आजाद भारत के असली सितारे – 13
न्यायपालिका में पवित्रता का संकल्प : प्रशान्त भूषण
सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के ही प्रधान न्यायाधीश पर पचास हजार की बाइक पर बैठने को लेकर तीखी टिप्पणी करना, सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व आधे प्रधान न्यायाधीशों को भ्रष्ट कह देना, जजों पर आर्थिक पारदर्शिता न होने का लगातार आरोप लगाना और उसी के दबाव में जजों द्वारा अपनी सम्पत्ति का ब्योरा घोषित करना क्या सामान्य साहस का काम है? सुप्रीम कोर्ट में ही वकालत करते हुए कांग्रेस हो या भाजपा, सबके घोटालों का पर्दाफाश करने के लिए लगातार जनहित याचिकाएं दायर करना और उनके लिए अपने खर्चे से लड़ते रहना क्या साधारण साहस का काम है? कचहरी के भीतर अपने चैंबर में ही गुंडों द्वारा बुरी तरह पीटे जाने के बाद भी सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करते रहना और जनहित के कार्यां से तनिक भी पीछे न हटना क्या साधारण साहस का काम है? हमारी न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और पवित्रता पर लगातार निगाह रखने के लिए सीपीआईएल, पीयूसीएल, सीजेए तथा सीजेएआर जैसे संगठनों के माध्यम से निरंतर संघर्ष करते रहनेवाले योद्धा का नाम है प्रशान्त भूषण।
प्रशान्त भूषण (जन्म-15.10.1956) सबसे ज्यादा चर्चा में तब आए जब भारत के प्रधान न्यायाधीश एस.ए.बोबड़े पर 22 जून 2020 को उन्होंने ट्वीट करते हुए उस तस्वीर को शेयर किया जिसमें जस्टिस बोबड़े, हार्ले डेविडसन की बाइक पर बैठे नज़र आए थे। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि, “सीजेआई राइड्स ए फिफ्टी लाख मोटरसाइकिल बिलांगिंग टू बीजेपी लीडर ऐट राजभवन नागपुर, विदाउट ए मास्क आर हेलमेट, एट ए टाइम ह्वेन ही कीप्स द एस.सी. इन लॉकडाउन मोड डिनाईंग सिटिजन्स देयर फंडामेंटल राइट टू एक्सेस जस्टिस।” (प्रशान्त भूषण के ट्वीट से)
उन्होंने 27 जून 2020 को अपने एक दूसरे ट्वीट में लिखा कि पिछले छह सालों में देश के चार प्रधान न्यायाधीशों की लोकतंत्र को बर्बाद करने में भूमिका रही है। उन्होंने लिखा कि,“ ह्वेन हिस्टोरियन्स इन फ्यूचर लुक बैक ऐट द लास्ट 6 ईयर्स दू सी हाऊ डेमोक्रेसी हैज बीन डिस्ट्राय इन इंडिया एवेन विदाउट ए फार्मल इमरजेन्सी, दे विल पार्टिकुलर्ली मार्क द रोल ऑफ द सुप्रीम कोर्ट इन दिस डिस्ट्रक्सन ऐँड मोर पार्टिकुलर्ली द रोल ऑफ द लास्ट फोर सीजेआईज।” (प्रशान्त भूषण के ट्वीट से)
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के खिलाफ प्रशांत भूषण के ट्वीट पर सख्त रुख अपनाया और उनपर अदालत की अवमानना का केस चला। तीन जजों की इस बेंच की अगुआई जस्टिस अरुण मिश्र ने की। उन्हें कोर्ट की अवमानना का दोषी पाया गया। केस की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें इस मामले में ‘बहुत गलत समझा गया’। उन्होंने कहा ‘मैंने ट्वीट के जरिए अपने परम कर्तव्य का निर्वहन करने का प्रयास किया है।’ महात्मा गाँधी को उद्धृत करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा था, ‘मैं दया की भीख नहीं माँगता हूं और न ही मैं आपसे उदारता की अपील करता हूं। मैं यहाँ किसी भी सजा को शिरोधार्य करने के लिए आया हूं, जो मुझे उस बात के लिए दी जाएगी जिसे कोर्ट ने अपराध माना है, जबकि वह मेरी नजर में गलती नहीं, बल्कि नागरिकों के प्रति मेरा सर्वोच्च कर्तव्य है। ’31 अगस्त 2020 को कोर्ट का फैसला आया और उसमें प्रशान्त भूषण को एक रूपए जुर्माने की सजा हुई। कोर्ट ने आदेश दिया कि जुर्माना न जमा करने पर तीन महीने की जेल की सजा हो सकती है और तीन साल के लिए कानूनी प्रेक्टिस पर रोक लगाई जा सकती है। प्रशान्त भूषण से अदालत का सम्मान रखते हुए जुर्माने की राशि अदा कर दी।
प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का 2009 का एकपुराना केस भी विचारार्थ रखा गया जिसमें प्रशांत भूषण ने ‘तहलका’ पत्रिका को दिये इंटरव्यू में आरोप लगाया था कि भारत के पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में आधे भ्रष्ट थे। प्रशांत भूषण ने एक औपचारिक हलफनामा दायर कर आठ सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया था। इस केस की सुनवाई एक दूसरी बेंच कर रही है।
