सिनेमा

‘महारानी’ पार्ट-2 में सत्ता का जंगलराज

 

‘व्यवस्था एक मजबूत किला है। जब हम इससे लड़ते हैं तो यह भी हमसे लड़ती है। पहले बल से, फिर अक्ल से और अंत में छल से। यह भी जब हिला नहीं पाते तो यह अपनों के खिलाफ़ कर देती है।’ ऐसे कई संवादों से सजी वेब सीरीज ‘महारानी’ का दूसरा सीजन 25 अगस्त को रिलीज हो ही गया। जब इस सीरीज का पहला सीजन आया था तब मैंने इसका रिव्यू करते समय लिखा था। (पहले सीजन का रिव्यू आप इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।) एक मुख्यमंत्री की कम पढ़ी लिखी औरत के पति को गोली लगी तो उन्हें ही मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस तरह पत्नी जिसे पति घर की रानी बनाकर रखने का वादा करके लाया था उसे एक राज्य की महारानी बना दिया। महिलाओं को हम ऊपर उठते हुए ही देखना चाहते हैं न!

अब इस सीरीज के दूसरे सीजन की कहानी दर्शकों को बताती है कि सत्ता के लिए और जनता के लिए राजनीति करने वालों में कितना अंतर होता है। पहले सीजन के अंत में जहाँ महारानी अपने ही पति को जेल भेज कर जनता के दिलों में महारानी बनकर उभरती है वही इस सीरीज के दूसरे सीजन में अपने ही पति की मौत के आरोपों में घिर कर जेल भेज दी जाती हैं। एक समय सीरीज के बीच में ही देखने को मिलता है पति पत्नी और वो का ड्रामा। तो दूसरी ओर देखने को मिलता है सत्ता लोलुप राजनेताओं द्वारा फैलाया जा रहा जंगलराज।

सीरीज एक बात अवश्य खुलकर बताती है कि जैसे दिल्ली भारत नहीं है वैसे ही पटना बिहार नहीं है। सत्ता और पावर लोगों को बदल देती है। लेकिन दूसरी ओर यही सीरीज के निर्माता, निर्देशक यह खुलकर नहीं कह पाते कि यह सीरीज साफ़ और सीधे तौर पर बिहार बिहार की राजनीति के साथ-साथ मुख्यमंत्री लालू यादव के समय की कहानी कह रही है। पहले सीजन में जहाँ महिलाओं को ऊँचा उठते देखने के हमारे सपने थे वे इस सीरीज के दूसरे सीजन में भी सपने ही बने नजर आते हैं। यही कारण है कि वादा, नारा, गुंडाराज देने वाले राजा लोगों से जब बिहार की जनता त्रस्त हो उठती है  तो उससे नाउम्मीद हो रानी के हाथों में बागडोर जनता सौपने चलती है।

सीरीज में इतना सबकुछ राजनीतिक ड्रामा देखने को जो मिलता है उसके साथ ही पारिवारिक मसले भी उभर कर सामने आते हैं। इस बीच अलग राज्य की मांग झारखंड के रूप में देखने को मिलती है। तो साथ ही वर्मा कमीशन के आरक्षण बिल से सरकार बचाती रानी भारती पर दिल्ली की गूंगी गुडिया कही जाने वाली नेता/प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी से भी तुलना की जाती है।

यह तो था सीरीज का कुल ल्बोलुआब अब करें सीरीज के तकनीकी काम और निर्देशन की बात तो आरक्षण बिल के विरोध के समय के सीन हों या धीरज सिंह का आत्मदाह ये सीरीज के कमजोर पहलूओं में से एक है। वहीं दूसरी ओर सीरीज को बेवजह कई जगहों पर घसीट कर जो लंबा-चौड़ा किया गया है उसमें भी कांट-छांट की गुंजाइश नजर आती है। लेकिन इन चंद बातों के अलावा सीरीज पहले सीजन के मुकाबले बेहतर बन पड़ी है। सीरीज में कई जगहों पर नेपथ्य से आती आवाजें, घोषणाएं, सूचनाएं और बोल बाजी दहलाती हैं। तो साथ ही कुछ सीन आँखें भी नम करते हैं।

सही कहते हैं ‘आग लगाना आसान है लेकिन बुझाना बेहद मुश्किल’ यही वजह है कि सीरीज जो बिहार की राजनीति के दांवपेंच दिखाते हुए जो आग दर्शकों के भीतर लगाती है उसे बुझा पाने में कई बार मुश्किल भी अपने लिए खड़ी करती है। राजनीति में यूँ भी आम तौर पर देखा जाता है कि रोटी, नौकरी, जातीय गौरव से ऊपर जाकर धर्म की राजनीति ही खेली जाती रही है। यही वजह है कि सीरीज के बहाने से जो तत्कालीन समय में घटित होते दिखाया, बताया, सुनाया जा रहा है वह आज की ही नहीं राजनीति के सहारे देश के बनने की शुरुआत के समय की भी बातें और कड़वा सच है। और यह बात बाबाओं की खडाऊंओं के सहारे असल जिन्दगी में राजनीति के घोड़े दौडाने वालों से बेहतर और कौन जानता है?

सीरीज के क्रियेटर, लेखक, डायरेक्टर्स, डायलॉग राइटर की टीम में शामिल सुभाष कपूर, रविन्द्र गौतम, नंदन सिंह, उमाशंकर सिंह  आदि ने अपना काम बखूबी किया लेकिन कई जगहों पर फिसलते हाथों और फिसलती स्क्रिप्ट से। गीत-संगीत के मामले में गीत लिखने वाले डॉ. सागर ने उम्दा गीत लिखे हैं। गायकों द्वारा गाया भी सुंदर गया उन्हें लेकिन उन सबमें पद्म श्री से सम्मानित शारदा सिन्हा की आवाज में ‘निर्मोहिया’ गीत लुभाता ही नहीं बल्कि कर्ण प्रिय भी लगता है। ‘कस के मारब’, ‘हंसा अकेला’, ‘काला पे तीत लगेला’ जैसे गीत भोजपुरी सिनेमा के नजरिये से इस सीरीज पर नजर के काले टीके के समान लगते हैं।

मंगेश का बैकग्राउंड स्कोर, हालिया रिलीज हुई सुपरहिट ब्लॉक बस्टर फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ में शानदार म्यूजिक देकर आम जनता को रो देने पर मजबूर कर देने वाले ‘रोहित शर्मा’ का म्यूजिक इस बार भी उम्दा किस्म का रहा है। हुमा कुरैशी, सोहम शाह, अमित स्याल, विनीत कुमार, दिब्येंदु भट्टाचार्य, कनी श्रुति, अतुल तिवारी, प्रमोद पाठक, आशीष हुसैन, नेहा चौहान, प्रणय नारायण, दानिश इकबाल, अनुजा साठे, पंकज झा आदि जैसी लम्बी चौड़ी शानदार स्टार कास्ट से सजी और उनके उम्दा अभिनय से सुसज्जित यह सीरीज आपसे तकरीबन सात घंटे का धैर्य वो उर्दू में क्या कहते हैं इत्मीनान जरुर मांगती है। भोपाल, मुम्बई, होशंगाबाद, जम्मू आदि की रियल लोकेशन से लेस इस सीरीज को सोनी लिव के ओटीटी प्लेटफ़ार्म पर आप भी देखते समय इत्मीनान/धैर्य दिखाकर ही इसे पूरा खत्म करके राजनीतिक सत्ता के गलियारों की समझ-बूझ को और बढ़ा सकेंगे।

अपनी रेटिंग – 3 स्टार

.

Show More

तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x