राहुल जी, आप निराश न हों – वेद प्रकाश भारद्वाज
- वेद प्रकाश भारद्वाज
नोटः प्रिय पाठकों, कल बाजार से गुजरते समय मुझे सड़क पर पड़ा यह पत्र मिला जो किसी कांग्रेस भक्त ने अपने नेता को लिखा था पर शायद डर के कारण उन्हें भेज नहीं पाया। उस अज्ञात कार्यकर्ता की आत्मिक शांति के लिए मैं यह पत्र यथावत आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।
राहुल जी,
आप निराश न हों। आपके भक्त अब भी कम नहीं हैं। क्या हुआ जो आप एक चुनाव हार गए। फिर भी आप राजा हैं। हारा हुआ राजा भी राजा ही कहलाता है। फिर यह तो शुरुआत है। एक छोटी सी शुरुआत जिसमें आपने दुश्मन को दिन में तारे दिखाने में कोई कोशिश नहीं छोड़ी। क्या हुआ जो इस कोशिश में आपको भी दिन में तारे नज़र आ गए। आपने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी। दुश्मन की घेराबंदी भी खूब की थी। एक से बढ़ कर एक तीर थे आपके तरकश में। अब होता है। दीपावली पर लाए बमों में से कुछ फुस्स भी हो जाते हैं। भीड़ तो आपने खूब जुटाई थी। बहनजी ने भी भागदौड़ में कमी नहीं रखी थी।
कैसे-कैसे सपने सजाए थे। इस बार तो पक्का लग रहा था कि पीएम हाऊस अपना हुआ ही हुआ। अब क्या किया जा सकता है। जो हुआ सो हुआ। वैसे भी होनी पर किसका बस चलता है। होनी को तो क्या रावण, क्या कंस, कोई नहीं टाल सका। राजयोग में राजभोग भी हो यह जरूरी तो नहीं। फिर आप तो मुंह में सोने की चम्मच लेकर जन्मे हैं। राजपाट आपके हाथ में हमेशा रहता है, देश का नहीं तो पार्टी का तो है ही। आज भी अच्छे-अच्छे नेता आपकी चरण-धूली की आस लगाए दरबार के बाहर इंतज़ार करते रहते हैं। अशोक का शोक आपने ही दूर किया, आपकी अनुकंपा से ही कमल का नाथ बन पाना संभव हुआ।
आप उस परिवार के चौथी पीढ़ी से हैं जिसे इस देश में शासन करने का लोकतांत्रिक एकाधिकार मिला हुआ है। यह तो इस देश की जनता की नासमझी है जो पिछले कुछ समय से इस बात को भूलती जा रही है। इसमें उसका भी दोष नहीं है। गुलाम मानसिकता के साथ आजादी से पहले पैदा हुई पीढ़ी अब नहीं रही। उसकी भी चौथी पीढ़ी मैदान में है। इसने राजाओं को नहीं देखा इसलिए उनके महत्व को समझती नहीं है।
अब आपका एकाधिकार तो एकाधिकार है, उसे आप कैसे छोड़ सकते हैं। छोड़ना चाहिए भी नहीं। आप छोड़ना चाहेंगे तो आपके भक्त छोड़ने नहीं देंगे। आपने इस्तीफे की पेशकश करके देख लिया ना? क्या कोई माना? कोई नहीं। कोई मानेगा भी नहीं। आप नहीं होंगे तो पार्टी कैसे चलेगी और पार्टी नहीं चलेगी तो देश कैस चलेगा। कुछ राज्यों में अभी आपकी जागीरदारी कायम है। पार्टी में आप हैं तो पार्टी है। इसलिए निराश होने की जरूरत नहीं है। क्या हुआ कि अभी आप लालकिले से भाषण नहीं दे पाएंगे पर पार्टी में तो सिर्फ आपको बोलना है, बाकी लोगों को सिर्फ सुनना है। नेता विपक्ष का ओहदा भले ही आपको न मिल पाए फिर भी हर तरफ आप ही आप होंगे। हर कांग्रेसी की जुबान पर आपका ही नाम होगा। इसलिए निवेदन है कि एक बार तो इस्तीफे की हड़बड़ी आपने दिखाई है वैसा आगे कुछ न करें। इसका कोई लाभ नहीं होगा। आपके विपक्षी कहने लगेंगे कि अमेठी की तरह आप पार्टी से भी डर के भाग रहे हैं। अपने विपक्षियों को मौका मत दीजिए। मत भूलिए कि आप ही विपक्ष नहीं हैं, आपके विपक्षी भी हैं। और विपक्षी उसी के होते हैं जो पक्ष होता है। आपके विरोधी भी आपकी सत्ता को स्वीकार करते हैं। यह कम बड़ी बात नहीं है कि सत्ता में होकर भी मोदी को आपका भय सताता रहता है। इसीलिए वह अक्सर आपका नाम लेते रहते हैं। आप घबराएं नहीं। आपके दिन भी आएंगे।
आपके चरणों का दास
अनामदास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं|
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