आज विश्व पर्यावरण दिवस
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बिहार में ईको टूरिज्म को बढावा देने से बड़ा विकल्प कुछ भी नहीं
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लोगों को रोजगार मिलेगा, हरियाली बढ़ेगी, प्रदूषण कमेगा, वाटर लेवर ठीक होगा और सरकार को भी आय होगी
मैंने सबसे ज्यादा रिपोर्टिंग हेल्थ, एजुकेशन और पॉलिटिक्स पर की। सरकार को नजदीक से देखा। उसके काम-काज का तरीका और बाकी सब कुछ। पर्यावरण जैसे विषय प्रकृति प्रेमी होने के नाते मेरे अंदर बचपन से रहे। जमालपुर काली पहाड़ी की तलहटी में जहां मेरा जन्म हुआ और बचपन से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई जहां रहकर मैंने की वह बहुत रमणीक जगह तो है ही साथ ही वहां जमालपुर रेल कारखाने के श्रमिकों के पसीने की गंध भी है। जमालपुर के आलावा दिल्ली, पटना काफी समय रहा, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के सिलसिले में। लेकिन पहाड़, नदी, झरना, झील वाला यह शहर मुझे हमेशा खींचता है।
जमालपुर पहाड़ को और कितना तोड़ेंगे
जमालपुर रेल कारखाने की चिमनी से निकलने वाला धुआं इतना गहरा काला था कि हमारे घर की छत हमेशा काली रहती थी। कई बार तो रात के समय हमारा दम घुटने लगता था। दिन में कई बार धुएं से अंधेरा छा जाता था। अब यह प्रदूषण कम है। लेकिन जमालपुर शहर की कई पीढ़ियां अस्थमा की शिकार हो गईं। पर्यावरण को बचाने की जिद मेरे अंदर थी। जमालपुर काली पहाड़ी पर अवैध पत्थर उत्खनन के खिलाफ कई रिपोर्ट लिखी। मुरारी जी मिश्र एक डीएफओ थे वहां उन्होंने ऑपरेशन मुद्गगल चलाया था। तब पत्थर माफियाओं ने उन पर जानलेवा हमला भी किया था।
इधर दो- तीन दिन पहले भाजपा के पुराने कार्यकर्ता लालमोहन गुप्ता ने जब यह मांग की कि मजदूरों के लिए पत्थर खदान को चालू करना चाहिेए तो सच मानिए मेरा रोंया सिहर उठा। सच्चाई यह है कि पत्थर खनन में ठेकेदार ही मालामाल हुए। पत्थर मजदूर तो कई बार हूल लगाने के क्रम में मारे जाते रहे तो कभी सांस की बीमारी के शिकार होते रहे। पहाड़ की पूरी हरियाली माफियाओं ने खत्म कर दी। मजदूरों की रोजी- रोटी का सवाल वाजिब है लेकिन इसका विकल्प पहाड़ तोड़वाना नहीं है।
पॉलिथिन फ्री स्टेट घोषित है, लेकिन खुलेआम हो रहा इस्तेमाल
महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित मुचकुंद तालाब में पॉलिथीन फेंकने से जुड़ी मेरी खबर पर पटना हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया तो पूरे मंदिर परिसर को पॉलिथीन फ्री जोन घोषित किया गया। कोर्ट ने लगे हाथ पूरे बिहार को पॉलिथीन फ्री स्टेट घोषित करने का निर्देश बिहार सरकार को दिया और फिर बिहार सरकार ने कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर बिहार में पॉलिथीन बैन किया। शुरू में छापेमारी हुई, फाइन भी वसूला गया। लेकिन यह अभी भी ठीक से एक्जक्यूट नहीं हो पा रहा है। कारण यह कि बैन करने के बाद के विकल्प और बाहर से आने वाले पॉलिथीन पर सरकार रोक नहीं लगा पाई है। यह अवैध तरीके से जारी है। पर्यावरण और वन विभाग से एक पत्रिका निकलती थी गौरैया, वह भी वर्षों से बंद है।
न्यायालय की समझ को सलाम
वायु प्रदूषण की बिगड़ती स्थिति को लेकर पटना हाईकोर्ट में मैंने एक जनहित याचिका दायर की। हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने 3 दिसंबर 2018 को कहा कि -अदालत प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं कर सकती, राज्य की सरकारें भी लाचार। कोर्ट की समझ अपने तरह की रही। हां कोर्ट की टिप्पणी अच्छी थी कि- गाड़ियां छोड़ साइकिल चलाएं तभी कम होगा प्रदूषण। कोर्ट में मेरी ओर से कई रास्ते सुझाए गए कि कैसे वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। बिहार सरकार को कौन-कौन से कदम उठाने चाहिए।
आगे सरकार ने वायु प्रदूषण रोकने की रणनीति बनाई। उसके अनुरूप सरकार कदम उठा रही है। सवाल यह है कि आखिर क्यों बार-बार हाईकोर्ट को यह बताना पड़ता है कि सरकर जागिए। अभी भी पटना के कई इलाकों में पेड़ों को चारों तरफ से इस तरह चुनवा दिया गया है कि उसकी जड़ों तक बारिश का पानी पहुंचना भी मुशकिल है। आप पटना के बोरिंग रोड में यह स्थिति देख सकते हैं।
