भारत हिन्दू राष्ट्र की ओर
नागरिकता संशोधन कानून हिन्दू राष्ट्र की दिशा में उठा एक तेज कदम है। सत्रहवीं लोक सभा में भाजपा को 21 सीटें अधिक मिलीं (282 से 303)। अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में वह पहले की तुलना में कहीं अधिक सक्रिय हुई। यह एजेंडा हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा है। तीन तलाक, 370 और 35 ए की समाप्ति, कश्मीर-विभाजन और रामजन्म भूमि सम्बन्धी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नागरिकता संशोधन कानून और लोकसभा में गृहमंत्री द्वारा देश भर में एन आर सी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) लागू करने का सीधा अर्थ भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है, जिसके विरुद्ध लड़ाई एक साथ कई मोर्चों पर पूरी ताकत से लड़ी जानी चाहिए। संसद में विरोधी दल पूरी तरह एकजुट नहीं है। राज्य सभा में भाजपा बहुमत में नहीं है, पर वहाँ भी वह नागरिकता संशोधन बिल पारित कराने में कामयाब रही । इक्के-दुक्के अपवादों को छोडकर मीडिया मोदी शाही के समक्ष नतमस्तक है।
सुप्रीम कोर्ट ने सी ए ए से सम्बन्धित सभी याचिकाओं (लगभग साठ) को सुनने से इंकार किया है और याचिककर्ताओं को उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी है। समाज मे एक प्रकार की खामोशी थी, जिसे तोड़ने का कार्य विश्वविद्यालय के छात्रों-छात्राओं ने किया और घोषित रूप से उन्होंने भारतीय संविधान और भारतीय लोकतन्त्र की रक्षा की मांग की। छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने जिस प्रकार की हरकतें जामिया और ए एम यू में कीं, ये सब क्या यह संकेत नहीं दे रही हैं कि अब हम ‘सेकुलर’ राष्ट्र नहीं रह रहे है। जाहिर है, देश जब ‘सेकुलर’ नहीं रहेगा, तो क्या रहेगा? भारत को धार्मिक हिन्दू राष्ट्र बनने से रोकना प्रत्येक भारतवासी का दायित्व है, विशेषतः हिन्दी भाषियों का, क्योंकि हिन्दी प्रदेश या उत्तर भारत ही भाजपा का गढ़ है। धर्म निरपेक्ष भारत को बचाने का आज मुख्य दायित्व हिन्दी भाषियों पर है और इसके लिए सबको एक साथ सड़कों पर उतरकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की जरूरत है। मोदी शाही के विरुद्ध यह समय हिंदुओं के इकट्ठे होने का समय है।
पिछले दिनों भाजपा के एक प्रवक्ता ने यह कहा था कि उन्हें 303 सीटें मच्छर मारने के लिए नहीं, देश सुधारने के लिए मिली है। यहाँ ‘सुधारने’ का अर्थ ‘विकास’ नहीं है। जो गलती हो चुकी है, उसे बदलना ही सुधारना है। भाजपा जिस आर एस एस से नाभिनाल बद्ध है, उस आर एस एस ने राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था। आर एस एस का, काँग्रेस से सदैव विरोध रहा और ब्रिटिश शासन से सहयोगी संबंध रहा। 8 अगस्त 1942 के काँग्रेस के ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव का आर एस एस और हिन्दू महासभा दोनों ने विरोध किया था । काँग्रेस अपनी स्थापना (1885) के समय से ‘सेकुलर’ रही है। उसकी वैचारिकता में आर एस एस जैसी कट्टरता नहीं है। उसे कट्टर राजनीतिक दल नहीं कहा जा सकता । ‘काँग्रेस मुक्त भारत’ का प्रच्छ्न्न अर्थ सेकुलर भारत की मुक्ति से है। भारतीय संविधान का विरोध आर एस एस ने किया था और मनु आधारित संविधान बनाने की बात कही थी। गांधी और नेहरू सदैव ‘सेकुलर’ रहे।
