मृत्युंजय श्रीवास्तव
-
May- 2025 -30 Mayमीडिया
आजाद भारत की पत्रकारिता के दृश्य-दर-दृश्य
किसी देश की पत्रकारिता उस देश की नब्ज होती है। इस नब्ज को सही-सही पढ़ने से जाना जा सकता है कि देश का ऊंट किस करवट बैठा हुआ है। यह भी कि भविष्य में वह ऊंट किस दिशा में…
Read More » -
Mar- 2025 -25 Marchकृत्रिम मेधा
मानव चेतना का सौदागर
21 वीं सदी में भारतीय लोगों में नयी चीजों को स्वीकार करने का उत्साह इस कदर है कि वे चेतावनी की परवाह नहीं करते। अनसुना करते हैं। 19 फरवरी को एलन मस्क ने ‘ग्रोक थ्री’ लॉन्च किया है। भारत…
Read More » -
Jan- 2024 -13 Januaryविशेष
सबलोग के पंद्रह वर्ष
( सबलोग के प्रकाशन के पंद्रह वर्ष पूरे होने पर 13 जनवरी 2024 को रांची में एक आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से लेखक-विचारक इकट्ठे हुए।) ‘हौसला हो तो सूरत बदल सकती है’ यह…
Read More » -
Aug- 2023 -1 Augustसिनेमा
शब्द, दृश्य और बहुसंख्यकवाद
शब्दों का कितना मारक असर होता है इसका अहसास बहुतों को पहली बार तब हुआ होगा जब राहुल गांधी को सार्वजनिक रूप से शहजादा और पप्पू कहा गया था। भारतीय राजनीति में शब्दों से विपक्ष को घायल करने का…
Read More » -
May- 2023 -11 Mayपुस्तक-समीक्षा
गोपेश्वर सिंह का आत्मावलोकन
गोपेश्वर सिंह की नई पुस्तक ‘आलोचक का आत्मावलोकन’ का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली (2023) में इसी जनवरी में हुआ। हिन्दी में गोपेश्वर सिंह ऐसे आलोचक हैं जो अपने को गाँधी, लोहिया और जेपी के चिंतन के करीब पाते…
Read More » -
Aug- 2022 -6 Augustमुद्दा
हनुमान होना क्या होना है
हनुमान वह हैं जिन्होंने राम का मन्दिर मन में बनाने का सन्देश दिया था। हनुमान वह हैं जिनसे तीनों लोक उजागर हुआ है। हनुमान वह हैं जो संकट मोचन हैं। ऐसा इसलिए कि हनुमान ज्ञान गुण के सागर हैं।…
Read More » -
Dec- 2021 -13 Decemberराजनीति
ममता बनर्जी की चमक
अनोखे जीवट वाली ममता बनर्जी भारतीय राजनीति की जानकार हैं। राजनीतिक हवा की तासीर भाँपने के लिए उन्हें किसी पीके के आँकड़ों की जरूरत नहीं पड़ती। जनता का मिजाज भी समझती हैं और राजनीतिक चाल भी। यह भी जानती…
Read More » -
Nov- 2021 -15 Novemberसामयिक
भारत बाजार में नंगा है
दादा और गुरु दोनों शब्दों का अर्थ विस्तार हुआ है। अब दादा वे नहीं हैं, जिन्हें हम दादा कहा करते थे। गुरु भी अब वे नहीं हैं जो विधाता का बोध कराते थे। दादा अब वह है जो दमन…
Read More » -
10 Novemberसामयिक
लोकतन्त्र का पचहत्तरवां साल और लड़की
‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ ‘ यह नए हिंदुस्तान की नींव रखने वाला एक नारा नहीं, एक सोच है । यह नए भारत का आह्वान है। आधी आबादी को बराबरी का वादा करता है। लोकतन्त्र को यह नया आयाम…
Read More » -
Oct- 2021 -26 Octoberसाहित्य
डॉ.कृष्णबिहारी मिश्र की दरवेशी दृष्टि
लेखक तीन तरह के होते हैं। एक वे जो लिखते हैं, मगर लेखक नहीं होते। दूसरे वे जो एक्टिविस्ट होते हैं और लिखते हैं। तीसरे तरह के विरल लेखक वे होते हैं जो लिखते हैं और लेखक होने के…
Read More »