पश्चिम बंगालसाहित्य

सांस्कृतिक आयोजनों का अनोखा हिन्दी मेला

                      

  • मधु सिंह

पश्चिम बंगाल के सिटी ऑफ़ जॉय, कोलकाता की साहित्यिक संस्था सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा 26 दिसंबर से 1 जनवरी 2019 के बीच 7 दिवसीय राष्ट्रीय साहित्योत्सव ‘24 वें हिंदी मेला’ का आयोजन किया गया। हिंदी मेला के प्रथम दिन राममोहन हॉल में नाट्योत्सव के साथ मेले का उद्धाटन किया गया। इस मौके पर प्रसिद्ध साहित्यकार विजय बहादुर सिंह ने कहा कि हिंदी मेला भारतीय संस्कृति की एक टूट रही कड़ी को बचाने का प्रयास है।  प्रसिद्ध पत्रकार विश्वंभर नेवर ने कहा कि निरंतर 24 सालों तक सफलता पूर्वक हिंदी मेला करते रहना बंगाल में हिंदी के सम्मान को बनाए रखने का एक बड़ा संकल्प है। रामनिवास द्वेदी ने कहा कि हिंदी मेला कलकत्ते का गौरव और हिंदी भाषियों के आत्मविश्वास का प्रतीक है। संस्था के महासचिव डॉ राजेश मिश्र ने कहा कि हिंदी मेले के रजत जयंती वर्ष का आगाज है इस साल का हिंदी मेला। मिशन के अध्यक्ष डॉ शंभुनाथ ने कहा कि हिंदी मेला युवाओं का, युवाओं द्वारा और युवाओं के लिए एक राष्ट्रीय अभियान है। इसका लक्ष्य एक ऐसी संस्कृति का निर्माण करना है जिसमें सहिष्णुता, भाईचारा और नए सृजन का प्रवेश हो।

इस साहित्योत्सव के दूसरे दिन फेडरेशन हॉल में हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता, चिंत्राकन और कविता पोस्टर का आयोजन किया गया। चित्रांकन और कविता पोस्टर में बड़े पैमाने पर शिशुओं और युवाओं ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर बोलते हुए डा.गीता दूबे, डा.इतु सिंह तथा रितेश पाण्डेय ने ऐसी प्रतियोगिताएं के महत्व को रेखांकित किया| कार्यक्रम का संचालन विक्की केशवानी, इबरार खान, मधु सिंह, उत्तम ठाकुर, सूर्यदेव राय, सुशील पांडेय, मिथुन लाहेरी, रतन राजभर और धन्यवाद ज्ञापन पार्वती शा ने किया।

हिंदी मेला के तीसरे दिन फेडरेशन हॉल में बच्चों और नौजवानों द्वारा निराला, अज्ञेय, दिनकर , मुक्तिबोध, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, राजेश जोशी, अरुण कमल, विनोद कुमार शुक्ल, कुमार अम्बुज, अवतार सिंह पाश और केदार नाथ सिंह की कविताओं की भावप्रवण आवृत्ति की गयी| हिंदी में काव्य आवृत्ति परंपरा के उत्कर्ष पर टिप्पणी करते हुए कवि राज्यवर्द्धन ने कहा कि इससे विद्यार्थियों में अच्छी भाषा के संस्कार पैदा होते हैं। डॉ ऋषिकेश रॉय का कहना था कि नौजवानों द्वारा काव्य आवृति का निरंतर अभ्यास नई पीढ़ी की मानवता पर आस्था की सूचना है। प्रो. सुनंदा चौधरी राय ने कहा कि यह मंच विद्यार्थी के अपने व्यक्तित्व को निखारने का अवसर प्रदान करता है। हिंदी के विद्यार्थी पाठ्यक्रम से बाहर जाकर हिंदी की श्रेष्ठ कविताओं को अपने जीवन का अंग बना रहे हैं। सुनीता श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदी को आगे बढ़ाने में हिंदी मेला मील के पत्थर की तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। रीतेश पांडेय, संजय राय तथा सौमित्र जायसवाल ने काव्य संस्कार तैयार करने में काव्य आवृत्ति जैसी प्रतियोगिता के महत्व पर प्रकाश डाला| संचालन करते हुए ममता पांडेय कहा कि काव्य आवृत्ति एक चुनौतीपूर्ण कला है। राहुल गौड़, विशाल पांडेय, दीपक ठाकुर, जूही करन, मिथिलेश साव, टिंकू लाहेरी, राजकुमार मिश्र, अनिल साह, दिव्या प्रसाद ने भी संचालन में योगदान दिया| धन्यवाद ज्ञापन राहुल शर्मा ने किया।

सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के हिंदी मेला का चौथा दिन काव्य संगीत, लोकगीत और भाव नृत्य को समर्पित था। शुरूआत गांधी के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तैने कहिए जे पीर पराई जाने रे’ के गायन से हुई। कबीर, मीरा, प्रसाद, नागार्जुन और दुष्यंत कुमार की कविताओं की संगीत पर प्रस्तुति की गईं। कवि विमलेश त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी मेला नई प्रतिभाओं को सामने लाने का एक बड़ा मंच है जिसने देश भर के साहित्यकारों को आकर्षित किया है। उमा दगमान ने कहा कि हमें गर्व है कि हिंदी मेला के रूप में इतना बड़ा आयोजन होता है। यह हिंदी भाषियों के आत्मसम्मान का प्रतीक है। डॉ सुमिता गुप्ता ने कहा कि हिंदी मेला की कोशिश हिंदी काव्य को संगीत और नृत्य से जोड़ने की है| साहित्य को कलाओं से जोड़ना जरूरी है। पीयूष कांत राय ने कहा कि लोकगीत आम जनता के ह्दय का स्पंदन हैं जिसे बाजारू लोकगीत विकृत कर रहे हैं। डॉ राजेश मिश्र ने लोकगीत को स्वस्थ रूप देन की अपील की। मंच संचालन पंकज सिंह, पूजा गुप्ता, प्रो. मंटू कुमार, अनूप यादव, पूजा गौड़, टिंकू लाहेरी, अनोज कुमार साव, राहुल शर्मा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन अनुपमा सिंह ने किया।

साहित्योत्सव के पांचवें दिन कोलकाता के अलावा वर्दवान, उत्तर 24 परगना और हावड़ा के युवा कवियों ने अपनी कविता का पाठ किया। वरिष्ठ कवियों ने भी अपनी रचनाएँ पढ़ीं। लगभग 50 कवियों की रचनाओं का फोकस था – स्त्री आत्म सम्मान, भाईचारा और दुनिया में हिंसा से छाया भय| इस अवसर पर विमलेश त्रिपाठी के नए कविता संकलन ‘यह मेरा दूसरा जन्म है’ का लोकार्पण हिंदी मेला में विशेष अतिथि के रुप में उपस्थित डॉ विजय बहादुर सिंह, अवधेश प्रधान और किशन कालजयी ने किया। इसी दिन ‘गांधी प्रासंगिक हैं’ विषय पर वाद-विवाद और आशु भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के कुल 44 प्रतिभागियों ने भाग लिया। बतौर निर्णायक डॉ विवेक सिंह ने कहा कि वाद-विवाद प्रतियोगिता के जरिए हिंदी मेला के इस मंच ने विद्यार्थियों के बीच गांधी को विमर्श का विषय बनाया। डॉ प्रीति सिंघी ने कहा कि आशु भाषण विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है। कार्यक्रम का संचालन राजकुमार मिश्रा, कुसुम वर्मा, अंजलि सिंह, डॉ श्रीनिवास सिहं यादव, नवोनिता दास और प्रवींद्र कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन धनंजय प्रसाद ने किया।

