चक्रवाती तूफानों की संरचना और कारण
बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवाती तूफ़ान यास बुधवार की सुबह तक़रीबन नौ बजे उत्तरी ओडिशा के समुद्र तट और उससे सटे पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों से टकरा गया। सुबह 10.30 से 11.30 बजे के बीच यह बालासोर पहुँचा जहाँ पर हवा की रफ़्तार 130-140 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच थी। मौसम विभाग के मुताबिक़, कुछ इलाक़ों में हवा की रफ़्तार 155 किलोमीटर प्रति घंटा थी और कुछ जगहों पर समुद्र में दो मीटर से ऊंची लहरें उठ रही थीं।
तूफ़ान के कारण ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्य ख़ासे प्रभावित हुए हैं। ओडिशा में बालासोर, भद्रक, जगतसिंहपुर और केंद्रपाड़ा प्रभावित हुए हैं तो वहीं पश्चिम बंगाल के दक्षिणी और उत्तरी 24 परगना, दिगहा, पूर्वी मिदनापुर और नंदीग्राम पर बहुत असर पड़ा है। कोलकाता के 13 निचले इलाक़ों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हुए। ओडिशा ने अपने यहाँ पर 5.8 लाख लोगों को और पश्चिम बंगाल ने 15 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।
मई-जून में चक्रवाती तूफान आना आम बात है। ज्यादातर चक्रवाती तूफान बंगाल की खाड़ी में उठते हैं। अप्रैल से दिसंबर तक तूफानों का मौसम होता है। लेकिन 65 फीसदी तूफान साल के अंतिम चार माह सितंबर से दिसंबर के बीच आते हैं। फानी, अंफन आए ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई। पश्चिमी तट पर ताउते तो अभी गुजरा है। पिछले 120 साल में आए सभी चक्रवाती तूफान के 14% ही भारत के पास के अरब सागर में आए हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वालों की तुलना में अरब सागर के चक्रवाती तूफ़ान अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं।
हालांकि ताउते एक बड़ा और विनाशक चक्रवाात था। इतिहास के 35 सबसे घातक उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में से 26 चक्रवात बंगाल की खाड़ी में आए हैं। इन तूफानों से बांग्लादेश में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है। पिछले 200 साल में दुनिया भर में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात से हुई कुल मौत में से 40 फीसदी सिर्फ बांग्लादेश में हुई है। जबकि भारत में एक चौथाई जानें गई हैं। इतिहास के 35 सबसे घातक उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में से 26 चक्रवात बंगाल की खाड़ी में आए हैं। इन तूफानों से बांग्लादेश में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात तीव्र गोलाकार तूफान होते हैं जो कि गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में 119 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से ज्यादा और भारी बारिश के साथ उत्पन्न होते हैं। मुख्य रूप से जीवन और संपत्ति का सबसे बड़ा नुकसान हवा से नहीं बल्कि तूफान के बढ़ने, बाढ़, भूस्खलन और बवंडर सहित अन्य सह घटनाओं से होता है। चक्रवाती तूफान अटलांटिक महासागर और पूर्वी उत्तरी प्रशांत महासागर में इसे हरिकेन के रूप में जाना जाता है तथा पश्चिमी प्रशांत महासागर में इसे टाइफून के नाम से जाना जाता है। दक्षिण प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में, इसे उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) चक्रवात के रूप में जाना जाता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को कम वायुमंडलीय दबाव, तेज़ हवाओं और भारी बारिश से चिह्नित किया जाता है। अत्यधिक तेज स्थिति में हवाएं 240 किमी प्रति घंटे से अधिक हो सकती हैं और प्रचंड रूप में वायु 320 किमी प्रति घंटे से अधिक हो सकती है। इन तेज हवाओं के कारण मूसलाधार बारिश और विनाशकारी घटनाएं हो सकती हैं जिन्हें तूफानी लहर भी कहा जाता है।