गांधी का विरोध खुले आम करना कठिन था, जिस कारण आर एस एस ने खुलकर कभी आलोचना नहीं की, पर वह उनके हिन्दू मुस्लिम ऐक्य और भाईचारे की नीति-संस्कृति का आलोचक बना रहा। नाथूराम गोडसे का आर एस एस से संबंध था और उसने गांधी की हत्या की। भाजपा के भीतर गांधी-नेहरू की समय–समय पर आलोचना की जाती रही है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भाजपा ने टिकट देकर भोपाल से सांसद बनाया और प्रज्ञा ठाकुर बार-बार गोडसे को राष्ट्र भक्त कहती रही है। गोडसे को राष्ट्र भक्त कहने का अर्थ है कि उसने जिसकी हत्या की, वह राष्ट्र द्रोही था। भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की बात नहीं है, पर अन्य जो बातें हैं , उनका सीधा सम्बन्ध मुस्लिमों से है, भाजपा मुस्लिम विरोधी राजनीतिक दल है। 2014 की लोक सभा मेँ उसका एक भी सांसद मुसलमान नहीं था।
भाजपा की वैचारिकी और सैद्धांतिकी सावरकर-गोलवलकर के सिद्धांतों से जुड़ी है।उसके सिद्धान्त और विचार, सावरकर की ‘हिन्दुत्व: हू इज ए हिन्दू’(1923) और गोलवलकर की ‘वी आर आवर नेशनहुड डिफाइंड’ (1940) और ‘बंच ऑफ थाट्स‘ (1966) से जुड़े हैं। इन तीन पुस्तकों के बाद ही दीनदयाल उपाध्याय और अन्य की पुस्तकें हैं। सावरकर की पुस्तक ‘हिन्दुत्व : हू इज ए हिन्दू’ का प्रकाशन-वर्ष 1923 है। यह पुस्तक(पुस्तिका) उन्होंने कैद मेँ रहने के कारण छद्म नाम ‘एक मराठा’ से लिखी थी। सावरकर के अनुसार हिन्दू वह है, जो भारत को एक साथ ‘पितृभूमि’ (फादरलैंड) और ‘पुण्यभूमि’(होलीलैंड) मानता हो। इस परिभाषा के बाद स्वाभाविक रूप से मुसलमान, ईसाई, फारसी और यहूदी अलग हो गए क्योंकि यह उनकी ‘पुण्यभूमि’ नहीं है। गोलवलकर ने 15 मई 1963 को मुम्बई में अपने एक भाषण में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने ‘राष्ट्रवाद’ का सिद्धान्त वैज्ञानिक रूप से व्याख्यायित सावरकर की महान पुस्तक ‘हिन्दुत्व’ से ग्रहण किया। उनके लिए यह एक ‘पाठ्य-पुस्तक’ (टेक्स्ट बुक) थी और एक ‘साइंटिफिक बुक’ भी ।
अंबेडकर ने इस पुस्तक की डिजाइनिंग को उनके दो ‘प्रयोजनों से जोड़ा। पहला प्रयोजन मुसलमान, ईसाई, फारसी और यहूदी को, भारत को ‘पुण्य भूमि’’ मानने के बाद, बाहर करना था और दूसरे बौद्ध, जैन, सिख आदि को शामिल करना था, जिनकी वेदों में अनास्था थी। सावरकर के अनुसार जिनकी पुण्यभूमि दूसरे देशों मे है – मुसलमानों, ईसाईयों, और यहूदियों की, वे भारत को अपना ‘राष्ट्र’ नहीं कह सकते। सावरकर ने धर्म और संस्कृति को राष्ट्रीय पहचान के साथ एक किया, जो ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की ‘जिनेसिस’ है। अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद 2014 में यह कहा था कि हमें अपनी विचारधारा फैलाने और राजनीति पर अपनी छाप छोडने का समय आ गया है। भाजपा की विचारधारा आर एस एस की , सावरकर–गोलवलकर की विचारधारा है। यह मुस्लिम विरोधी विचारधारा है। कुछ समय पहले मोहन भागवत ने स्पष्ट शब्दों में यह कहा था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है आर एस एस अपनी इस धारणा और विचारधारा से कभी अलग नहीं हुआ और न कभी अलग होने का प्रश्न है। उसकी विचारधारा की नींव ‘हिन्दुत्व’ है।
गोलवलकर ने सरसंघ चालक बनने (3 जुलाई 1940) के पूर्व अपनी पुस्तक की भूमिका 22 मार्च 1939 को लिखी थी। ‘वी आर आवर नेशनहुड डिफ़ाइंड’ की भूमिका में वी डी सावरकर के बड़े भाई गणेश डी (बाबाराम) सावरकर के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्होंने यह लिखा था कि मराठी में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘राष्ट्र मीमांसा’ उनका मुख्य स्रोत था। गोलवलकर ने ‘राष्ट्र’ (नेशन) और ‘राज्य’ (स्टेट) में अंतर किया था। राष्ट्र को उन्होंने ‘एक सांस्कृतिक ईकाई’ माना और ‘राज्य’ को ‘राजनीतिक’। उनका बल ‘हिन्दू राष्ट्र’ पर था। गोलवलकर ने लिखा – इस देश में हमारे ‘राष्ट्र’ का अर्थ हमेशा ‘हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए और कुछ नहीं’। हिन्दुत्व राष्ट्रीयता है, संघ की इस धारणा को काँग्रेस ने कभी नहीं स्वीकारा। समय समय पर वह चुनावी समीकरण में कई गलत कार्य करती रही है, पर गोलवलकर की विचारधारा से वह कभी सहमत नहीं रही है। हिन्दुत्व की अवधारणा सावरकर की है और हमें यह याद रखना चाहिए कि 2023 इस पुस्तक का प्रकाशन शती वर्ष है।