छठवें दिन ‘गांधी और आज का भारत’ विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद के पहले सत्र में गांधावादी चिंतक आत्माराम सरावगी ने कहा कि आज गांधी के बिना उनका भी काम नहीं चल रहा है जो गांधी के विरोधी हैं। कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ आशुतोष ने कहा कि आज के भारत में नई मशीनें और कृत्रिम मेधा आने से बेरोजगारी बढ़ रही है, ऐसे में साधारण लोगों में आत्मनिर्भरता कैसे आएगी, जो गांधी का स्वप्न था। प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के प्रो. वेदरमण ने कहा कि गांधी का व्यक्तित्व भीतर और बाहर से एक था| ‘संवेद’ और ‘सबलोग’ पत्रिका के सम्पादक किशन कालजयी ने कहा कि आजादी से पहले की तुलना में 21वीं सदी में गैर-बराबरी बढ़ी है। गांधी अंतिम जन तक राष्ट्र की शक्ति पहुंचाने के बारे में कहते थे। पहले सत्र के अध्यक्षीय भाषण में  बनारस हिन्दू  विश्वविद्यालय के प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि गांधी जी परंपरागत राजनीतिज्ञों और अंग्रेजी सत्ता के लिए चुनौती थे। उन्होंने विचारों की नई जमीन दी, सत्य तथा अहिंसा का प्रचार किया और जमीनी सच को राष्ट्रीय सच बनाया। दूसरे सत्र में डॉ गीता दूबे ने कहा कि गांधी को जानने के लिए गांधी की राह से गुजरते हुए उनके पूरे जीवन को जानना होगा। केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राम विनोद रे ने कहा कि गांधी ने खादी और हिंदी के जरिए भारत को जोड़ने का काम किया। गांधीवादी चिंतक डॉ शंकर सान्याल ने कहा कि गांधी शांति और अंहिसा के पुजारी थे। रांची विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि ज्ञान का वर्गीकरण घातक होता है। उन्होंने गांधी को आमजन का प्रतिनिधि बताया। डॉ शंभुनाथ ने कहा कि वर्तमान यथार्थ की गांधी के आदर्शों से दूरी काफी बढ़ गई है। गांधी ने बड़ा काम यह किया कि उन्होंने लोगों के मन से भय दूर कर आत्मविश्वास पैदा किया। इस सत्र के अध्यक्ष आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि गांधी हमें स्वालंबन की भावना को सिखाना चाहते थे। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी स्मृति को बचाए रखना चाहिए क्योंकि स्मृति रहेगी तो हजार इतिहास लिखे जा सकते हैं।

अंतिम दिन सभी विजयी प्रतिभागियों ने पुन: श्रेष्ठ कविताओं का गायन, आवृत्ति, और उन पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किए जिन्हें काफी सराहा गया। स्त्री उत्पीड़न का विरोध अधिकांश नृत्यों का केंद्रीय विषय था। लगभग 200 प्रतिभागियों को उपहार, नगद सम्मान राशि और स्मृति चिह्न प्रदान किए गए। इस वर्ष के ‘माधव शुक्ल नाट्य सम्मान’ से पुरस्कृत कल्पना ठाकुर ने कहा कि पिछले 24 सालों से हिंदी मेला से नई कला प्रतिभाएं सामने आ रही हैं। साहित्य और कलाएं हमारी सांसें हैं और इनके बिना जीवन में सच्चा आनंद संभव नहीं है। वहीं ‘युगल किशोर सुकुल पत्रकारिता सम्मान से’ नवाजी गईं मनोज्ञा लोइवाल ने कहा कि युवाओं में सबसे ज्यादा जरूरी यह आत्मविश्वास पैदा करना है कि उन्हें पत्रकारिता, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ देना है। प्रो. संजय कुमार जायसवाल ने कहा कि हिंदी मेला को इस पड़ाव तक पहुचाने में कोलकाता और आस पास के हिंदी प्रेमियों का बड़ा हाथ है|

गौरतलब है कि युवाओं की यह संस्था किसी प्रकार के सरकारी या कॉरपोरेटी मदद के बिना, आपस में अर्थ-सहयोग करके पिछले 24 साल से इस उत्सव का आयोजन कर रही है| सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा हिंदी मेला अपसंस्कृति के विरूद्ध एक मुहिम के रूप में सक्रिय रहा है। यह हिंदी की युवा प्रतिभाओं का अपना सांस्कृतिक मंच है।

लेखिका विद्यासागर विश्वविद्यालय, कोलकाता में शोधार्थी हैं|

सम्पर्क- +919883613002, madhucute6@gmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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