अरुण माहेश्वरी
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Mar- 2022 -4 Marchअंतरराष्ट्रीय
यूक्रेन पर रूस के हमले के मामले में ‘तटस्थता’ की कोई भूमिका अब नहीं
फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों से लंबी बातचीत में पुतिन यह साफ़ संकेत दे दिया है कि वह यूक्रेन पर अपने हमले को जल्द ख़त्म करने वाला नहीं है। मैक्रों के शब्दों में – “अभी और भी भारी तबाही अपेक्षित…
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Feb- 2022 -26 Februaryचर्चा में
मोदी जी आख़िर इतनी बेतुकी बातें क्यों कर रहे हैं?
सब लोग अब यह गौर करने लगे हैं कि यूपी के चुनाव में मोदी के भाषण कुछ अजीबोग़रीब हो रहे हैं। सिवाय कुछ सचेत सांप्रदायिक विभाजनकारी बातों के किसी को उनके भाषणों में कोई तुक नज़र नहीं आ रहा…
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22 Februaryपुस्तक-समीक्षा
‘जीते जी इलाहाबाद’ : जहाँ सत्य से आँखें दो-चार होती हैं!
दो दिन पहले ही ममता कालिया जी की किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ हासिल हुई और पूरी किताब लगभग एक साँस में पढ़ गया। इलाहाबाद का 370 रानी मंडी का मकान। नीचे प्रेस और ऊपर रवीन्द्र कालिया-ममता कालिया का घर…
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6 Februaryव्यंग्य
सीमित ज्ञान का शिकार – भोला पंडित
सोशल मीडिया के ऐसे राजनीतिक टिप्पणीकार मसलन् पुण्य प्रसून वाजपेयी, विजय त्रिवेदी, राहुल देव, तथा टीवी और यूट्यूब की बहसों में आने वाले पत्रकार, जिन्होंने आरएसएस और उसके तन्त्र का बाक़ायदा अध्ययन किया है, उनमें अक्सर यह देखा जाता…
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Jan- 2022 -28 Januaryराजनीति
मोदी-शाह युग का अंत हो चुका है!
बंगाल में मोदी-शाह ने अपनी सारी शक्ति झोंक दी थी। किसी भी मामले में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। पर जब जनता डट जाए तो क्या होता है, बंगाल इसका उदाहरण है। अब तो साफ़ है कि जिस सूरज…
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19 Januaryराजनीति
यूपी में बीजेपी की बढ़ती हुई व्यग्रता का अर्थ
यूपी को लेकर बीजेपी की बेचैनी बुरी तरह से बढ़ गई है। अपने सारे सूत्रों से वह यह जान चुकी है कि चीजें अभी जैसी है, वैसी ही छोड़ दी जाए तो चुनाव में उसके परखच्चे उड़ते दिखाई देंगे।…
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Oct- 2021 -15 Octoberअंतरराष्ट्रीय
पूँजीवादी बाजारवाद बनाम समाजवादी ‘प्रकृतिवाद’
चीन में कथित ‘विचारधारात्मक संघर्ष’ का तात्पर्य राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने चीन में कुछ बड़ी टेक कंपनियों से शुरू करके इजारेदार पूँजी पर लगाम की दिशा में जो कार्रवाइयां शुरू की हैं, वे सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में…
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8 Octoberचर्चा में
जो पानी बह गया उसे फिर से छुआ नहीं जा सकता
7 अक्टूबर के टेलिग्राफ में प्रभात पटनायक का एक लेख है — A Promethian moment ( The farmer’s agitation challenges theoretical wisdom)। बंधन से मुक्ति का क्षण ; किसानों के आंदोलन ने सैद्धांतिक बुद्धिमत्ता को ललकारा है। जाहिर है,…
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Sep- 2021 -17 Septemberपुस्तक-समीक्षा
हिन्दी के बेडौल अपराध साहित्य की एक नजीर ‘पिशाच’
पिछली 29 अगस्त को वीडियो पत्रकार अजित अंजुम ने अपने यूपी चुनाव और किसान आन्दोलन सम्बन्धी कवरेज के बीच अचानक ही हिन्दी के हाल में प्रकाशित एक ‘क्राइम थ्रिलर’ ‘पिशाच’ पर चर्चा की। इसके लेखक संदीप पालीवाल के साथ…
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12 Septemberचर्चा में
एक विमर्श से खुलती गांठों की कहानी
‘सत्य हिन्दी’ वेब पोर्टल पर ‘आशुतोष की बात’ कार्यक्रम में दो दिन पहले की एक लगभग डेढ़ घंटा की चर्चा को सुना जिसका शीर्षक था — ‘हिन्दुत्व पर बहस से डरना क्यों’। संदर्भ था ‘विश्व हिन्दुत्व को ध्वस्त करने’…
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