प्रशान्त भूषण के खिलाफ चलने वाले कोर्ट की अवमानना के इस केस के खिलाफ देश भर में अभूतपूर्व प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। देशभर के हजारों वकील, रिटायर्ड जज, बुद्धिजीवी, लेखक और पत्रकारों ने सामूहिक रूप से लिखकर और कोरोना के आतंक के बावजूद देशभर में सड़कों पर प्रदर्शन करके प्रशान्त भूषण के समर्थन में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की।
प्रशान्त भूषण को मिले इस जन समर्थन के पीछे न्यायपालिका और उसके बाहर भी देश में भ्रष्टाचार से लड़ने का उनका लम्बा और शानदार इतिहास है। कानून के सहारे भ्रष्टाचार से लड़ने वालों में वे अन्यतम हैं। उन्हें अनेक बार धमकियाँ मिलीं, गुंडों द्वारा उन्हें पिटवाया गया किन्तु प्रशान्त भूषण दृढ़तापूर्वक अपने पथ पर डटे रहे। उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।
प्रशांत भूषण प्रसिद्ध अधिवक्ता शान्ति भूषण के सुपुत्र हैं। उनकी माता का नाम कुमुद भूषण है। वे अपने पिता की चार संतानों में सबसे बड़े हैं। प्रशान्त भूषण को भ्रष्टाचार से लड़ने की विरासत अपने पिता से मिली है। इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ चुनावी धोखाधड़ी का मुक़दमा शांति भूषण ने ही लड़ा था जिसमें तत्कालीन प्रधानमन्त्री हार गयी थीं और देश में आपातकाल लागू कर दिया था।
इमरजेंसी हटने के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गाधी बुरी तरह पराजित हुई थीं और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी थी जिसमें शांति भूषण क़ानून मन्त्री बने थे। इंदिरा गाँधी के विरूद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनावी धोखाधड़ी का मामला समाजवादी नेता राज नारायण ने दाख़िल करवाया था। प्रशांत भूषण दो साल तक चले इस मुक़दमे की सुनवाई में मौजूद रहते थे जिसके बाद उन्होंने ‘द केस दैट शुक इंडिया’ क़िताब लिखी। उनकी दूसरी क़िताब, ‘बोफ़ोर्स, द सेलिंग ऑफ़ ए नेशन’ प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी की सरकार के वक़्त हुए कथित बोफोर्स तोप घोटाले से संबंधित है।
शांति भूषण भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक और 1986 तक इसके कोषाध्यक्ष थे। शांति भूषण और प्रशांत भूषण उस लोकपाल बिल की ज्वाइंट ड्राफ्टिंग कमेटी के भी सदस्य थे जिसके लिए अन्ना हजारे के नेतृत्व में लम्बी और ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी गयी थी। देश की न्याय व्यवस्था में जवाबदेही तय करने की मुहिम प्रशांत भूषण अपने पिता के साथ चलाते रहे।
उस समय देश में ऐसा माहौल बन गया था कि ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मुहिम की शुरुआत हुई जिसके बाद 2012 में आम आदमी पार्टी एक राजनीतिक दल के तौर पर उभरी। प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के संस्थापक-सदस्यों में से एक हैं, लेकिन बाद में पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से हुए मतभेद की वजह से उन्हें इससे अलग होना पड़ा। इसके बाद अपने राजनीतिक सहयात्री और आम आदमी पार्टी के एक अन्य सदस्य और जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव के साथ मिलकर उन्होंने ‘स्वराज इंडिया’ नाम से संगठन बनाया और उसके बाद अपनी वकालत और जनहित के कार्य में ज्यादा मुस्तैदी से योगदान करने लगे।
कानून की डिग्री हासिल करने से पहले प्रशान्त भूषण आईआईटी मद्रास से बी.टेक. कर रहे थे जिसे उन्होंने एक सेमेस्टर के बाद ही छोड़ दिया। इसके बाद वे अमेरिका के प्रिंस्टन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने लगे किन्तु उससे भी मन ऊब गया और वे कोर्स पूरा करने से पहले ही भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक किया और सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करने लगे।
