संगठित जिहाद का जड़ से इलाज हो !
‘सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’ आप भी एक महिने से सुन रहे होंगे इस नारे को! कल दिन दहाड़े कन्हैयालाल जो कि उदयपुर में एक दर्जी की दुकान चलाते थे, का सर दो जिहादियों ने तन से जुदा कर दिया। उन्होंने इस अमानवीय कृत्य से पूर्व धमकी वाले विडियो वायरल किए। हत्या करते समय का विडियो बना कर वायरल किया और फिर हत्या के बाद एक विडियो बनाया जिसमें वो भारत के प्रधानमंत्री की गर्दन तक अपने छुरे के पहुंचने की कामना अल्लाह से करता हुआ देखा जाता है। क्या रसूल की शान के नाम पर इन जिहादियों ने एक गरीब दर्जी की जिस निर्ममता से हत्या कर दी, उसके विरोध में वो जमात सड़कों पर उतर कर फांसी की मांग करेगी जो नुपुर शर्मा के उस बयान पर देश भर में आगजनी की थी? हालांकि नुपुर शर्मा ने कोई अपना मत नहीं दिया था बल्कि इस्लामिक पुस्तकों में वर्णित तथ्यों को ही ‘क्वोट’ किया था। नहीं, कोई सड़कों पर नहीं उतरने वाला है। कुछ लोगों ने घटना की निंदा अवश्य की है परन्तु याद रहे यही वो लोग हैं जिन्होंने सर कलम करने का माहौल भी बनाया था।
पैगम्बर के अपमान के नाम पर संपूर्ण विश्व में हत्याएं होती रहती हैं। ‘रंगीला रसूल’ पुस्तक प्रकाशित करने वाले हुतात्मा महाशय राजपाल की 6 अप्रैल 1929 को निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी गई थी। वर्तमान में कमलेश तिवारी, और कन्हैयालाल जैसे भी सैकड़ों नाम हैं जिनकी जिहादियों ने निर्मम तरीके से हत्या की और उसके बाद उनके पृष्ठपोषकों ने मीडिया के माध्यम से कड़ी निन्दा की तथा इस्लाम को शांति का मजहब घोषित करते रहे। आज जनसंख्या विन्यास को अनुप्रवेश, धर्मांतरण तथा प्रजनन क्रिया के माध्यम से तीव्र गति से बदला जा रहा है। पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी अनुप्रवेशकारियों का स्वर्ग बन चुका है। यहाँ से ये बांग्लादेशी दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे भारत के महत्वपूर्ण शहरों में तथा नेपाल, जैसे पड़ोसी देशों में आसानी से चले जाते हैं। कुछ दिन पहले मीडिया के माध्यम से खबर आई कि दिल्ली का शाहीन बाग बांग्लादेशियों का गढ़ बन चुका है। उत्तराखण्ड जैसे प्रदेश में जहाँ कुछ दशक पहले तक कोई घनी मुस्लिम आबादी नहीं दिखती थी वहाँ धार्मिक नगरी हरिद्वार में सड़कों को बंद कर वृहद आंदोलन करती हुई हजारों की भीड़ दिखी। आखिर ये उन्मादी भीड़ शुक्रवार की नमाज के बाद सड़कों पर किसके कहने पर उतर रही है? इसके पीछे की मूल शक्ति और उत्प्रेरक कौन हैं?
आप कन्हैयालाल के हत्यारों के उस विडियो को याद किजिए। उनके चेहरे पर न पछतावे का भाव है, न कानून का भय है। वे इस हत्याकांड की सफलता पर गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। वे अपील कर रहे हैं कि हमने एक का सर कलम किया औरों का तुम करो। ये उन्मादियों का नहीं ब्रेनवाश किए हुए जिहादियों का लक्षण है। कसाब को भी अपने कुकृत्य पर गर्व था और अफजल गुरु ने भी अपने परिवार को जो पत्र लिखा था उसमें उसने उनसे गर्व करने का आग्रह किया था। क्या ऐसी मानसिकता वाली जमात के द्वारा की गई हत्याओं और राष्ट्र विरोधी साजिशों को एक व्यक्ति या समूह द्वारा किए गए अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है? नहीं, यह एक समर्थ और शक्तिशाली तन्त्र के द्वारा परिचालित अघोषित युद्ध है जिसका एक वृहद लक्ष्य है। इन घटनाओं को भारतीय जनमानस साधारण हत्या न समझे। महाशय राजपाल की हत्या तीन अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा प्रयास कर की गई। कन्हैयालाल की हत्या में भी एक पूरा तन्त्र सम्मिलित हैं। आई बी आफिसर अंकित शर्मा की हत्या हो या फिर पी एफ आई से जुड़े लोगों के द्वारा की गई हत्याएं सभी का शिकार एक धर्म विशेष के व्यक्ति रहे हैं।
