देशान्तर

अवैध आप्रवासन का खतरनाक मायाजाल

 

पिछ्ले पांच फरवरी को जब अमरीकी सैनिक विमान अमरीका से 104 निष्कासित भारतीय नागरिकों के साथ अमृतसर उतरा तो यह घटना सभी अखबारों, रेडियो, टेलीविज़न और डिजिटल मीडिया की सुर्ख़ियों में छा गयी। ये वो लोग थे जो अपनी ज़मीन जायदाद बेचकर औसतन पचास लाख रकम जुटाने के बाद उसे पूरी तरह से स्वाहा करते हुए, और महीनों तक हर प्रकार की मुसीबत झेलते, मेक्सिको से लगने वाली अमरीकी सीमा तक पहुंचे थे। यहाँ अपनी जान जोखिम में डाल कर उन्होंने खतरनाक तरीकों से अपने सपनों के देश अमरीका में प्रवेश किया था।

हर परेशानी के बावजूद उनकी उम्मीद इस बात पर टिकी थी कि यदि वे किसी भी तरीके से अमरीका में घुसने में सफल हो जाते हैं तो उसके बाद आप्रवासन विशेषज्ञों की मदद से वहाँ बस जानेकी गुंजाइश निकल ही आएगी। हालांकि जब तक ऐसा नहीं होता तबतक पुलिस की नज़रों से बच कर रहना होता है। जीवन गुज़ारने के लिए काम मिलने में मुश्किलें आती हैं। अगर काम मिलता भी है तो इनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए इनके नियोक्ता इन्हें सरकारी दरों से बहुत कम मजदूरी देते हैं। बहुधा इन्हें एक ही कमरे में कई लोगों के साथ रहना पड़ता है। बस यही उम्मीद रहती है कि एक दिन जीवन में स्वर्णिम भविष्य का दौर शुरू होगा।

मगर इन आप्रवासियों की किस्मत धोखा दे गयी। अमरीका में प्रवेश करने के बाद वे वहाँ की बॉर्डर पुलिस की गिरफ्त में आ गए और उसके बाद शुरू हुआ पुलिस की हिरासत और पूछताछ का सिलसिला। ऐसा कहा जाता है कि हिरासत के दौरान उन्हें यातनाएं भी दी गयीं। उनकी भारत वापसी तो तय ही थी लेकिन तभी आग में घी पड़ जाने की तरह डोनाल्ड ट्रम्प देश के राष्ट्रपति बन गए। ट्रम्प के चुनावी वायदे में अवैध आप्रवासियों की अमरीका से वापसी शामिल थी। ट्रम्प ने अपने शपथ ग्रहण के साथ ही अपनी इस नीति को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। जहाँ लातीनी अमरीकी देशों के अवैध आप्रवासियों की वापसी हुई वहीँ भारतीय आप्रावासियों को भी अमरीका से देश निकाला दे कर सैनिक विमान से वापस भेजा गया। इस लेख के लिखे जाने तक अमरीका द्वारा तीन खेपों में भारतीय आप्रवासियों को वापस भेजा जा चुका है।

भारत के लिए परेशानी की बात यह रही कि ये सारे आप्रवासी हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड कर वापस भेजे गए, और वह भी भारतीय प्रधान मंत्री की अमरीका-यात्रा के ही आस पास। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के सामने चुनौती यह थी कि कहीं यह मुद्दा इतना न उछल जाये कि प्रधान मंत्री की अमरीका यात्रा का असली उद्देश्य ही दरकिनार हो जाये और भारत के दूरगामी हितों पर ही पानी फिर जाए। उन्होंने स्थिति को संभालने की अपनी कोशिश में यह तर्क दिया कि भारत स्वयं भी देश से अवैध आप्रवासन के विरुद्ध है और यदि वापस भेजे गए लोग कागजात की जांच के बाद भारतीय नागरिक पाए जाते हैं तो उन्हें देश अवश्य ही स्वीकार करेगा। संसद में दिए गए अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि अवैध रूप से अमरीका में पहुंचे भारतीय नागरिकों की जबरन वापसी में नया कुछ भी नहीं है। 2009 से अबतक विभिन्न अमरीकी राष्ट्रपतियों के कार्यकालों के दौरान कुल मिला कर लगभग सोलह हज़ार भारतीय अमरीका से निकाल बाहर किये जा चुके हैं।

