कहानी है एक रूढ़िवादी परिवार की जो मुंबई से अजमेर जा रहा है। फ्लाइट छूट जाने के कारण उन्हें बस से सफर तय करना पड़ रहा है। फ्लाइट छूटने की वजह है बेटी। बस में एक लड़की है साशा (कीर्ति कुल्हारी) और उसके बैंड के साथी अपूर्व डोगरा (फ्रेडी), जिम्मी (शेनपेन खिमसर), इमाद (अजय जयंती) जो सिगरेट पीते हैं, बियर पीते हैं गाना गाते हैं। यही वजह है कि पिता संजय शर्मा जो कि पुराने व दकियानूसी ख्यालों के हैं उन्हें बस में मौजूद म्यूजीशियन दोस्तों का रंग ढंग, उठना बैठना, गाना बजाना पसंद नही आता।
यहीं पर फ़िल्म में शुरुआत होती है पीढ़ियों के अंतराल की भी। आर्शी 18 साल की होने वाली है और उसके पिता ने उसकी शादी बिना उससे पूछे अजमेर में ही बुआ के कहने पर तय कर दी है, जबकि अभी वह शादी नही करना चाहती। अब क्या होगा कहानी के साथ यह तो फ़िल्म देखकर पता चलेगा आपको।
सड़क पर चलती फिरती शादीस्थान की यह कहानी ‘जब वी मैट’, ‘कारवां’, ‘करीब करीब सिंगल’ जैसी फिल्मों की भी याद दिलाती है। और एक ही लोकेशन पर अटककर नहीं जाती। कम बजट में बनी यह फ़िल्म बीच-बीच में सीरियस भी होती है और स्टार कास्ट का अभिनय इसे मजबूती भी देता है।
गीत-संगीत अच्छा है बीच-बीच में राजस्थानी छटा, धुन इत्यादि भी इसे देखने लायक बनाते हैं। लेकिन एडिटिंग में कसावट की जरूरत महसूस होती है और लेखन के नजरिये से भी जो कई सवाल यह छोड़ जाती है उनके भी जवाब दे पाती तो और बेहतर हो सकती थी। बावजूद इसके डायरेक्टर राज सिंह चौधरी दो पीढ़ियों के अंतर को ठीक-ठाक दिखाते हैं।
डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर पिछले हफ्ते रिलीज हुई इस शादीस्थान फ़िल्म के कुछ एक डायलॉग्स बेहतर लिखे गये हैं। ‘मैं खाना इसलिए बना रही है क्योंकि मैं बनाना चाहती हूं लेकिन आप इसलिए क्योंकि आपकी मजबूरी है।’, ‘गुस्सा कर, चिल्ला कर ये जाहिर करने की जरूरत नहीं है कि औरतें, मर्द के बराबर है- ऐसा कहना कमजोरी है।’