महात्मा गांधी ने प्रेम, सहयोग, सद्भावना और आत्मियतापूर्ण व्यवहार से हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य के लिए आजीवन प्रयास किया। स्वाधीन भारत के सभी जननेताओं ने भी तथाकथित गंगा जमुनी तहजीब की रक्षा और भाईचारे के पोषण के लिए तमाम प्रयास किए। वर्तमान सरकार की तो यह घोषित नीति है कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’, परन्तु क्या महात्मा गांधी हों या नरेंद्र मोदी इस एक बड़े जमात का इतने त्याग और प्राणों के बलिदान के बाद की असह्य पीड़ा को भी जीभ को दांत से दबा कर बर्दाश्त करने के बाद भी हृदय परिवर्तन करवा पाए? क्या खिलाफत आन्दोलन से जिस तुष्टिकरण की ग़लत परंपरा का प्रारंभ हुआ वो ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने में माहिर इस जिहादी जमात का कायाकल्प कर पाई? नहीं! कारण? बच्चों को जब वे बैठना सिखते हैं उसी आयु से मदरसों में जो मजहबी तालिम दी जाती है, उस तालिम के कारण तमाम कोशिशों के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे। बचपन से काफीर और बिरादर की पहचान कराई जाती है। मजहबी कट्टरता के बीज बच्चों के कोमल मन में बोए जाते हैं।
इन मदरसों से तालिम लेने वाले भारत के कई गणमान्य व्यक्तियों ने सरकार को इस बारे में सचेत किया है। उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद वसीम रिज़्वी जिनका हिन्दू धर्मग्रहण करने के बाद नया नाम जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी हो गया है, ने प्रधानमंत्री को 21 जनवरी 2019 को पत्र लिखकर यह मांग की कि “भारत के सभी मदरसों को तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए।” उन्होंने इसके पीछे का कारण बताया कि “हमने दुनिया भर में देखा है कि आतंकवादी गतिविधियों की साजिश रचने और योजना बनाने में सबसे पहले बच्चे ही निशाने पर होते हैं, और इस्लामिक स्टेट से बढ़ते खतरे के साथ, डर है कि यह भारत को भी प्रभावित करेगा। अगर देश में मदरसों को तत्काल प्रभाव से बंद नहीं किया गया, तो अगले 15 वर्षों के भीतर देश के आधे मुसलमान इस्लामिक स्टेट की विचारधाराओं से प्रभावित हो जाएंगे।” केरल एवं देश के अन्य भागों से आई एस आई एस संगठन में गए लड़ाकों की खबर एजेंसियों ने दी भी है। स्लीपर सेल्स की संख्या कितनी होगी यह तो सक्षम एजेंसियां ही जानें।
ए एन आई की खबर के अनुसार केरल के राज्यपाल और इस्लाम में सुधार के सशक्त पक्षधर माननीय आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि “हम तब परेशान होते हैं जब लक्षण दिखते हैं लेकिन हम बीमारी को नजरअंदाज कर देते हैं। मदरसों में बच्चों को सिखाया जा रहा है कि ईशनिंदा की सजा सिर काटना है। इसे खुदा के कानून के तौर पर पढ़ाया जा रहा है। मदरसों में जो सिखाया जा रहा है, उसकी जांच होनी चाहिए।”
भारत में 24 हजार से अधिक मदरसे हैं। इन मदरसों के लिए केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें बजट निर्धारित करती हैं। क्या भारत के करदाताओं के पैसे से एक धर्मनिरपेक्ष देश में मजहबी तालिम के लिए बजट निर्धारित करना उचित है? भारत के नीति निर्धारकों को एक बार यह विचार अवश्य करना चाहिए कि मदरसों के लिए हजारों करोड़ों के बजट का आवंटन कर देश ने क्या हासिल किया? सरकारें इमामों को मासिक वेतन देती हैं। क्या इस पर विचार नहीं होना चाहिए कि स्वैच्छिक रूप से अपनी मजहबी विचारधारा को फैलाने और तत्संबंधी कार्य करने के लिए जो व्यक्ति समर्पित है उसे सरकारी खजाने से वेतन क्यों दिया जाए? क्या ये इमाम सरकारी नौकर हैं? के रहमान खान की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति 2009 के रिपोर्ट के अनुसार वक्फ बोर्ड के पास 4 लाख पंजिकृत संपत्ति और 6 लाख एकड़ जमीन है ! इतनी संपत्ति कैसे आई और इसका क्या उपयोग हो रहा है इसकी जाँच भी जरूरी है।
आर्थिक रूप से सक्षम, सरकारी योजनाओं से पोषित और अपनी विस्तारवादी नीतियों तथा भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त तन्त्र का सार्विक अध्ययन कर उनके पूर्ण कायाकल्प का प्रयास अगर केंद्र और राज्य सरकारें नहीं करती हैं तो वैश्विक मानवता के लिए खतरा बन चुके जमात से सभ्य समाज के जीवन की सुरक्षा और उनकी स्वतन्त्रता के संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा सरकारें नहीं कर पायेंगी।जिहादियों के पृष्ठपोषकों और अन्य देशी-विदेशी सहयोगियों को भी जाँच के दायरे में ले कर उचित कार्रवाई करनी होगी। राजनैतिक अंकगणित से उपर उठकर संवैधानिक और विधायी शक्तियों का प्रयोग कर मानवता तथा भारत विरोधी तन्त्र को संपूर्ण रूप से नेस्तनाबूद करने के लिए सरकारों को यथाशीघ्र सक्रिय होना होगा। साथ ही सज्जन शक्तियों को जागृत, सक्रिय और संगठित होना होगा। जेहाद का मुकाबला संगठितराष्ट्रीय समाज और सजग, सचेत तथा दूरदर्शी सरकारें मिल कर ही कर सकती है।