अवैध आप्रवासियों की हथकड़ी बेड़ियों में वापसी पर जयशंकर की टिप्पणी थी कि इस प्रकार की कारवाई अमरीका की मानक कार्य कार्य प्रणाली का हिस्सा है। उनकी राय थी कि समस्या की जड़ पर ही आघात किया जाये और उन एजेंटों पर अंकुश लगाया जाये जो भोलेभाले लोगों को अमरीका की ऐशो आराम वाली ज़िंदगी का सब्जबाग दिखा कर उनका सर्वस्व लूट लेते हैं। यह लोगों के अपने हित में है कि वे विदेशों में जा कर बसने के कानूनी तरीकों का ही सहारा लें और गैरकानूनी तरीकों से बचें।

ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषण में अवैध आप्रवासियों को एक बड़े मुद्दे की तरह से पेश किया था। उनका यह मानना है कि अवैध आप्रवासी अमरीकी कामगारों के रोज़गार छीनते हैं; अमरीकी करदाताओं पर बोझ बनते हैं; सुरक्षा के लिए खतरा बनते हैं; स्थानीय स्कूलों, अस्पतालों इत्यादि पर अत्यधिक दबाव बनाते हैं। देश के कीमती संसाधनों से अमरीका के गरीब नागरिकों को आप्रवासियों की वजह से वंचित रहना पड़ता है। ट्रम्प के अनुसार अवैध आप्रवासियों पर अमरीका को हर वर्ष अरबों अरब डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। इस बार की अपनी चुनावी रैलियों में तो वे यहाँ तक कह गए थे कि अवैध आप्रवासी अपने आस पास के पालतू जानवरों को चुरा कर खा जाने को हमेशा तत्पर रहते है। यानि कुल मिला कर अवैध आप्रवासी देश की हर समस्या के लिए ज़िम्मेदार हैं।

ट्रम्प की धारणाएं पूरी तरह से सही नहीं हैं। कतिपय शोधों में पाया गया है कि आप्रवासन अमरीकी अर्थ व्यवस्था के लिए फायदेमंद है। साथ ही अमरीका के वैध निवासियों की तुलना में आप्रवासियों द्वारा किये जाने वाले अपराध की दर अत्यंत कम है।

मगर ट्रम्प ने सत्ता में वापसी के तुरंत बाद ही आप्रवासियों पर कठोर कारवाई शुरू कर दी। हालाँकि यह महंगा सौदा है। एक खेप में लगभग साढ़े चार करोड़ रुपयों का खर्च आता है और ऐसा कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में ट्रम्प प्रशासन अवैध आप्रवासियों को सीधे उनके देश भेजने की बजाय होंदूराज़, पनामा या कोस्टारिका जैसे लैटिन अमरीकी देशों में ले जा कर छोड़ देगा और जब तक ये आप्रवासी अपने देश नहीं जाते तबतक अंतर्राष्ट्रीय आप्रवासन संगठन और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी इनकी भरसक सुध लेते रहेंगे।

वैसे तो अमरीका आप्रवासियों का ही देश है। रेड इंडियन लोगों को छोड़ दें तो यहाँ हर कोई बाहर से ही आकर बसा है। अमरीका की खोज कोलंबस ने 1492 में की थी। उसके बाद यूरोप की गोरी आबादी रेड इंडियन मूलवासियों के मानवाधिकारों को कुचलती हुई यहाँ बसने लग गई। कालांतर में गोरी आबादी ने मान लिया कि इस देश पर उन्ही का मूल अधिकार है। 1970 में बने क़ानून द्वारा केवल स्वतंत्र गोरे लोगों को ही यहाँ की नागरिकता प्रदान करने का निर्णय लिया गया। आगे चल कर आवश्यकतानुसार इस क़ानून में समय समय पर ढील दी जाती रही या सख्ती बरती जाती रही।

