manindra nath thakur
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भाषा
हिन्दी चिन्तन जगत में नये नवजागरण की सम्भावना
हर भाषा का अपना एक समाजशास्त्र होता है। उसका एक दार्शनिक पक्ष भी होता है। भाषा समाज के सामूहिक चेतना का वाहक होती है। समाज में होने वाले परिवर्तनों की पूर्व सूचना उस भाषा में रचे गये साहित्य से…
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आँखन देखी
ऐसे भी जीते हैं लोग
पिछले दिनों पुणे की एक संस्था ‘लोकायत’ ने गाँधी पर एक व्याख्यान देने के लिए मुझे आमन्त्रित किया था. इस व्याख्यान के बहाने मुझे पहली बार पुणे जाने का मौक़ा मिला. इस शहर के बारे में मेरी उत्सुकता काफ़ी…
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विकास और अस्तित्व का संघर्ष
महेन्द्र यादव तथाकथित विकास के विनाशकारी रूप, भ्रष्टाचार, सरकारी अफसरशाही के निकम्मेपन, नेताओं के दावे और हकीकत के फासले, अपने लोगों की बातें अनसुनी करने वाली चुनी सरकार का नमूना एक साथ देखना हो तो बिहार का कोशी क्षेत्र…
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जनतन्त्र और जनान्दोलन
मणीन्द्र नाथ ठाकुर यदि आज आप दुनिया के मानचित्र को लेकर बैठें और उसमें विश्व के अलग-अलग हिस्सों में जनतंत्र की हालत पर सोचना शुरू करें तो आपको लगेगा कि इस मायने में दुनिया अब एक हो गयी…
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