मुनादी

तेरे बयान पर रोना आया

इस सप्ताह में दो ऐसी घटनाएं हुई हैं जो केन्द्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे कारपोरेटीकरण की प्रक्रिया को और आक्रामक तथा तेज करने के प्रमाण हैं।

एक तो बुधवार को केन्द्र सरकार ने एकल ब्राण्ड खुदरा कारोबार में सीधे सौ फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी है और भयंकर आर्थिक घाटे से जूझ रहे एयर इण्डिया में भी 49 प्रतिशत विदेशी निवेश का रास्ता साफ कर दिया। और दूसरी घटना में नीतिन गडकरी ने नौसेना के आला अधिकारियों को हड़काते हुए देश की सुरक्षा उपायों की तुलना में धनपशुओं के व्यापारिक हितों की ज्यादा परवाह की है।

पहली घटना को चापलूस मीडिया संस्थान इस तरह से प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं मानो कोई बड़ी आर्थिक क्रान्ति हुई हो और भारतीय अर्थव्यवस्था की कायापलट हो जाएगी। जबकि सच्चाई यह है कि देश के निजीकरण की प्रक्रिया पहले से ज्यादा तेज हुई है। कोई विदेशी कम्पनी यदि अपने धन का निवेश भारत में करती है तो उसका ध्यान भारत की बेहतरी से ज्यादा अपने व्यापारिक हितों पर रहता है। हमें इस ऐतिहासिक तथ्य को भूलना नहीं चाहिए कि 1612 में अंग्रेजों की एक व्यापारिक संस्था ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सूरत से भारत में व्यापार शुरू किया तो तीन सौ वर्षों तक उसने भारत पर राज किया। आज जब सैकड़ों बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए भारत सरकार लाल कालीन बिछाए हुए है तो इस बात की क्या गारंटी है कि यह देश आर्थिक रूप से फिर गुलाम नहीं हो जाएगा? जब आर्थिक रूप से गुलाम हो जाएंगे तो फिर राजनीतिक आजादी का अर्थ ही क्या बचेगा?

दूसरी घटना गुरुवार की है जब केन्द्रीय पोत एवम परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी ने पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा की मौजूदगी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि नौ सेना के अधिकारियों को दक्षिणी मुम्बई जैसे पॉश एरिया में रहने की क्या जरूरत है,वे पाकिस्तान की सीमा पर जाकर रखवाली करें जहाँ से आतंकवादी घुसपैठ करते हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि नौसेना के क्वार्टर और फ्लैट के लिए एक इंच भी जमीन नहीं दी जाएगी।

दरअसल कुछ ही दिनों पहले नौसेना ने दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल में सुरक्षा कारणों से एक तैरते पुल के निर्माण के लिए अनुमति देने से मना कर दिया था जहां एक तैरता होटल और सीप्लेन सेवा शुरू करने की योजना है। कहते हैं कि नौसेना का यह निर्णय गडकरी को नागवार गुजरा, उसी खीज से वह अपना भड़ास निकाल रहे थे।

देश की सुरक्षा से जुड़े नौसेना के निर्णय की तुलना में एक व्यापारी के होटल को समुद्र में तैराने में यदि मोदी सरकार का एक मंत्री दिलचस्पी ले रहा हो तो यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि इस सरकार को चलाने वाले नेताओं की प्राथमिकता देश है या दौलत।

यह जिक्र सन्दर्भ से हटकर नहीं होगा कि पश्चिमी नौसैनिक कमान का मुख्यालय दक्षिणी मुम्बई में ही है जहाँ वाइस एडमिरल रहते हैं, और इसी इलाके में नौसेना के आवासीय क्वार्टर हैं। व्यापारी से नेता और मन्त्री बने नीतिन गडकरी को कोई कैसे समझाए कि सेना का जहाँ मुख्यालय रहेगा, जहाँ सेना प्रमुख रहेंगे सैनिकों को वहीं आसपास रहना होता है।

अपने बयान को सार्वजनिक करने से पहले नीतिन गडकरी को रक्षा मंत्रालय से बात करनी चाहिए थी। वह सेना जो अपनी जान न्यौछावर कर देश की रखवाली करता है, उसकी ऐसी तैसी करने से पहले नेताओं को अपने गिरेबान में झाँकना चाहिए। इससे दुर्भाग्यपूर्ण इस देश के लिए और क्या हो सकता है कि एक मंत्री  सैन्य जरूरतों की उपेक्षा कर एक व्यापारिक होटल को तरजीह दे।

 

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किशन कालजयी

लेखक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'संवेद' और लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक 'सबलोग' के सम्पादक हैं। सम्पर्क +918340436365, kishankaljayee@gmail.com
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