सरकार में जागरूकता
सरकार के अंदर भी पर्यावरण को लेकर जागरुकता आई है। पहले यह होता था कि बेली रोड पर सरकार ने सड़क चौड़ीकरण के नाम पर दर्जनों पेड़ों को कटवा दिया। आगे जब जागरुकता आई तो काटने की बजाय पेड़ों को जड़ सहित उखाड़ा गया और फिर उन्हें दूसरी जगह लगाया गया। इस तरह कई पुराने पेड़ खत्म होने से बचा पा रही है सरकार। कई पेड़ों में नई पत्तियों आ गई हैं। लेकिन कुछ तर्क सरकार अपनी मर्जी के अनुसार देती है। जैसे कि पीएचडी के अनुसार पानी का ग्राउंड लेवल 10 से 11 फुट तक बढ़ने का कारण सरकार की योजनाएं हैं। जबकि सच यह है कि पिछले साल हुई झमाझम बारिश की वजह से ऐसा हुआ है।
आपको याद होगा उसी समय पटना डूबा भी था। पटना जब डूबा तब किसी ने नहीं कहा कि उसके प्रयासों से बारिश हो रही है। सच यह है कि यह जलवायु परिवर्तन का असर है। हरियाली की कमी की वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है और उसके कई खतरे हम झेल रहे हैं। सरकार के इस प्रयास की सराहना करनी चाहिए कि वह चाहती है कि राज्य में हरित आवरण 15 फीसदी से बढ़कर 2022 तक 17 फीसदी किया जाए। यहां सरकार को यह समझना चाहिए कि डिवाइडर वाले छोटे पौधौ की गिनती कराकर हरित आवरण नहीं बढ़ाया जा सकता।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग
सरकार ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए सरकारी भवनो में इसकी यूनिट लगा रही है। इसे लोगों की घरों में भी लागू कराना चाहिए। खास तौर से अपार्टमेंट में तो जरूर। जल जीवन हरियाली के नाम पर सरकार 2019-20 में 5870 करोड़ रुपए,2020-21 में 9874 करोड़ रुपए और 2021-22 में 8780 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। सरकार वेट लैंड्स पर भी ध्यान दे रही है। मीठापुर, पटना के वेट लैंड्स भवनों के नीचे दब गए लेकिन अब सरकार ने पुराने तालाबों, बादशाही पइनों की उड़ाही करा रही है। पुराने कुओं को भी वापस लाया जा सके तो अच्छी बात होगी।
लॉक डाउन में स्थिति सुधरी पर यह स्थायी नहीं
वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों को झेलनी पड़ती है। अभी तो लॉक डाउन की वजह से वायु प्रदूषण काफी कम है। एक समय जब पटना का वायु प्रदूषण 400 के पार चला जाता था वहीं लॉक डाउन में यह कम होकर 40 तक पहुंच गया था। लेकिन स्थिति सामान्य होने के बाद वायु प्रदूषण की स्थिति फिर से खराब होगी। सरकार ने साइकिल चालन को प्रोत्साहित करने के लिए योजना तो बनाई पर उसे लंबे समय तक नहीं चलाया। हां सरकार ने स्कूली बच्चे-बच्चियों को साइकिल या उसके लिए राशि देकर स्कूल जाने की सहूलियत तो दी ही साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी बड़ा कार्य किया। इसे सरकार और बढ़ा सकती है। महत्वपूर्ण यह कि सरकार को प्रदूषण बढ़ने पर स्कूली बच्चों को लिए एडवाइजरी जारी करनी चाहिए। ई-रिक्शा और सीएनजी वाले ऑटो से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का प्रयास अच्छा है।
ईको टूरिज्म को बढ़ावा दे सरकार
सरकार को बिहार में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए पर्टयन को बढ़ावा देना चाहिए। खास तौर से ईको टूरिजम को बढ़ावा देकर यह कार्य सरकार कर सकती है। इसके लिए सरकार को अलग से काफी खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पर्यटन को जल जीवन हरियाली योजना से जोड़कर काफी आगे बढ़ाया जा सकता है। इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और सरकार को भी अच्छी आय होगी। अभी जल जीवन हरियाली से सरकार ने इन विभागों को ही जोड़ रखा है-ग्रामीण विकास, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन, राजस्व व भूमि सुधार, लघु जल संसाधन, नगर विकास, पीएचइडी, कृषि, भवन निर्माण, जल संसाधन, पशुपालन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायती राज, ऊर्जी, सूचना एवं जन संपर्क विभाग।