महोत्सव में ‘चक्रदार’
सर्वविदित है की संगीत धरोहर के रूप में हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है। भारतीय संगीत विश्व में प्राचीनतम है और यह सदियों की दासता के बावजूद, अपनी श्रेष्ठता से बाहरी लोगों के शासन के बावजूद इसकी परिपक्वता, गहराई एवं निष्ठावान कलाकारों के समर्पण के कारण बिखरने नहीं पाई।
तबला, पखावज में चक्रदार का विशेष महत्व है। दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें तो चक्रदार का मतलब ही होता है परिक्रमा। भारतीय संस्कृति में तीन का विशेष महत्व होता है, चाहे वो इलेक्ट्रान प्रोटोन या न्यूट्रॉन हो या फिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश। भोलेनाथ का प्रिय अस्त्र त्रिशूल भी तीन सिरों का है। त्रिशूल तीन गुणों सत्व, रज और तम का परिचायक है। इन तीनों के बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्टि का संचालन कठिन है। इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया। इसे रचना, पालक और विनाश के रूप में देखा जाता है। इसे भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ धरती, स्वर्ग तथा पाताल का भी सूचक माना जाता है। यह दैहिक, दैविक एवं भौतिक ये तीन दुःख, त्रिताप के रूप मे जाना जाता है। साथ ही देवियां भी तीन लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती हैं। उसी प्रकार तबला, पखावज के विशेष रचनाओं में अंक 3 का विशेष महत्व है, जो जीवन दर्शन से प्रेरित है। जो चक्रदार में विभिन्न लयकारी एवं काव्य युक्त रचनाओं में परिलक्षित होता है।
सांस्कृतिक संरक्षण, संवर्धन एवं ज्ञानवर्द्धन हेतु समर्पित संस्था ‘नादऑरा’ संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. कुमार ऋषितोष स्वयं उचकोटी के कलाकार, लेखक, शिक्षाविद,आयोजक एवं गुरु के रूप में कला जगत में 25 वर्षों से सेवा कर रहे हैं। उनका कहना है की तबला, पखावज में प्रयुक्त विशेष एवं दुर्लभ रचनओं का सम्मान करते हुए ‘चक्रदार महोत्सव’ की संकल्पना की गयी है जो अभी तक इस तरह का उत्सव हमेशा से प्रतीक्षित रहा है। क्योंकि गायन विधा से सम्बंधित विविध कार्यक्रम का आयोजन सदैव होता आ रहा है। जैसे मल्हार उत्सव, बसंत उत्सव, कजरी महोत्सव, ठुमरी उत्सव, भक्ति उत्सव, ध्रुपद महोत्सव इत्यादि। तबला एवं पखावज में चक्रदार एक विशेष रचना है, चक्रदार का उद्गम स्रोत तिहाई है। देखा जाय तो तिहाई का ही बड़ा और विकसित रूप चक्रदार है जो साधारण चक्रदार, फरमाइशी चक्रदार, कमाली चक्रदार एवं नौहक्का में इस रचना का वृहत रूप देखने को मिलता है। वर्तमान समय में सांगीतिक प्रदर्शन में शायद ही कोई कलाकार चक्रदार से अछूता रहा हो। तंत्र वाद्य के कलाकार हो या गायन विधा के जाने अनजाने में इसका प्रयोग अवश्य करते हैं।
बनारस घराने के मूर्धन्य तबला महर्षि पंडित अनोखे लाल मिश्र जी एवं पंडित छोटेलाल मिश्र जी को संगीतमय श्रद्धांजलि प्राचीन विरासत को संरक्षित और लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय संस्था ‘नादऑरा’ द्वारा संगीत एवं योग के उन्नयन हेतु गत 17 वर्षों से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समारोह विभिन्न उत्सवों पर आयोजित करती आ रही है। इसी आगामी कड़ी में चार दिवसीय चक्रदार महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ जिसमें ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन, तपोवन में देवी म्यूजिक आश्रम एवं दिल्ली में त्रिवेणी सभागार। ‘नादऑरा’ एवं ‘परमार्थ निकेतन’ के संयुक्त तत्वाधान में ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन के गंगा घाट पर आयोजित ‘जी20 शिखर सम्मेलन’ एवं ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के उपलक्ष्य पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के विशेष सहयोग से देवभूमि ऋषिकेश में नए सांस्कृतिक विविधता एवं स्वच्छता संकल्प (नमामि गंगे) एवं संवर्धन हेतु 15 एवं 16 मार्च 2023 को दो दिवसीय चक्रदार महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ।
कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि रहे परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष एवं प्रकृति एवं संस्कृति की अनमोल धरोहर के संरक्षक योगीराज संत शिरोमणि स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज ने दीप प्रज्ज्वलन करके किया। पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य कला एवं संगीत की सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण संवर्धन एवं कला प्रेमियों के बीच कलाओं के आदान-प्रदान के माध्यम बनाना है। इस अवसर पर स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज को नादऑरा संस्था द्वारा दो दिवसीय चक्रदार महोत्सव में ‘नाद योग महर्षि रत्न सम्मान’ एवं दिल्ली से पधारे मोरारजी देसाई योग संस्थान के निदेशक डॉ, ईश्वर वी. बसवराड्डी को ‘नाद योग वाचस्पति सम्मान’ संस्था के अध्यक्ष डॉ. कुमार ऋषितोष के द्वारा अंग वस्त्र एवं स्मृति चिन्ह के साथ प्रदान किया गया।
