
मानव चेतना का सौदागर
21 वीं सदी में भारतीय लोगों में नयी चीजों को स्वीकार करने का उत्साह इस कदर है कि वे चेतावनी की परवाह नहीं करते। अनसुना करते हैं। 19 फरवरी को एलन मस्क ने ‘ग्रोक थ्री’ लॉन्च किया है। भारत के लोग इसके लिए लुटने को तैयार हो जाएँगे। एलन मस्क ने बताया है कि यह बेहद स्मार्ट कृत्रिम मेधा है। अपूर्व और अद्भुत क्षमता सम्पन्न है। कहते हैं कि इसके पास सबकी सब खबर है।
हम जिस विकसित और विकासशील दुनिया के नागरिक हैं, वह लूट खसोट, हिंसा, चोरी और व्यभिचार से संभव हुई है। कृत्रिम मेधा इन सब को अनवरत चलने देगा? चलने देगा और सहयोग भी करेगा। वह विकसित या विकासशील दुनिया पर आघात नहीं करेगा। कृत्रिम मेधा निर्धारित सिस्टम में काम करेगा। हर सिस्टम पीछे देखकर काम करता है।
कृत्रिम मेधा मनमाना व्यवहार करेगा? वह वैसा व्यवहार अभी नहीं कर सकेगा जैसा विकसित देशों के प्रधान इन दिनों कर रहे हैं। शर्तिया नहीं कर सकेगा, यह नहीं कहा जा सकता। संभव है कि कृत्रिम मेधा अथवा लर्निंग मशीन को मानव व्यवहार का नया पाठ पढ़ाने की तैयारी हो रही हो। निश्चित रूप से विश्व राजनीति और विश्व वर्चस्व के लिए जिस तरह की भाषा और दृश्य इन दिनों देखे सुने जा रहे हैं, कृत्रिम मेधा उसे अपने मानस कोष में सुरक्षित रखेगा।
आदमी मुख्यतः चार काम करता है। पहला काम: अपनी आंख-कान और नाक से पहचानने का। एक आदमी अपने दिमाग से दूसरे आदमी का दिमाग पढ़ता है। दूसरा काम: अपने दिमाग का स्टोरेज की तरह इस्तेमाल करता है। यहां वह अपने दिली अनुभवों को भी स्टोर करता है। तीसरा काम: आदमी अपने दिमाग को सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर की तरह व्यवहार करता है। चौथा और आखिरी काम है: वह निर्णय लेता है और एक्शन करता है। इनमें से कौन-सा काम है जो कंप्यूटर प्रणाली नहीं करता है। बरसों से करता आ रहा है। कृत्रिम मेधा कोई नया संकट नहीं है। पुराने संकट का नया अध्याय है।
आदमी का एक बहुमूल्य गुण है- सीखना। कृत्रिम मेधा को लर्निंग मशीन कहा जाता है। यानी आदमी या प्राणी का यह बेमिसाल गुण अब प्राणी तक सीमित नहीं रह गया। आदमी अपने उपर्युक्त गुणों की सहायता से जितना काम करता है, कृत्रिम मेधा वह सब काम आदमी की तुलना में अधिक एकाग्रता और तीव्रता से करेगा। कृत्रिम मेधा की कुशलता बारीक होगी। कृत्रिम मेधा के पास एक अतिरिक्त गुण है। वह है न भूलने की अपूर्व शक्ति। उसके स्मृति खंड में सब सुरक्षित रहेगा। आदमी के सारे गुणों और क्षमताओं से लैस कृत्रिम मेधा के रहते हुए आदमी की क्या जरूरत है?
