भारतीय लोकतन्त्र
-
आवरण कथा
लोकतन्त्र और हमारा समय – रामनाथ शिवेन्द्र
रामनाथ शिवेन्द्र आज का हमारा समय समतल, सीधा, एकरेखीय, सरल, व तरल नहीं है भले ही दिखता हो सरल, तरल तथा एक रेखीय। दिखने में लगता हो कि भाई चारे, बन्धुत्व, सहभागिता पूर्ण रिश्तों वाले उदार समाज के…
Read More » -
आवरण कथा
दलीय लोकतन्त्र, चुनाव और जेपी
अनिल किशोर सहाय साल 1974 के बिहार जनआन्दोलन के क्रान्तिधर्मी एक नारा यह भी लगाते थे-‘तुम जनप्रतिनिधि नहीं रहे हमारे, कुर्सी गद्दी छोड़ दो’। यह नारा आजाद भारत के लोकतान्त्रिक ढांचे के क्षय होने की गहरी और मार्मिक…
Read More »