कार्यक्रम के प्रथम दिवस का शुभारम्भ डॉ. कुमार ऋषितोष द्वारा संयोजित एवं संचालित बहुचर्चित ‘रिद्म डिवाइन’ की प्रस्तुति से किया गया। इस प्रस्तुति में लुप्त हो रही प्राचीन मन्त्रों एवं विभिन्न छंदों के माध्यम से कलाकार की अपनी सृजन क्षमता के अनुसार नया स्वरुप देखने को मिला। कार्यक्रम की शुरुआत राग- मारवा में निबद्ध गणेश स्तुति एवं महामृत्युंजय मंत्र जो विलम्बित तीनताल एवं लक्ष्मी ताल में निबद्ध थी से की गई। तत्पश्चात राग शंकरा एवं देश में दुर्गा स्तुति, विभिन्न जातियों का प्रयोग, विभिन्न चक्रदार के प्रकारों के साथ वादन में गणेश परण, सरस्वती परण, महेश्वर सूत्र एवं दक्षिण भारत के मोहरे-कोरवे का समावेश भी इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था जो बरबस गुणी श्रोताओं के साथ आम श्रोता भी खींचे चले आते हैं एवं साथ में विभिन्न लयात्मक संवाद भी। भाग लेने वाले कलाकार थे तबला पर डॉ. कुमार ऋषितोष, पुणे से आए मृदंग पर मनोज सोलंकी, गायन पर डॉ. रेखा मिश्रा, परकशन पर हिसार से नीरज कुमार, बांसुरी पर सतीश पाठक, सारंगी पर दिल्ली से नफीश अहमद।
कार्यक्रम का अगला आकर्षण सुप्रसिद्ध मृदंगाचार्य पंडित पागल दास जी के शिष्य डॉ. संतोष नामदेव के सुमधुर मृदंग वादन से हुआ। आपने अपने वादन चारताल में रखा। डॉ. संतोष नामदेव ने चरताल में अपने गुरु से प्राप्त कई अच्छी सुंदर एवं दुर्लभ रचनाओं को बजंत एवं पढंत के साथ प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। खासकर उनकी प्रस्तुति में फरमाइशी चक्रदार के विभिन्न प्रकारों को नए अंदाज में सुनने को मिली जो दुर्लभ था। कार्यक्रम का द्वितीय दिवस युवा प्रतिभाशाली तबला वादक सुरजीत सिंह एवं बसंत सिंह का तबला जुगलबंदी कार्यक्रम हुआ। इन दोनों के वादन में पंजाब, फर्रुखाबाद और बनारस घराने की खुश्बू देखने की मिली जो प्रशंसनीय था। सम्वादिनी पर सुमीत मिश्रा ने सहयोग प्रदान किया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी के प्रिय शिष्य पंडित हरीश तिवारी ने राग यमन में विलम्बित ख्याल ‘ऐ पिया बिन कैसे कटे रतिया’ जो झपताल में निबद्ध था एवं तीनताल में द्रुत रचना ‘दर्शन दे हो शंकर महादेव’ गाकर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। अंत में आपने गायन का समापन ‘जो भजे हरी को सदा’ भैरवी से किया।
चक्रदार महोत्सव का समापन दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में 31 मार्च 2023 को सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का आरंभ दिल्ली घराने के मशहूर वायलिन वादक जनाब असग़र हुसैन द्वारा राग श्याम कल्याण और पहाड़ी की सुन्दर प्रस्तुति दी गई। झपताल विलम्बित एवं द्रुत तीनताल में आलाप के साथ तानों की तैयारी, लय की विविधता के साथ राग की शुद्धता आपकी विशेषता है। आपके साथ तबले पर पं आशीष सेनगुप्ता ने कुशल संगत प्रदान की। तत्पश्चात 6 वर्षीय बाल कलाकार मास्टर प्रियतोष का आकर्षक स्वतंत्र तबला वादन हुआ। जिसमे बनारस घराने के पारम्परिक उठान एवं कुछ खास टुकड़ा और चक्रदार की प्रस्तुतियों से माहौल को रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम का अंतिम आकर्षण बनारस घराने के प्रसिद्ध गायक पंडित भोलानाथ मिश्रा का प्रभावशाली शास्त्रीय गायन से हुआ। आपने राग बागेश्री में रचना ‘आनंद भयो’ जो विलम्बित एकताल में निबद्ध थी से शुरुआत की। द्रुत एकताल में रचना ‘पकड़त मोरी बइयाँ श्याम’ और तीनताल में ‘ बलि बलि जाऊँ सजनी’ की भावप्रवण प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। मुख्य अतिथि रहे आईसीसीआर के निदेशक श्री वाय.एल.राव द्वारा संस्था के तरफ से पं. भोलानाथ मिश्र एवं उ. असग़र हुसैन को ‘नाद रत्न’ सम्मान प्रदान किया गया।
इस प्रकार देश के विभिन्न भागों में आयोजित ‘चक्रदार महोत्सव’ की भव्य प्रस्तुति तबला, पखावज में प्रयुक्त ‘धा’ के वज़न की तरह सम पर पूरे जोश एवं उत्साह के साथ मनाया गया। जिसमें देश के विभिन्न भाग से आए कलाकार ने अपनी नाद के माध्यम से नादऑरा में अपनी आभाभिखेरी। कुल मिलाकर चक्रदार महोत्सव की खूबसूरत प्रस्तुतियों ने अपसंस्कृति के बरखिलाफ अपनी विरासत को बचाने, सहेजने और प्रस्तुत करने का जो नायाब व सराहनीय प्रयास किया, वह काबिल-ए-दाद और स्मरणीय बन गया, इसमें किंचित सन्देह नहीं।