
भारत-चीन विवाद: एक सोची समझी साजिश
जहां एक ओर संपूर्ण विश्व आज कोरोना वायरस से जूझ रहा है वहीं दूसरी ओर चीन अपनी ढुलमुल आतंकी रवैये से सबको परेशान करने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। पिछले दिनों लद्दाख में भारत- चीन सीमा एल ए सी पर चीन ने अपनी सैनिक शक्तियों में इजाफा कर भारतीय सीमा रक्षकों की गश्त में व्यवधान डाल कर एक ओछी हरकत की है, जिससे सीमा पर तनाव बढ़ गया। इस घटना से भारतीय सैनिक बल और चीनी सैनिकों में तनाव इस कदर बढ़ गया कि स्थिति काफी बिगड़ गई। नतीजतन इस झड़प में दोनों पक्षों के एक सौ से अधिक सैनिक घायल हो गए। लद्दाख सीमा में तनाव अभी कमा भी नहीं था कि उतरी सिक्किम में भी ऐसी ही वारदात को चीन के सैनिकों ने अंजाम दे दिया।
अंततः चीनी सेना के रुख को देखते हुए भारतीय सेना भी वहां अत्यधिक सैन्य बल के साथ डट गयी। भारत को कमर कसता देख चीन ने अपना रवैया बदल लिया । और शांति की राग अलापने लगा। चीन के नापाक इरादों को भाप कर भारत ने उसके विभिन्न सीमाओं में हमले की तैयारियां तेज कर दी। इसी के बाबत भारतीय सेना के शीर्ष कमांडरों की आनन फानन में अत्यावश्यक बैठक बुलाई गई। इस बीच, भारत का रुख कड़ा होता देख चीन ने शांति का राग छेड़ना शुरू कर दिया । इस परिप्रेक्ष्य में चीन ने बिना देरी किए भारत के साथ आपसी भाई- चारा का संदेश देते हुए कहा कि चीनी ड्रैगन और भारतीय हाथी एक साथ नाच सकते हैं। यह कहकर चीन भारत के साथ मध्यस्थता करने की फिराक में था।
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परन्तु इस बार भारत के तेवर भी अलग दिखे। इस बार सन् 1962 वाला कमजोर राष्ट्र नहीं था भारत। भारत की इस छवि से चीन अबतक परिचित न था। अब भारतीय सैनिक अपनी अस्मिता के रक्षार्थ चौबिसों घंटे खड़ा दिखता है। जबकि चीन अपनी दोहरी नीतियों के बल पर यह आजमाना चाह रहा था कि कोरोना वायरस से जंग में शायद भारतीय सैन्य संगठन व्यस्त होगा जिसका फायदा उठाकर भारतीय सीमा में प्रवेश कर वह अपने मंसूबे में कामयाब हो जाएगा। परन्तु भारत की दुरूह सैनिक शक्ति मानों दुश्मनों के चाल को बखूबी जान रही हो। यह भारतीय प्रधानमंत्री की दूरदर्शीता ही कहेंगे कि उन्होंने भारतीय सेना के तीनों संगठनों को कोरोना वायरस से जंग में अब तक शायद इसी लिए शामिल नहीं किया था।
चूंकि कोरोना वायरस चीन की ही देन हैं अतएव इस पराकाष्ठा पर चीन अपनी सफाई पर खरा नहीं उतर सका। जहां चीन और भारत के आपसी विवाद की बात है यह तो 1962 ई. से चली आ रही है। जिसे ‘लाईन आफ अक्चुवल कंट्रोल’ अर्थात ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के नाम से जाना जाता है। यह रेखा भारतीय क्षेत्र और चीन के कब्जे वाले अक्साई चीन को अलग करती है। एल ए सी उस नियंत्रण रेखा से अलग है, जिसे हेनरी मैकमोहन ने निर्धारित किया था। उन दिनों 1962 में चीन से युद्धविराम होने पर चीनी कब्जे वाले हिस्से के बाद जिन हिस्सों को दोनों देशों के बीच सीमा रेखा माना गया,उसे ही एल ए सी कहा जाता है। एल ए सी लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है।
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लेकिन चीन इस मैकमोहन रेखा के विभाजन को स्वीकार नहीं करता है। जबकि भारत- चीन के बीच इस सीमा रेखा का निर्धारण 1913-14 ई. में चीन, तिब्बत और ब्रिटेन के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में शिमला में हुए एक सम्मेलन में हुआ था। इस सम्मेलन में ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 550 मील की लंबी रेखा निर्धारित की थी । लेकिन चीन के प्रतिनिधि ने मैकमोहन लाइन को दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा मानने से इंकार कर दिया। उस समय चीन ने दावा किया कि उसका इलाका असम की सीमा तक है। तब से लेकर आज तक चीन और भारत के बीच सीमा विवाद चलता आ रहा है।
परंतु ऐसे हालात में चीन का इन दिनों भारत की सीमा में तनाव पैदा करना उसकी साजिश भरी मानसिकता को उजागर करता है। आज दुनिया के सभी देशों की नजरों में चीन बदनाम हो चुका है। कोरोना वायरस को जिस प्रकार चीन ने जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर समस्त शक्तिशाली देशों को कमजोर किया है,यह दुर्भाग्यपूर्ण है। विश्व शक्ति अमेरिका सरीखे अन्य कई देश चीन के समक्ष घुटने टेकते दिख रहे हैं। कोरोना के मामले में विश्व स्वस्थ्य संगठन (डब्ल्यु एच ओ) ने चीन की राह को सही करार दिया। .. और जब बीमारी पूरे विश्व में फैल गई तब उसने इसे महामारी घोषित कर दिया । तब तक काफी देर हो चुकी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के हाथों की कठपुतली की तरह काम किया। यह एक सोची समझी साजिश नहीं तो और क्या थी?
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जैसा चीन चाहता था सब कुछ वैसा ही होता गया। ऐसी बात नहीं की चीन कोरोना वायरस से प्रभावित नहीं हुआ था। सबसे पहले चीन में ही इस वायरस से बड़ी संख्या में वहां के लोग बीमार हुए थे और हजारों लोगों की इससे जानें भी चली गई। इस बात का खुलासा तब हुआ जब कोरिया से चीन ने लगभग लाखों की संख्या में ताबूत मंगाया, साथ ही चीन में अस्थि कलश लेने हेतु जब परिजनों की भारी भीड़ प्रतिदिन जुटने लगी, जिसकी संख्या चीन सरकार के बताए संख्या से पचास गुना अधिक थी।
भले उन दिनों चीन इस बात का खुलासा नहीं करता हो कि उसके देश में वायरस से मरने वालों की संख्या बहुत बड़ी थी। इस मामले में चीन की मीडिया को वह स्वतंत्रता नहीं दी गई कि वहां मरने वालों की संख्या वह दुनिया के समक्ष रख सके। लोकतंत्र के इस मजबूत स्तम्भ को चीन की सरकार ने डरा धमका कर अपनी बात मनवा ली। अब जब समूची दुनिया कोरोना वायरस से जंग लड़ने में व्यस्त हैं, ऐसे में युद्ध के लिए ललकाराना चीन की गहरी कूटनीति को उजागर करता है।
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