शख्सियत

रामचंद्र मांझी : लौंडा नाच कला के आखिरी कलाकार

 

बिहार में लौंडा नाच जैसी अद्भुत कला के आखिरी कलाकार पद्मश्री रामचंद्र मांझी 96 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन के साथ ही बिहार की लोक कला का एक जरूरी अध्याय खत्म हो गया।

भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोकमंच कलाकार, लेखक, गीतकार और नर्तक भिखारी ठाकुर की लौंडा नाच मंडली के वे आखिरी कलाकार थे। भिखारी ठाकुर के साथ रहते हुए रामचंद्र मांझी ने भोजपुरी नाट्यकला को लोकप्रिय बनाया। भोजपुरी लोक नृत्य कला ‘लौंडा नाच’ को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में उन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। रामचंद्र मांझी ने लौंडा नाच को मशहूर किया और लौंडा नाच ने उन्हें। लेकिन ये कला उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत नहीं बना पाई, जैसा अधिकतर मंझे हुए कलाकारों के साथ होता है।

रामचंद्र मांझी ने लौंडा नाच को बिहार की लोककला की पहचान बनाई। जिसके लिए उन्हें 2017 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई थी, जो दो वर्ष बाद 2019 में उन्हें दिया गया। साथ ही इसके दो वर्ष बाद 2021 में देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से उन्हें नवाजा गया। इसके साथ ही लौंडा नाच को भी वह सम्मान मिला जिसके लिए वह वर्षों से संघर्ष कर रहे थे। माना जाता है कि इस सम्मान को दिलाने में ‘लौंडा नाच’ पर काम करने वाले अध्येता व व्याख्याता जैनेंद्र दोस्त का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने दस्तावेजीकरण के साथ सार्थक पहल की; तब कहीं जाकर उन्हें यह सम्मान मिला। जीवन के इस पड़ाव पर पद्मश्री मिलने के बाद उनको उम्मीद हो गई थी कि अब लौंडा नाच की कला में फिर से नई जान आ सकती है।

1925 में जन्मे रामचंद्र मांझी बिहार के सारण जिले के तुजारपुर के रहने वाले थे। वे दलित समाज से आते थे। कहा जाता है कि 10 वर्ष  की उम्र में ही वे भिखारी ठाकुर की नाट्य मंडली में शामिल हुए और 30 सालों तक उनके ही साथ रहे। वर्ष 1971 में भिखारी ठाकुर का निधन हो गया और उनके निधन के पहले तक रामचन्द्र मांझी उनकी छाया तले ही कला का प्रदर्शन करते रहे। भिखारी ठाकुर के निधन के बाद रामचंद्र मांझी ने गौरीशंकर ठाकुर, शत्रुघ्न ठाकुर, दिनकर ठाकुर, रामदास राही और प्रभुनाथ ठाकुर के नेतृत्व में काम किया। रामचंद्र मांझी 94 वर्ष की उम्र तक भी मंच पर अभिनय करते थे। अपने उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी वे ‘बिदेशिया’ और ‘बेटी-बेचवा’ के प्रसंग से दर्शकों को भावविभोर कर देते थे। वे ‘नाच भिखारी नाच’ नाम की एक 72 मिनट की डॉक्युमेंट्री फिल्म में भी नजर आ चुके हैं।

जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान रामचंद्र मांझी की सुनने की क्षमता कमजोर हो गई थी, लेकिन याददाश्त एकदम दुरुस्त थी। दि लल्लनटॉप से एक साक्षात्कार में रामचंद्र मांझी ने लौंडा नाच करने के आनंद को याद करते हुए कहा था कि साड़ी पहनने के बाद उन्हें सारे गाने याद आ जाते थे। उन्होंने बताया कि देश की मशहूर कलाकारों ने उनके साथ नाच किया। हिंदी सिनेमा की मशहूर गायिका और अभिनेत्री सुरैया, हेलेन, साधना ने उनके साथ डांस किया था।

पद्म श्री पुरस्कार मिलने के बाद भी रामचंद्र माझी और उनका परिवार गंभीर आर्थिक संकट से जूझता रहा। रामचंद्र मांझी के आखिरी दिन बेहद कष्टकारी थे। आखिरी दिनों में उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। छपरा के संस्कृतिकर्मी जैनेंद्र दोस्त ने पद्मश्री रामचंद्र मांझी के मानस पुत्र की भांति अंतिम समय तक उनकी सेवा की। जब वे बीमार पड़े तो उनके इलाज के लिए खर्च जुटाना काफी मुश्किल हो गया। पहले तो उनका इलाज छपरा के ही एक निजी क्लिनिक में चल रहा था। और इस दौरान बिहार के किसी कलाकार ने उनपर ध्यान नहीं दिया। जब वहाँ के इलाज से काम नहीं बना तो मदद की गुहार लगाई गई और तब जनप्रतिनिधि जितेंद्र राय ने पहल की और उन्हें आईजीआईएमएस में भर्ती कराया। इस दौरान भी अस्पताल में बिहार का कोई कलाकार उनका हाल तक जानने नहीं आया।

जिस लौंडा नाच ने रामचंद्र मांझी को प्रसिद्ध किया या फिर रामचंद्र मांझी ने जिस लौंडा नाच को प्रसिद्धि दिलाई वह बिहार के पुराने और बेहद प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। इसमें लड़की की वेशभूषा में कलाकार नृत्‍य करते हैं। शादी-ब्याह, मांगलिक कार्य या किसी भी शुभ मुहूर्त पर लोग अपने घरों पर ऐसे नृत्यों का आयोजन कराते हैं। हालांकि, वर्तमान समय में लौंडा नाच हाशिए पर पहुंच गया है। अब गिनी-चुनी मंडलियां ही बची हैं जो इस विधा को जिंदा रखे हुए है और वे मंडलियाँ भी बंद होने के कगार पर हैं। साथ ही पर्याप्त पैसे न मिलने के कारण वर्तमान समय में युवाओं का रूझान भी इसके प्रति कम होता जा रहा है।

रामचंद्र मांझी के जाने से बिहार की लोक कला और भोजपुरी संगीत का एक जरूरी अध्याय तो खत्म हुआ ही, लौंडा नाच को आगे ले जाने वाले सारथी की भी विदाई हो गई। इसके साथ ही लौंडा नाच के सुनहरे अध्याय का वह पन्ना अब पलट गया जिसमें अपार संभावनाएं थी

यह भी पढ़ें – सांस्कृतिक सौंदर्य का आख्यान: लौंडा नाच

.

Show More

गुलशन चौधरी

लेखक एक न्यूज चैनल में सहायक निर्माता हैं। सम्पर्क +918507734722, gulshanchoudhary97@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

3 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
3
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x