मूल रूप से, यह समुद्र की सतह का एक उत्थान है जो सामान्य स्तर से 6 मीटर ऊपर पहुंच सकता है. दुनिया के उष्णकटिबंधीय (tropical) और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, उच्च हवाओं और पानी के संयोजन वाले ऐसे चक्रवात तटीय क्षेत्रों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं। चक्रवातों को ऊर्जा, संघनन प्रक्रिया द्वारा (गुप्त ऊष्मा) ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति से ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं। बहिरुष्ण चक्रवात अपनी ऊर्जा दो भिन्न वायुराशियों के क्षैतिज तापीय अंतर से प्राप्त करते हैं।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में वायु की अधिकतम गति पृथ्वी की सतह के निकट जबकि बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में क्षोभ-सीमा के पास सबसे अधिक होती है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि ऊर्जा उष्णकटिबंधीय चक्रवात के ‘ऊष्ण कोर’ क्षोभमंडल में, जबकि अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात में ‘ऊष्ण कोर’ समताप मंडल में तथा ‘शीत कोर’ क्षोभमंडल में पाई जाती है। ‘ऊष्ण कोर’ में वायु अपने आसपास की वायु से अधिक गर्म होती है, अत: निम्न दाब केंद्र बनने के कारण वायु तेज़ी से इस केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। चक्रवातों के टकराने वाले स्थल पर पहुँचने पर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है जिससे ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं। वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा प्रारंभ में पूर्व से पश्चिम की ओर होती है क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। लेकिन लगभग 20° अक्षांश पर ये चक्रवात कोरिओलिस बल के प्रभाव के कारण दाईं ओर विक्षेपित हो जाते हैं तथा लगभग 25° अक्षांश पर इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी ही जाती है। 30° अक्षांश के आसपास पछुआ हवाओं के प्रभाव के कारण इनकी दिशा पूर्व की ओर हो जाती है।
वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ, जो उष्ण कटिबंध से दूर, मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं, उन्हें बहिरुष्ण या शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को उनकी गति के अनुसार नामित किया जाता है: जब अधिकतम निरंतर गति 63 किमी/घंटा से कम होती है तो इसे उष्णकटिबंधीय डिप्रेशन के रूप में जाना जाता है। जब अधिकतम निरंतर गति 63 किमी/घंटा से अधिक होती है तो इसे उष्णकटिबंधीय तूफान (स्टॉर्म) के रूप में जाना जाता है। बेसिन के आधार पर, जब अत्यधिक निरंतर गति 116 किमी / घंटा से अधिक हो जाती है, तो इसे हरिकेन, टाइफून, गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवात, गंभीर तूफान या उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप में जाना जाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात में अपेक्षित नुकसान न केवल हवा की गति पर निर्भर करता है, बल्कि हवा की अवधि और वर्षा के दौरान और बाद में वर्षा सहित अन्य कई कारकों यथा दिशा और तीव्रता के अचानक परिवर्तन, संरचना, आकार और तीव्रता पर भी निर्भर करता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उष्णकटिबंधीय चक्रवात कई तरह से स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं।
यह डूबने से हुई मृत्यु और अन्य शारीरिक आघात का कारण होता है। यह पानी और बेक्टीरिया जनित संक्रामक रोगों के खतरे को भी बढ़ाता है। बाढ़ के पानी में सीवेज और रसायन शामिल हो सकते हैं, धातुओं या कांच और बिजली की लाइनों से बने तेज वस्तुओं को छिपा लाता है या खतरनाक सांप या सरीसृप भी बहाव में आ सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप चोट, इलेक्ट्रोक्यूशन, काटने और बीमारियां भी हो सकती हैं। मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है जो आपातकालीन स्थितियों से भी सम्बन्धित हैं।
स्वास्थ्य तंत्र, सुविधाओं और सेवाओं को बाधित करता है।इसके कारण प्रभावित और अन्य बीमार लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करने में दिक्कत होती है। और वो भी तब जब इसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत होती है। भोजन और पानी की आपूर्ति और सुरक्षित आश्रय सहित बुनियादी सुविधाओं को नुकसान पहुंचता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 1998-2017 के बीच दुनिया भर में तूफान के कारण लगभग 726 मिलियन लोग प्रभावित हुए थे। जाहिर है आज के समय में यह एक बड़ी और विनाशकारी आपदा है जिससे पूरा विश्व प्रभावित होता है।