आदमी धरती पर बोझ होंगे। कृत्रिम मेधा के रहते थोड़ी सी आबादी चाहिए होगी। हर संभव – असंभव तरीके से अधिकांश लोगों को मौत के घाट पहुंचाया जा सका तो एक दिन भारत में संसाधन ज्यादा और आबादी कम होगी। स्वर्ग और किसे कहते हैं? जो ऐसा हुआ तो भारत स्वर्ग हो जाएगा। विकसित होने का यह एक पैमाना है।
कृत्रिम मेधा वर्क फोर्स को न आहार चाहिए न संडास। भोजन की जरूरत नहीं, तो भुखमरी नहीं होगी। इसलिए अस्वच्छता की समस्या भी नहीं होगी। न नहाने -धोने की जरूरत होगी, गंगा गंदी नहीं होंगी। इन्हें प्यास नहीं सताएगी, पानी का अकाल नहीं होगा। यह जेंडर फ्री कम्युनिटी होगी, स्त्री-पुरुष का न आकर्षण होगा न तनाव। केवल काम और काम। किसी आदेश पर हुक्म-उदूली का दृश्य नहीं होगा। ‘थक गई हूं, आज की रात रहने दो’ जैसे वाक्य के लिए कोई जगह नहीं होगी। सदैव तैयार सदैव तत्पर का खुशनुमा माहौल होगा।
कृत्रिम मेधा चांदी की थाली में सजा कर सेवाएँ परोसेगा। ऐसी सेवा करते हुए वह वह ऊंचाई हासिल करेगा कि आदमी उसका रोबोट हो जाएगा। जैसे कभी हाथी,घोड़ा या बैल आदमी के रोबोट हुआ करते थे। आज ऊंची नस्ल के कुत्ते आदमी के रोबोट हैं। जो ऊंची नस्ल के नहीं होंगे, वे सड़क के कुत्ते होंगे।
अब तक मनुष्य सामाजिक प्राणी था। जब तक वह सामाजिक प्राणी था, उसकी निजी जिंदगी थी। उसका निजी एकांत भी था। मनुष्य अब सामाजिक प्राणी नहीं है। अब उसकी जिंदगी में कुछ भी निजी नहीं है है। न निजी एकांत है। नयी परिस्थिति में मनुष्य अब अकेला और पारदर्शी प्राणी है। यह उसका अपना चुनाव नहीं है। यह डिजिटल विकास की देन है। उसकी हरकतें देखी जा रही हैं। उसकी सोच और सोचने के पैटर्न को डेटा में बदल कर सुरक्षित रखा जा रहा है। अब दीवार में कान नहीं हैं, डिजिटल विकास ने आदमी के भीतर अपनी आंख और कान लगा दिया है। वह अपना काम कर रहा है। कृत्रिम मेधा सब देखता, सुनता और समझता है। वह उड़ती चिड़िया के पर गिन सकता है। किसान या खगोल शास्त्री की तरह आकाश पढ़ सकता है। वह पाताल पढ़ सकता है। धरती के नीचे गड़े धन की खबर ला सकता है। वह देह पढ़ सकता है। हर शरीर का सारांश लिख सकता है।
कृत्रिम मेधा ने हमें किसी घटना के सच होने पर संदेहशील बना दिया है। कृत्रिम मेधा इतना समर्थ है कि वह ऐसा रच सकता है कि बिलकुल सच प्रतीत हो। कृत्रिम मेधा के युग में झूठ और मनगढंत विजुअल से मनुष्य को भरमा कर रखा जाएगा। अभी हमने दो देशों के प्रधान के वीडियो का खूब नजारा लिया है। क्या वह वास्तविक घटना का शूट था? संभव है कि वह सच्ची घटना का विडियो हो ! मगर हो सकता है कि वह कृत्रिम मेधा का प्रेजेंटेशन हो। संभव है वहां दोनों देशों के प्रधान साक्षात न रहे हों। इन दिनों अमिताभ बच्चन कृत्रिम मेधा निर्मित अपने प्रतिरूप की मार्केटिंग कर रहे हैं। वे बताते हैं कि दुनिया के कई महारथियों का ऐसा प्रतिरूप तैयार किया गया है।
संभव यह है कि ट्रंप का पथ-प्रदर्शक कृत्रिम मेधा हो। संभव है कि ट्रंप ने कृत्रिम मेधा को अपने देश की स्थिति, डेटा और अपनी मंशा बताई हों। ट्रंप कृत्रिम मेधा के बताए रास्ते चल रहे हों? अपने मोदी जी ने बताया था कि महात्मा गाँधी को दुनिया ने तब जाना, जब बेन किंग्सले ने गाँधी फिल्म बनाई। उन्हें यह लगा था कि वे नॉन बाइलॉजिकल हैं। संभव है यह सब कृत्रिम मेधा ने बताया हो। संभव है कि ट्रंप-मोदी या दूसरे देशों के प्रधान कृत्रिम मेधा के रोबोट हों। आज नहीं हैं, तो कल होंगे। दुनिया कृत्रिम मेधा के नियन्त्रण में होगी, ऐसा भविष्य नजदीक है।