प्रशान्त भूषण का भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का इतिहास 1983 से आरम्भ होता है जब उसी वर्ष दून वैली में चूना पत्थर की खुदाई की वजह से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान का केस प्रतिष्ठित पर्यावरणविद वंदना शिवा के मार्फत उनके पास आया और सुप्रीम कोर्ट ने उस मुक़दमे में जीवन और निजी स्वतंत्रता (संविधान की धारा-21) के तहत ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था।
इसके बाद अंतरराष्ट्रीय खाद-बीज कम्पनी मोन्सैंटो, 1984 का सिख-विरोधी दंगा, भोपाल गैस काण्ड, नर्मदा बांध और दूसरे जनहित के मामले एक के बाद एक प्रशान्त भूषण के पास आने लगे और उन्हें ऐसे केस लड़ने में आनंद आने लगा।
प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में प्रशांत भूषण ने 2 जी मोबाइल टेलीफोन स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में जनहित याचिका दाख़िल किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई से जाँच कराया। फलस्वरूप तत्कालीन दूर संचार मन्त्री ए. राजा को न केवल इस्तीफ़ा देना पड़ा बल्कि जेल भी जाना पड़ा। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम आवंटन को रद्द कर दिया था।
2012 में प्रशांत भूषण ने कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर भी एक जनहित याचिका दाख़िल की जिसके बादकोल ब्लॉक के आवंटन रद्द करने पड़े थे। इसी तरह गोवा में अवैध लौह अयस्क खनन को लेकर भी प्रशांत भूषण की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में खनन पर रोक लगा दी थी। प्रशांत भूषण ने केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पी.जे. थॉमस की नियुक्ति को चैलेंज करने वाली एक याचिका दायर की थी जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने पी.जे. थॉमस की नियुक्ति को मार्च, 2011 में अवैध ठहराया था।
धीरे-धीरे प्रशान्त भूषण पर्यावरण, मानवाधिकार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जुड़े मुक़दमे बिना किसी फ़ीस के लड़ने लगे। इस दौरान वे विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़ गए जिनमें सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) तथा ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल प्रमुख है। वे न्यायिक सुधार के लिए कैंपेन फॉर ज्यूडिशिएल एकाउंटबिलिटी तथा ज्यूडिशिएल रिफॉर्म्स की वर्किंग कमेटी के संयोजक भी हैं।
उन्होंने 2015 में दिल्ली न्यायिक सेवा की परीक्षा में होने वाली अनियमितता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर पुस्तिकाओं को पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जज के द्वारा दुबारा जाँचने और पारदर्शी तरीके से परीक्षा कराने सम्बन्धी दिशा निर्देश दिये।
जस्टिस लोया की मौत की निष्पक्ष जाँच को लेकर अनेक जनहित याचिकाएं दाखिल की गयी थीं, जिनकी पैरवी करने वाले वकीलों में प्रशांत भूषण शामिल थे। अप्रैल, 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन जजों की कमेटी ने इस मामले में फिर से सुनवाई करने इनकार कर दिया था।
गुजरात के पूर्व गृह राज्य मन्त्री हरेन पांड्या की हत्या के मामले की, अदालत की निगरानी में जाँच की माँग करने वाली जनहित याचिका प्रशांत भूषण की संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन ने लगाई थी। गौरतलब है कि गुजरात में भाजपा सरकार के दौरान गृह राज्यमन्त्री हरेन पांड्या की हत्या अहमदाबाद में 26 मार्च, 2003 को गोली मारकर कर दी गयी थी। सीबीआई जाँच के मुताबिक वर्ष 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगे का बदला लेने के लिए पांड्या की हत्या की गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने भारत सरकार की ओर से फ्रांसीसी कम्पनी डैसो एविएशन से 36 रफ़ाल जेट खरीदने के सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच को फिर से कराने के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। लेकिन तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस.के. कौल और के.एम. जोसेफ की पीठ ने 14 नवम्बर, 2019 को इनकी पुनर्विचार याचिकाओं को सुनवाई के योग्य नहीं माना था।
