जय प्रकाश
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Sep- 2024 -23 Septemberशख्सियत
जेल जाने वाले पहले हिन्दी-लेखक
साहित्य के विद्यार्थी माधवराव सप्रे को हिन्दी के पहले कहानीकार के रूप में उनकी कहानी ‘एक टोकरी-घर मिट्टी’ के संदर्भ से और पत्रकारिता के विद्यार्थी उन्हें बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्ष में प्रकाशित ‘छतीसगढ़ मित्र’ के सम्पादक के रूप…
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Jul- 2024 -16 Julyयत्र-तत्र
राजेश्वर सक्सेना: एकाग्र तपश्चर्या में एक ऋषिवत साधक
डॉ. राजेश्वर सक्सेना हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक और चिन्तक हैं। उनके चिन्तन की परिधि साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे अतिक्रमित कर वह सामाजिक विज्ञान और दर्शन के दुर्गम इलाकों तक जाते हैं और एक व्यापक वैचारिक परिसर…
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9 Julyयत्र-तत्र
हरिशंकर परसाई: व्यंग्य-दृष्टि और वर्ग-बोध
हिंदी-व्यंग्य के शीर्ष-पुरुष हरिशंकर परसाई के जन्म-शताब्दी-वर्ष में जिज्ञासा होती है कि उनकी कहानियों में व्यंग्य की चेतना प्रारंभ से थी, या वह धीरे-धीरे समय के साथ विकसित हुई। परसाई जबलपुर आने के बाद समाजवादियों के संपर्क में आए।…
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Apr- 2024 -22 Aprilएतिहासिक
भारतेन्दु-युग में स्वच्छंद चेतना का प्रवेश
हिंदी प्रदेश में नवजागरण के रूप में उन्नीसवीं सदी के बौद्धिक उन्मेष की पहचान करते हुए प्रायः उस दौर की प्रबल यथार्थ-चेतना और समकालीन बोध को रेखांकित किया जाता है, लेकिन यह तथ्य अलक्षित रह गया है कि उसके…
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5 Aprilयत्र-तत्र
छत्तीसगढ़ी नाचा, मँदराजी और हबीब तनवीर
लोकनाट्य ‘नाचा’ छत्तीसगढ़ की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। आज भी यह अत्यंत लोकप्रिय विधा है। उसके स्वरूप में समय के अनुसार क्रमशः बदलाव आया है लेकिन अब भी वह जीवंत और सक्रिय है। यह जीवनी-शक्ति उसे समाज और लोक-जीवन…
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Dec- 2022 -7 Decemberयत्र-तत्र
स्मारक में मुक्तिबोध
मुक्तिबोध की स्मृतियों को सँजोने के लिये राजनांदगाँव में 2005 में एक स्मारक बनाने की योजना पर तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार ने महत्त्वपूर्ण पहल की। कलेक्टर की अगुवाई में एक समिति गठित हुई जिसमें मुक्तिबोध के मित्र शरद कोठारी, प्राध्यापक…
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Aug- 2022 -8 Augustशख्सियत
मुक्तिबोध का आख़िरी ठिकाना
उन्नीसवीं सदी में बैरागी शासकों ने राजनांदगाँव रियासत क़ायम की थी। देश की आज़ादी के बाद भारतीय संघ में उसका विलीनीकरण हुआ और शहर के गणमान्य नागरिकों के आग्रह पर राजा दिग्विजय दास ने महाविद्यालय की स्थापना के…
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Jul- 2022 -4 Julyयत्र-तत्र
डिजिटल कविता का उभार
सूचना और संचार की उच्चतर तकनीक आज जिस शिखर पर पहुँच गयी है, उसमें डिजिटल कविता का आविर्भाव आकस्मिक नहीं है। सच पूछा जाए तो डिजिटल कविता आज के समय के द्वारा रची गयी और स्वयं समय की अपरिहार्य…
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May- 2022 -19 Mayयत्र-तत्र
डिजिटल युग में कविता
बीसवीं शताब्दी तक आकर मानव-सभ्यता जिस मुकाम पर पहुँची, वहाँ अभिव्यक्ति के दो माध्यम पूरी तरह विकसित हो चुके थे– वाचिक माध्यम और मुद्रित माध्यम। वाचिक या उच्चरित शब्द सदियों पहले से श्रुति-परंपरा के रूप में मौजूद था। फिर…
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Apr- 2022 -10 Aprilयत्र-तत्र
कवि की कहानी
तीन दशक से भी ज़्यादा समय हुआ है जब ‘पूर्वग्रह’ में प्रकाशित एक बातचीत में डॉ. नामवर सिंह का ध्यान उन कहानीकारों की ओर आकृष्ट किया गया जो मूलतः कवि हैं, उनकी ख्याति भी मुख्यतः कवि के रूप में…
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