कृत्रिम मेधा ऐसा कमाल है कि राजनीतिक-आर्थिक वर्चस्व के लिए इसका बेजा इस्तेमाल सहज संभव है। संभव है कि एलन मस्क, अडानी या अंबानी जैसे समर्थ महाजन अपने अपने देश के प्रधान को अपने मायाजाल में ले लें। उन्हें अपने मायानगर में रखें। भारत के अन्तिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर की सारी कमजोरियों की प्रवृत्तियां इनमें डाल दे। स्वयं विश्व विजयी महाजन बनने के लिए अपना ‘कृत्रिम मेधाअश्वमेध’ छोड़ दे। कृत्रिम मेधा यह संभव करेगा कि ‘एक दुनिया एक महाजन’ का राज हो। कृत्रिम मेधा जैसे-जैसे वयस्क होता जाएगा, संभव करेगा कि राजनीतिक शक्ति और राजनीति शास्त्र की औकात न रहने दी जाए। कृत्रिम मेधा की शिक्षा-व्यवस्था इसे सुनिश्चित करेगी। कृत्रिम मेधा में दुनिया के नागरिकों को गुमराह करने की प्रबल शक्ति है। राजनैतिक और वाणिज्यिक मामलों में गुमराह रोज रोज किया जाएगा। साहित्य, संस्कृति और इतिहास के मामले में स्थायी और पुख्ता भाव से किया जाता रहेगा।
कृत्रिम मेधा और शासन व्यवस्था का सम्बन्ध पुरुष और स्त्री सरीखा होगा। कृत्रिम मेधा शासन को अपने अंगूठे के नीचे रखेगा। अंगूठे के नीचे दबी व्यवस्था लोकतांत्रिक नहीं हो सकती। अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश में फासिज्म की आहट को पढ़ा जाने लगा है। अमेरिका में एलन मस्क के खिलाफ उठी आवाज अगर परवान चढ़ी, बड़ी बात होगी। चूंकि कृत्रिम मेधा पूँजी की नवीनतम हाईस्पीड संतान है, वह उसके लिए बाईपास सड़क अवश्य बनाएगी। यह बाईपास दक्षिणी दरवाजे से निकलेगा।
एक समय था कि लोगों की राय बनाने में अखबार की भूमिका थी। आज अखबार की अपनी राय नहीं है। अब अखबार हो या इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल मीडिया दोनों व्यवस्था का मुखपत्र है। कम से कम भारत में यही हाल है। अब किसी भी अखबार, टीवी चैनल्स या सोशल मीडिया पर तथाकथित स्वतन्त्र यूट्यूब चैनल्स किसी के पास खबर खोद कर लाने की व्यवस्था नहीं है। कृत्रिम मेधा इतना क्षमतावान है कि वह अपनी जरूरत के हिसाब से लोगों की भावनाओं को प्रभावित करने वाले विजुअल्स सोशल मीडिया पर अपलोड करता है। अपेक्षित प्रभाव पाने के लिए ऐसा किया जाता। बहुत जल्द ही वह समय आ रहा है जब अखबार, टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया चैनल्स को अपने जीवन का अन्तिम दिन करीब दिखाई देगा। एलन मस्क ने ऐसा ‘ग्रोक-3’ दिया है कि संपूर्ण मीडिया खबरों के लिए इस पर निर्भर करेगा। मगर यह खबर खजाना नहीं है। इसका इस्तेमाल बांहें एँठने के लिए होगा। फिलहाल भारत के प्रधानमन्त्री की बांहें ऐंठी जा रही हैं। बाजार की जरूरत पर इसकी-उसकी गर्दन मरोड़ी जा सकेगी।
कृत्रिम मेधा की वजह से अब सही मायने में सब कुछ ग्लोबल हो जाएगा। न लोकल व्यवस्था चलेगी, न लोकल कानून प्रभावी होगा। सब कुछ पर नियन्त्रण उसका होगा जिसका नियन्त्रण कृत्रिम मेधा पर होगा। कृत्रिम मेधा बनाम कृत्रिम मेधा में घमासान होगा। लोकल केवल तनाव होगा। फूट और कलह होगा। हिंसा होगी। विभाजन होगा। अलग होने की मांग बढ़ेगी। अमेरिका में इस तरह की आवाज उठने लगी है। संभव है कि कृत्रिम मेधा दुनिया को छोटे-छोटे कबीलों में बदल दे। वह हर कारक जिनसे सद्भाव और साहचर्य बनता था, उन कारकों को तनाव का कारण बना दिया जाएगा। यह चेतने का समय है। चेतना बचाने का समय है। कृत्रिम मेधा चेतना का सौदागर है।