प्रशांत भूषण ने लॉकडाउन के दौरान एक याचिका अप्रैल, 2020 के दौरान दाख़िल की जिसमें कहा था कि प्रवासी मज़दूर, लॉकडाउन के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। जब महानगरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों की ओर पैदल जाने को वे मजबूर थे तब इस याचिका के माध्यम सेउन्हें अपने घरों तक सुरक्षित भेजने की माँग की गयी थी। इसी तरह (सीपीआईएल) की ओर से प्रशांत भूषण ने जनहित याचिक दाख़िल करके कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने में राहत कार्यों के लिए पीएम केयर्स फण्ड से एनडीआरएफ को फण्ड ट्रांसफर करने की माँग की थी। इस याचिका में पीएम केयर्स फण्ड के सम्बन्ध में पारदर्शिता की कमी के मुद्दे को उठाया गया था और यह भी कहा गया था कि यह कैग ऑडिट के अधीन नहीं है। इस केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को कई निर्देश दिये जिससे लोगों के घर लौटने में मदद मिली। हालांकि 18 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फण्ड में रखे पैसे को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ़) में ट्रांसफ़र किए जाने का आदेश देने से इनकार कर दिया।
इससे पहले 2009 में प्रशांत भूषण ने ही उस मामले की भी पैरवी की थी जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को आरटीआई के दायरे में लाया गया। इतना ही नहीं, उनकी याचिका का ही परिणाम था कि न्यायाधीशों को अदालत की वेबसाइटों पर अपने पद और अपनी सम्पत्ति की जानकारी देनी पड़ती है।
2006 में उन्होंने पेप्सी कम्पनी और कोका कोला के खिलाफ जनहित दायर की थी।उन्होंने 2005 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्य सचिव नीरा यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार की जाँच की याचिका दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उन्हें अपने पद से हटना पड़ा था। भारतीय प्रशासनिक सेवा में यह पहला केस था जिसमें इस स्तर का अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी पाया गया था।
2003 में प्रशांत भूषण ही उस मामले के वकील रहे जिसके चलते केन्द्र सरकार को हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम के निजीकरण के लिए संसद की मंजूरी को अनिवार्य बनाना पड़ा। 1990 में उनकी ही याचिका पर भोपाल गैस काण्ड मामले में यूनियन कार्बाइड कम्पनी के पूर्व चैयरमैन वॉरेन एंडरसन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दोबारा केस खुला था और पीड़ितों को मुआवजा देने का आदेश हुआ था। हालांकि नर्मदा बचाओ आंदोलन में लम्बी अदालती लड़ाई के बाद भी उन्हें कामयाबी नहीं मिली।
अपने कुछ बयानों को लेकर प्रशान्त भूषण विवादों के घेरे में भी रहे हैं। जैसा कि कश्मीर के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए उन्होंने 2011 में कहा था कि जनमत संग्रह करवाकर यह पता किया जा सकता है कि ‘जम्मू-कश्मीर के लोग भारत के साथ रहना चाहते हैं या नहीं। ‘इसी तरह 2010 में दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों के शहीद होने पर प्रशान्त भूषण ने कहा था कि सरकार जब ऐंटी-नक्सल ऑपरेशंस को युद्ध जैसा घोषित करेगी तो इसका ‘बदला’ स्वाभाविक है।
प्रशांत भूषण अबतक पाँच सौ से अधिकजनहित याचिकाओं की पैरवी कर चुके हैं और बिना किसी भय के आज भी अपने पथ पर अग्रसर हैं। वे अपना तीन चौथाई समय ऐसी ही जनहितयाचिकाओं पर लगाते हैं। इतना ही नहीं, जिस 25 प्रतिशत समय में पैसे लेकर वे मामलों की पैरवी करते हैं, उसमें भी अपने समकक्षों की तुलना में बहुत कम फीस लेते हैं। न्यायिक पवित्रता और पारदर्शिता को बचाए रखने के लिए तथा देश की आम जनता को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध ऐसे दृढ़-संकल्प वाले वकील यदा-कदा दिखाई देते हैं।
प्रशान्त भूषण को उनके जन्मदिन के अवसर पर हम हार्दिक बधाई देते हैं और उनके सुस्वास्थ्य व सतत संघर्षशीलता की कामना करते हैं।
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