1921 में अमरीका ने अपने देश में अन्य देशों के लोगों को बसाने के लिए जो व्यवस्था लागू की उसके अनुसार विभिन्न देशों के आप्रवासियों के लिए अमरीका में उनकी जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर कोटा तय किया गया। इसका लाभ मुख्यतः उत्तर पश्चिमी यूरोप के लोगों को ही मिलता था।

इस कोटा व्यवस्था को 1965 में ख़त्म कर एक नया कानून बनाया गया जिसका उद्देश्य पूरी दुनिया के कुशल और प्रशिक्षित लोगों को अमरीका की ओर आकर्षित करना रहा है। इसके बाद आप्रवासन पर उत्तरपश्चिमी यूरोप का वर्चस्व समाप्त हो गया और यहाँ अधिकांश आप्रवासी एशिया और लातीनी अमरीका से आने लगे।

अमरीका का मानना है कि तमाम विवादों और आलोचनाओं के बावजूद अमरीका की आप्रवासन नीति पूरी दुनिया में सबसे उदार है। यह अलग बात है कि इसमें अमरीका के अपने राष्ट्रीय हित जुड़े हुए हैं। यानि अमरीका के लिए असली समस्या केवल अवैध आप्रवासियों की है। पिउ रिसर्च सेंटर के द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार 2022 में अवैध आप्रवासियों की कुल संख्या एक करोड़ 10 लाख थी जिनमे अधिकांश मेक्सिको और दक्षिणी अमरीका से थे। अकेले मेक्सिको से 40 लाख अवैध आप्रवासी थे। भारत के आप्रवासियों की संख्या केवल सवा सात लाख की थी। इस संख्या में बढ़ोत्तरी का अनुमान है और अवैध आप्रवासियों की कुल संख्या अब एक करोड़ तीस लाख के आसपास हो सकती है।

ऐसे में सभी अवैध आप्रवासियों को देश से बाहर निकाल पाना आसान और व्यावहारिक नहीं लगता। एक आकलन के अनुसार इस पर कम से कम 315 अरब डॉलर का खर्च आ सकता है। मगर असली समस्या इसे अंजाम देने की है। एक करोड़ लोगों को देश के कोने कोने से ढूंढ पाना आसान नहीं है। अगर ऐसा कर भी लिया गया तो इतने लोगों को बंदी बना कर रखेंगे कहाँ! इसके बाद इतने लोगों को वापस भेजने के लिए प्रशासनिक मशीनरी कैसे निर्मित होगी! यानि नए आप्रवासियों पर भले ही रोक लग जाये मगर देश में आ चुके आप्रवासियों से निपटना टेढ़ी खीर लगता है। ऐसे में यही संभावना लगती है कि शुरूआती ड्रामेबाजी के बाद शायद यह मसला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाये।

भारत के लिए भी अवैध आप्रवासन राष्ट्रीय शर्मिंदगी का कारण बन जाता है। ऐसे में पंजाब, हरियाणा और गुजरात सहित पूरे देश में अवैध आप्रवासन के खतरों के प्रति जागरूकता तो पैदा करनी ही होगी, साथ ही आप्रवासन एजेंटों की कारगुजारियों पर अंकुश भी लगाना होगा। यह भी उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत की अर्थ व्यवस्था जैसे जैसे विकसित होगी, अवैध आप्रवासन अपने आप घटता जायेगा

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धीरंजन मालवे

लेखक प्रसिद्द मीडियाकर्मी हैं। सम्पर्क +919810463338, dhiranjan@gmail.com
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