सामयिक

लालू जी के नाम खुला पत्र

 

आदरणीय लालू जी,

मेरा प्रणाम

आपको स्वस्थ्य देखकर काफी ख़ुशी हुई। जनता काफ़ी उत्साहित है। आप ग़रीब-गूरबों के नेता हैं, बिहार के शोषित और बांचित समुदाय के मसीहा रहे हैं। बिहार में सामाजिक न्याय की धारा और समाजवादी स्तम्भों में सबसे मज़बूत स्तम्भ हैं। आपके राजनीतिक जीवन में तमाम अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों के वावजूद आपने अपनी स्थान, स्थिति और विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया।

आपने अपना खूँटा जहाँ गाड़ा था, विरोधियों के तमाम प्रयास के वावजूद, आज भी वह खूँटा वहाँ से टस-से-मस नही हुआ। अन्य सारे समाजवादी स्तम्भ अपनी स्थान और स्थिति को अपनी सुविधा के अनुसार बदलते रहे लेकिन मुझे यह कहने में क़तई गुरेज़ नही कि बिहार में आरएसएस/भाजपा और सत्ता के बीच जनता के साथ कोई खड़ा है तो वह है लालू प्रसाद यादव। इसके साथ ही यह भी कहने में कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि बिहार में आपके साथ देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस भी उसी मज़बूती के साथ खड़ी रही है। RSS/BJP का पूरा प्लान बिहार को इन समाजवादी स्तम्भों से मुक्त करना है क्योंकि उसके बिना बिहार की सत्ता पर भाजपा क़ाबिज़ नही हो सकती। यह किसी को साथ में रखकर तो किसी को विरोध में रखकर ख़त्म करना चाहती है।

आपकी राजनीतिक वाक्-पटुता के सभी लोग क़ायल रहे हैं। मीडिया के तमाम सवालों को एक शब्द मे ख़ारिज करने का आपका अपना स्टाइल रहा है। लेकिन इसके साथ ही विगत तीन दशकों मे बहुत कुछ सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन भी हुई है। बिहार और देश के तमाम शोषित-बांचित समुदाय भी अपने सम्मान और गरिमा के सवालों को गम्भीरता से देखने/लेने लगे हैं। यह बात तो आप भी मानते हैं कि सामाजिक न्याय की लड़ाई में कॉंग्रेस एक विश्वशनीय पार्ट्नर/साथी रहा है और इस लड़ाई को और मज़बूत करने के लिये दृढ़-निश्चय है।

यह भी जग-जाहीर है कि आपने समाजवादी विचारधारा और सामाजिक न्याय की लड़ाई के सामने सत्ता से कभी समझौता नहीं किया। यह एक उप-चुनाव है, वो भी सिर्फ़ दो विधानसभा सीट के लिये। यह लड़ाई बड़ी हो सकती है लेकिन इतनी भी बड़ी नही कि सामाजिक न्याय की लड़ाई के एक मज़बूत और विश्व्सनीय सहयोगी को दरकिनार कर दिया जाय, क्योंकि सहयोगी का सम्बन्ध अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों से होता है।

हालाँकि, मै बहुत ही छोटा इंसान हूँ आपको कोई सुझाव देने के लिये लेकिन जहाँ तक मेरी समझ है कि सामाजिक न्याय की लड़ाई के साथ-साथ एक लड़ाई राजनीति में हो रहे भाषाई स्तर की गिरावट से भी है। बीते तीन दशकों में आयी सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन और शोषित-बांचित समाज द्वारा सम्मान और गरिमा के सवालों को गम्भीरता से लेने की स्थिति में आपके द्वारा कॉंग्रेस के बिहार प्रभारी, जो कि दलित समुदाय से आते हैं, के बारे में की गयी टिप्पणी बहुत से लोगों को स्वीकार्य नही है। आपकी इस टिप्पणी से लोग असहज है, और वह स्वीकार करने योग्य नही लगा। आपकी संघर्षों को हर वो इंसान जो सामाजिक न्याय की धारा का हिस्सा है और इस विचारधारा में विश्वास रखता है, सम्मान करता है लेकिन यह भी उतना ही सही है कि कॉंग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास जी का सामाजिक न्याय के लिये किया गया लम्बे संघर्ष को कमतर नही आंका जा सकता है।

यह सही है कि बिहार में सामाजिक लड़ाई में यादव समुदाय अगुआ रहा है लेकिन यह लड़ाई दलित और मुस्लिम समुदाय के साथ और योगदान के बिना सम्भव नही होता। यह समुदाय बिना किसी शर्त के सामाजिक लड़ाई मज़बूती के साथ खड़ा रहा है। आज की सच्चाई यह है कि जिस मज़बूती से दलित और मुस्लिम समुदाय सामाजिक न्याय की लड़ाई के साथ खड़ा है उतनी मज़बूती से यादव समुदाय भी नही खड़ा है।

यादव समुदाय को किससे लड़ना है और कौन अपना है भूलकर बहुत से लोग न सिर्फ़ दलितों पर अत्याचार और इनका शोषण करते मिल जाएँगे बल्कि उनके द्वारा सामाजिक न्याय की लड़ाई को धत्ता बताते हुए, जय श्रीराम के नारे लगाते हुए विरोधी ख़ेमा को मज़बूत करने का तमाम उदाहरण देखा जा सकता है। साम्प्रदायिक शक्तियाँ जब पूरे देश को हिंदू-मुसलमान में बाँटने की कोशिश करती है तो यादव समुदाय का एक हिस्सा कही-न-कहीं सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष ख़ेमा को छोड़कर साम्प्रदायिक शक्तियों का ख़ेमा थाम ले रहा है। पिछला संसदीय चुनाव में आए परिणाम इसका जीता-जागता उदाहरण है। हालाँकि, ऐसे आपवाद सभी समुदायों में मिलना लाज़िमी है।

अतः मेरा अनुरोध है कि सामाजिक न्याय की धारा से जुड़े और मज़बूती से खड़े तमाम समुदायों की सम्मान, गरिमा को बनाए रखते हुए, उनके उचित प्रतिनिधित्व और सहयोग के बीच सामंजस्य बनाते हुए सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे ले जाना सिर्फ़ सत्ता के लिये लड़ाई से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। देश ऐसे मुहाने पर खड़ा है कि सामाजिक न्याय की धारा कमजोर करना झेल नही पायेगा। आज देश बचाने की लड़ाई किसी भी राजनीति और विचारधारा से ऊपर है। मुझे नही मालूम कि मैंने इन तमाम परिस्थितियों को कितना समझ पाया लेकिन आगे आने वाली तमाम परिस्थितियों का सही मूल्यांकन कर सामान विचारधारा के लोग एक दूसरे पर विश्वास और एक दूसरे के प्रति सम्मान को क़ायम रखते हुए इस लड़ाई को और मज़बूती से लड़ते हुए एक बेहतर भारत के निर्माण के सपने को साकार कर सकते हैं।

धन्यवा

.

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
Show More

राकेश रंजन

लेखक बाबा साहेब अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सम्पर्क +919899339892, rakeshjnu06@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x