इसी प्रकार 2025 आर एस एस का शताब्दी वर्ष है। ये दोनों (2023 और 2025) सामान्य वर्ष नहीं होंगे। मोदी शाही के समक्ष ये दोनों वर्ष हैं और इन्हें ध्यान में रखकर भाजपा सरकार आगामी दो तीन वर्षों में कुछ और फैसले ले सकती है। ‘हिन्दुत्व’ की अवधारणा को चुनौती देने की सामर्थ्य भारत के किसी भी राजनीतिक दल में नहीं है। गठबंधन- महागठबंधन की सभी बातें तात्कालिक हैं। वे सब “मिलते हैं बिछुड़ जाने को”।
‘काँग्रेस मुक्त भारत’ का स्लोगन काफी सोच-समझकर निर्मित किया गया था। कहने को राष्ट्रीय दल कई हैं पर मुख्य काँग्रेस और भाजपा ही है। क्षेत्रीय दलों की मुख्य चिंता अपने अपने राज्य में सर्वप्रमुख बन कर सरकार बनाने की है। भाजपा के बहुमत में आने के बाद 2014 से उनकी राष्ट्रीय और केन्द्र की भूमिका पूर्ववत नहीं रही। अब वे केन्द्र में सरकार बनाने की अहम भूमिका में नहीं हैं। भाजपा और मोदी शाही की भाषा कभी सीधी सपाट नहीं होती। जो उनके संकेतार्थों, प्रच्छन्न अर्थों, निहितार्थों को नहीं समझते वे सामान्य अर्थ ग्रहण कर उसके दूरगामी सोच और कार्य-व्यापार को समझ नहीं पाते। काँग्रेस- मुक्त भारत का अर्थ विपक्ष-मुक्त, धर्म-निरपेक्ष मुक्त भारत है। इस घोषणा के पीछे नेहरू की ‘लिगैसी’ पर भी ध्यान था। बिना किसी विपक्ष के जो भी शासन होगा, वह एकदलीय और सर्वसत्तात्मक होगा। विपक्ष कारगर स्थिति में नहीं है। विपक्ष अगर शक्तिशाली होता तो संस्थाएं इस तरह नष्ट नहीं की जातीं, उनकी स्वायत्तता समाप्त नहीं की जाती और जम्मू-कश्मीर के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता। अटल-आडवाणी के समय ऐसी स्थिति इसलिये नहीं थी क्योंकि भाजपा को बहुमत प्राप्त नहीं था। वे चाह कर भी हिन्दू राष्ट्र की दिशा में अग्रसर नहीं हो सकते थे। यह भ्रम है कि वह जोड़ी अधिक सहिष्णु और उदार थी।
संघ की पाठशाला में शिक्षित कोई भी प्रचारक कभी उदार नहीं हो सकता। एक उदार दृष्टि ही भारतीय समाज के आपसी सौहार्द्र और भाईचारे को स्वीकार कर सकती है। संघ परिवार से जुड़े सक्रियतावादियों के सोच का दायरा संकीर्ण है। सावरकर-गोलवलकर की हिन्दुत्व अवधारणा का स्वीकार सही अर्थों में भारतीयता और राष्ट्रीयता का तिरस्कार है। सरसंघ चालक (2000-2009) से पहले के एस सुदर्शन(18.6.1931-15.9.2012) ने 1989 में एक इंटरव्यू में 17 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के सम्बन्ध में यह कहा था कि ये ‘राष्ट्र’ नहीं हैं और न देश की संस्कृति से जुड़े हैं। ये क्यों ‘वंदे मातरम’ नहीं गाते? वे केवल अलग से पूजा-प्रार्थना के लिये स्वतंत्र हैं । उन्हें अन्य मुद्दों को स्वीकारना है। अगर वे इस देश के नागरिक रहना चाहते हैं, उन्हें अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में मस्जिदें छोड़ देनी चाहिए……सरकार को हिंदुओं के आगे झुकना होगा। शाहबानो के केस में उसने मुसलमानों के साथ ऐसा किया (इंडिया टुडे, 30 जून 1989)। 1989 में ही एक नया ‘स्लोगन’ बनाया गया – ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, ‘हर भारतवासी हिन्दू है’ और ‘हिन्दू जागे देश जागे’
