लोक में व्याप्त अंधविश्वास
आदिम मनुष्य अनेक क्रियाओं और घटनाओं के कारणों को नहीं जान पाता था। वह अज्ञानतावश समझता था कि इनके पीछे कोई अदृश्य शक्ति है। वर्षा, बिजली, रोग, भूकम्प, वृक्षपात, विपत्ति आदि अज्ञात और अज्ञेय देव, भूत-प्रेत और पिशाचों के प्रकोप के परिणाम माने जाते थे। ज्ञान का प्रकाश हो जाने पर भी ऐसे विचार विलीन नहीं हुए, लेकिन ये अंधविश्वास माने जाने लगे। आदिकाल में मनुष्य का कार्यक्षेत्र सीमित था, इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी अल्प थी। ज्यों-ज्यों मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार हुआ त्यों-त्यों अंधविश्वासों का जाल भी फैलता गया और इनके अनेक भेद-प्रभेद हो गये। अंधविश्वास सार्वदेशिक और सार्वकालिक है।
विज्ञान के प्रकाश में भी ये छिपे रहते हैं। अभी तक इनका सर्वथा उच्छेद नहीं हुआ है। जादू-टोना, शकुन, मुहूर्त, मणि, ताबीज आदि अंधविश्वास की ही संतति हैं। इनमें तर्कशून्य विश्वास है। मध्य युग में यह विश्वास प्रचलित था कि ऐसा कोई काम नहीं है जो मन्त्र द्वारा सिद्ध न हो सकता हो, असफलताएं अपवाद मानी जाती थीं। इसलिए कृषि रक्षा, दुर्गरक्षा, रोग निवारण, संतति-लाभ, शत्रु विनाश, आयु वृद्धि आदि के लिए मन्त्र प्रयोग, जादू-टोना, मुहूर्त और मणि का भी प्रयोग प्रचलित था।
मणि धातु, काष्ठ या पत्ते की बनाई जाती थी और उस पर कोई मन्त्र लिखकर गले या भुजा पर बांधी जाती। इसको मन्त्र से सिद्ध किया जाता और कभी-कभी इसका देवता की भांति आवाहन किया जाता है। इसका उद्देश्य था-आत्मरक्षा और अनिष्ट निवारण। योगिनी, शाकिनी और डाकिनी सम्बन्धी विश्वास भी मन्त्र विश्वास का ही विस्तार है। डाकिनी के विषय में इंग्लैंड और यूरोप में 17वीं शताब्दी तक कानून बने हुए थे। योगिनी भूतयोनि में मानी जाती था। ऐसा विश्वास था कि इसको मन्त्र द्वारा वश में किया जा सकता है। फिर मन्त्रसिद्ध व्यक्ति इससे अनेक दुष्कर और विचित्र कार्य करा सकता है। यही विश्वास प्रेत के विषय में प्रचलित है। फलित ज्योतिष का आधार गणित भी है। अनेक अंधविश्वासों ने रूढ़ियों का भी रूप धारण कर लिया है।
अंधविश्वासों का सर्वसम्मत वर्गीकरण संभव नहीं है। इनका नामकरण भी कठिन है। पृथ्वी शेषनाग पर स्थित है, वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएं हैं, भूकम्प की अधिष्ठात्री एक देवी है, रोगों के कारण प्रेत और पिशाच हैं- इस प्रकार के अंधविश्वासों धार्मिक अंधविश्वास कहा जा सकता है। अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मन्त्र-तन्त्र। इस वर्ग के भी अनेक उपभेद हैं। मुख्य भेद हैं रोग निवारण, वशीकरण, उच्चाटन, मारण आदि। विविध उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्राचीन और मध्य काल में मन्त्र सर्वत्र प्रचलित था। मन्त्र द्वारा रोग निवारण अनेक लोगों का व्यवसाय था। विरोधी और उदासीन व्यक्ति को अपने वश में करना या दूसरों के वश में कराना मन्त्र द्वारा संभव माना जाता था। उच्चाटन और मारण भी मन्त्र के विषय थे। मन्त्र का व्यवसाय करने वाले दो प्रकार के होते थे। मन्त्र में विश्वास करने वाले और दूसरों को ठगने के लिए मन्त्र प्रयोग करने वाले।
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विडंबना यह है कि आज भी देश में अंधविश्वास का बोलबोला है। कई टीवी चैनल और समाचार चैनलों पर ‘दरबार’ लगाए जा रहे हैं। बड़ी संख्या में भक्तों के बीच चमत्कारी शक्तियों का दावा करने वाले शख्स सिंहासन पर विराजमान होते हैं। लोग प्रश्न पूछते हैं और बाबा जवाब देते हैं। सामान्य परेशानी वाले सवालों के असामान्य जवाब। एक छात्रा पूछती हैकि बाबा मैं आर्ट्स लूं, कॉमर्स या फिर साइंस। बाबा कहता है-पहले ये बताओ आखिरी बार रोटी कब बनाई है, रोज एक रोटी बनाना शुरू कर दो। जनता मस्त है और बाबा भी। बाबा की झोली लगातार भर रही है। बाबा के नाम प्रॉपर्टी की भरमार है। ये है 21वीं सदी का भारत, आधुनिक भारत। ‘बाबाओं’ को लेकर भारतीय जनता का प्रेम नया नहीं है। कभी किसी बाबा की धूम रहती है तो कभी किसी बाबा की। ये बाबा लोग भी बड़ी सोच-समझ कर ऐसे लोगों को अपना लक्ष्य बनाते हैं, जो असुरक्षित हैं।
आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत छोटी लकीर होती है, जिसे मिटा कर ऐसे बाबा अपना काम निकालते हैं। लेकिन नौकरी के लिए तरसता व्यक्ति या फिर बेटी की शादी न कर पाने में असमर्थ कोई गरीब इन बाबाओं का लक्ष्य नहीं होता। इनका लक्ष्य है-मध्यवर्ग। उद्योगपति हों या राजनेता या नौकरशाह। ये तथाकथित बड़े लोग जाने-अनजाने इस अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। जो जितना समृद्ध वह उतना ही अंधविश्वासी। और फिर समृद्धि के पीछे भागता मध्यवर्ग, इस मामले में क्यों पीछे रहेगा? आखिर हमारी मानसिकता ही तो ऐसे तथाकथित चमत्कारियों को समृद्ध बनाती है?