण जीवन का कुशल चितेरा कहा। किसानी में आय से अधिक लागत की समस्या, किसान‌ विरोधी सरकारी नीतियों को उन्होंने किसानों की मूल‌ समस्या के रूप में देखा। 

डॉ. जोतिमय बाग, पश्चिम बंगाल ने इस उपन्यास के आधार पर शिवमूर्ति को कलम‌ का किसान कहना उचित माना‌ क्योंकि प्रेमचंद‌, रेणु व श्रीलाल‌ शुक्ल के पश्चात किसान व ग्रामीण जीवन‌ का यथार्थ ‘अगम‌ बहै दरियाव’ में मिलता है। आगे वे कहते हैं कि इस उपन्यास में दलित मुद्दों को बहुत बारीकी और बेबाकी से कहा गया है।

डॉ. गुलनाज़ (कुल्टी, पश्चिम बंगाल) ने कहा कि जातीय मुक्ति के संघर्ष से शुरू इस उपन्यास का अन्त पूंजीवाद की लड़ाई पर आ पहुंचती है।‌ जातीय मुक्ति के संघर्ष में पात्रों को जो सफलता मिली है वह महत्त्वपूर्ण है।‌ नौकरशाह और कानून व्यवस्था की खामियों को भी लेखक ने‌ विस्तार दिया है। संतोखी को कानूनी जीत के बावजूद अपनी जमीन पर अधिकार नक्सल बने‌ जंगू के सहयोग से मिलता है इस विडम्बना की ओर रचनाकार संकेत करते हैं। जातीय शोषण के लिए जिम्मेदार सवर्णों‌ के बीच से ही दलितों के उद्धार के लिए मंगल‌‌ सिंह जैसे पात्र निकल‌कर आते हैं तो अन्य दलित पिछड़े वर्ग से आए पात्र बदलाव की सम्भावना से भरे हुए हैं। वे आगे कहती हैं कि सत्ता ‌का चरित्र एक ही होता है। ‌दलित पार्टियों की दलित विरोधी नीतियाँ इसका प्रमाण है।

प्रो आशुतोष ने ‘अगम बहै‌ दरियाव’ के शीर्षक की विशेषता पर अपना विचार वक्त किया। विद्वान समीक्षक मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि शिवमूर्ति धोखा, फरेब व दगाबाजी के भाष्यकार हैं। लोक गायक बृजेश यादव ने ‘अगम बहै दरियाव’ उपन्यास में वर्णित लोक गीतों का सस्वर गायन‌ किया व लोक गीतों का जीवन में महत्त्वपूर्ण को रेखांकित ‌किया।‌ 

प्रो. अल्पना नायक के इस प्रश्न पर कि क्या न्याय पाने का जरिया जंगू ही है जिस पर शिवमूर्ति ने असहमति जताते हुए उपन्यास के अन्त में जंगू द्वारा लिखे पत्र का प्रसंग उठाया।‌ उन्होंने कहा कि अन्याय के अन्त और व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ‌सभी को आगे आना होगा। शिवमूर्ति को बतरस संस्था की ओर से ‘बतरस सम्मान-2023’ से सम्मानित किया गया। इस सत्र का संचालन किया डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने।

कार्यक्रम के अन्तिम पड़ाव में बैसवाड़े के कवियों ने कविता का पाठ किया जिनमें गीतकार रामकरन सिंह ने अध्यक्षता की तथा डॉ. विनय भदौरिया, सतीश कुमार सिंह, डॉ. शैलेश प्रताप सिंह, दीप अपन, दिव्यांगना शुक्ला, अशोक सिंह ने अपना काव्य-पाठ किया। सत्र के संचालक वाई पी सिंह थे तथा अनुराग शुक्ला जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। 

अन्ततः अगले वर्ष ‘बतरस 2024’ में फिर से मिलने के संकल्प के साथ ‘बतरस 2023’ सम्पन्न हुआ

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गुलनाज़ बेगम

लेखिका कुल्टी कॉलेज, कुल्टी, पश्चिम बंगाल में असिस्टेंट प्रोफेसर (हिन्दी विभाग) हैं। सम्पर्क- begamgulnaz1702@gmail.com
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