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने छात्र जीवन में ही यह कविता लिखी थी – “हिंदु तन-मन, हिन्दू जीवन, रग रग हिन्दू मेरा परिचय“। 1939 में पंद्रह वर्ष की उम्र में वे आर एस एस में शामिल हुए थे। आडवाणी ने बी बी सी को 30 वर्ष पहले यह कहा था कि भाजपा को ‘हिन्दू पार्टी ‘ कहना गलत नहीं होगा। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह कहा था कि इसे ‘हिन्दू नेशनलिस्ट पार्टी’ कहा जा सकता है। हिन्दू राष्ट्र में एक मुस्लिम बहुल राज्य कैसे बना रहेगा ? कश्मीर को राज्य नहीं बने रहने दिया गया। उसे केंद्र शासित राज्य बनाना उसे केंद्र के अधीन रखना है। भाजपा ने ही जम्मू कश्मीर में पी डी पी से मिलकर सरकार बनाई थी। अब महबूबा मुफ्ती कैद में है। जो भाजपा और हिन्दुत्व के साथ , मोदी शाही के साथ नहीं है, वह अब ‘राष्ट्रद्रोही’ और ‘अर्बन नक्सल’ है। हिन्दुत्व, भारतीय, राष्ट्रीय, नागरिक सबके भाजपा के अपने अलग और निश्चित अर्थ हैं। इंदिरागांधी की तानाशाही और मोदी की तानाशाही में अंतर है।
काँग्रेस में ‘धर्म’ प्रमुख नहीं था, मोदी शाही में धर्म(हिन्दुत्व) प्रमुख है। गांधी और नेहरू सावरकर नहीं थे। दोनों की विचारदृष्टियाँ भिन्न थीं। गांधी के हिन्दू धर्म और संघ के हिन्दुत्व में अन्तर है। 1937 से 1942 तक सावरकर ने हिन्दू महासभा के अध्यक्ष की हैसियत से जो छह अध्यक्षीय भाषण दिये थे, वे ‘हिन्दू राष्ट्र दर्शन’ में पढे जा सकते हैं, जो उनके राजनीतिक दर्शन और विचारधारा का भंडार है। ‘हिन्दू राष्ट्र’ का दर्शन और यह विचारधारा सबके प्रति समानता, निष्पक्षता और न्याय के विरुद्ध है। यह संविधान की ‘उद्देशिका’ के विरुद्ध है। संविधान की प्रस्तावना का पहला शब्द है ‘हम’ और हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना इस ‘हम’(वी) पर प्रहार करता है। भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर किसी तरह का विभाजन नहीं है। अब भारतीय नागरिक को अपनी ‘नागरिकता’ सिद्ध करने को कहा जाएगा। नागरिकता संशोधन कानून(सी ए ए) का राष्ट्रव्यापी विरोध संविधान और लोकतन्त्र की रक्षा के लिए है। मोदी शाही में भारतीय एकता नहीं, हिन्दू एकता है। पर सभी हिन्दू न तो मोदी शाही के साथ हैं और न भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के हिमायती।
आज हिन्दी प्रदेश और उत्तर भारत पर सबसे बड़ा दायित्व है। देश को हिन्दू राष्ट्र बनने से रोकने, ऐसी शक्तियों के इकट्ठे होने का समय है यह, जिसमें हमें यह कहना होगा – ‘हम हिन्दू हैं और हिन्दू राष्ट्र के विरोधी हैं’’।सी ए ए के विरोध का मुख्य कारण धर्म के नाम पर बनाया गया कानून है जिसमें मुसलमान शरणार्थी का कोई उल्लेख नहीं है। गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला कहा गया था। उस समय वहाँ मोदी और शाह थे। अब मोदी और शाह केन्द्र में हैं – प्रधानमंत्री और गृहमंत्री। हमें हमेशा गांधी और पटेल को याद करना होगा, जो गुजराती थे और पूरी तरह भारतीय। भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनने देना भारत की आत्मा को मारना है। ‘हिन्दू राष्ट्र बनने पर भारत केवल ‘ठठरी’ ही बना रहेगा। मोदीशाही को रोकने वाली शक्तियाँ राजनीतिक नहीं, सामाजिक हैं। 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ , 2023 में सावरकर के ‘हिन्दुत्व’ की प्रकाशन शती और लोकसभा का चुनाव और 2025 में आर एस एस का शताब्दी वर्ष है, हमें हमेशा याद रखना होगा और धार्मिक, सांप्रदायिक, हिन्दू भारत के खिलाफ उठ खड़ा होना होगा। यह समय की मांग है। इसीसे हमारे मनुष्य होने और भारतीय होने की पहचान भी होगी ।
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