क्या एलिस फ़ैज़ के साये में दब कर रह गईं?
हमलोग बड़े लेख़को कलाकारों की जीवनी पढ़ते हैं तो उनकी पत्नियों के बारे में कम जानते हैं क्योंकि आम तौर पर जीवनीकार पत्नियों पर अधिक ध्यान नहीं देता। अंग्रेजी साहित्य में लेखक और उनकी पत्नियों के रिश्ते पर भी किताबें लिखी गईं है। शेक्सपियर की पत्नी एना हैथवे और टॉलस्टॉय की पत्नी सोफिया टॉलस्टॉय की भी जीवनी लिखी गयी लेकिन हिंदी उर्दू की दुनिया में लेखकों की पत्नियों के बारे में अधिक लिखा नहीं जाता।
हम कालिदास की पत्नी विद्योत्मा या तुलसी दास की पत्नी रत्नावली के बारे में बहुत कम जानते हैं क्योंकि उनपर किताबें नहीं हैं। शिवरानी देवी की किताब “प्रेमचन्द घर मे” के जरिये हम प्रेमचन्द के बारे में बहुत कुछ जानते हैं लेकिन शिवरानी देवी के बारे में नहीं जानते क्योंकि उनके जीवन पर कोई किताब नहीं है। प्रसाद की पत्नी के बारे में या रामचन्द्र शुक्ल या मुक्तिबोध नागर्जुन की पत्नियों के बारे में नहीं जानते या बहुत कम जबकि उन्होंने अपने पतियों के लिए काफी त्याग किया होता है, फ़ैज़ के बारे में हम बहुत कुछ जानते हैं लेकिन उनकी पत्नी एलिस के बारे में बहुत कम जानते हैं। ऐसा क्यों जबकि एलिस का त्याग संघर्ष और जीवन कम कष्ट में नहीं बीता।
हाल ही में फ़ैज़ की हिंदी में अनुदित जीवनी आयी है जिसमें एलिस के व्यक्तित्व का पता चलता है जिसके बारे में हम नहीं जानते थे। फ़ैज़ साहब एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे लेकिन ब्रिटेन की इस गोरी खातून से निकाह, उस ज़माने में बहुत बड़ा तरक़्क़ी पसंद फैसला था। एलिस ब्रिटेन के कम्युनिस्ट पार्टी की मेंबर थी। शायद यह भी कारण रहा होगा कि दोनों एक दूसरे के बहुत नज़दीक आये। इतने नज़दीक कि एक दूसरे के हो कर रह गए।
इस जीवनी में एलिस के व्यक्तित्व पर कुछ रौशनी डाली गई है लेकिन उन पर तो एक अलग किताब ही बनती है। अब तक उनके के बारे में दुनिया को कम पता है कि वह कितनी साहसी और धैर्यवान महिला थी। शौहर के साये में उनका व्यक्तित्व दब कर रह गया जबकि वह खुद एक रंगकर्मी,पत्रकार, शायरा थी जो कभी कृष्ण मेनन की सेक्रेटरी भी रह चुकी थी और बाद में वह संयुक्त राष्ट्र की अधिकारी भी बन गयी। लेकिन उन्होंने हर मुसीबत में फ़ैज़ का साथ दिया। जब फ़ैज़ लियाकत अली खान की सत्ता को हटाने के रावलपिंडी कॉन्सपिरेसी केस में गिरफ्तार हुए तब एलिस ने बड़ी हिम्मत दिखाई।
फ़ैज़ और एलिस की मुलाक़ात मोहम्मद दीन तासीर के घर पहली बार हुई थी। तासीर साहब अमृसर के एक कालेज में प्रिंसिपल थे। वह अल्लामा इकबाल के शागिर्द थे तथा सज्जाद जहीर के दोस्त भी थे। वह भारतीय महाद्वीप में पहले शख्स थे जिन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड से पीएचडी की थी। ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान ही उनकी शादी क्रिस्टनबेल से हुई जो एलिस की बड़ी बहन थी। शादी के बाद एलिस भी उनसे मिलने पाकिस्तान आईं थी। उनका पूरा नाम एलिस कैथरिन इवी जॉर्ज था। वह किताबों की बिक्री करने वाले परिवार में 1913 में जन्मी थी और उनके तीन भाई थे। उनकी मां एलिस गार्टन क्रूसीफिक्स ने 1910 में उनके पिता ज्योफ़्रे जार्ज से शादी की थी।
फ़ैज़ की बीबी एलिस गणित में पूरे लन्दन में टॉप आईं थी लेकिन आर्थिक हालात के कारण मैट्रिक से आगे नहीं पढ़ सकीं। बाद में वह स्टेनोग्राफर का कोर्स करने लगी और भारत की आज़ादी की लड़ाई के आंदोलन में ब्रिटेन में इंडिया लीग बना तो एलिस वी के कृष्ण मेनन की सचिव बन गईं। वह सोलह साल की उम्र में ही ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बन गईं। लन्दन में दोनों बहनें भारतीय छात्रों के संपर्क में आईं। इन छात्रों में मुल्क राज आनंद सज्जाद जहीर रजनी पाम दत्त आदि शामिल थे। इन्ही छात्रों में डॉ तासीर भी थे जिनसे एलिस की बड़ी बहन ने शादी कर ली। इक़बाल ने निकाहनामा तैयार किया था और वे काज़ी बने थे। 1936 में तासीर भारत आ गए और अमृसर के एम ए ओ कालेज में प्रिंसिपल बन गए। इसी कालेज में फ़ैज़ साहब अंग्रेज़ी के लेक्चरर थे।
यहीं दोनों की मुलाकात हुई और यह मुलाकात मोहब्बत में बदल गई,लेकिन उन दोनों ने अपनी मोहब्बत को छिपाये रखा। एलिस तो छुट्टियाँ मनाने अपनी बहन के घर आई थीं लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फंस गई। तासीर साहब को फैज और एलिस की दोस्ती शुरू में पसंद नहीं थी और वह फ़ैज़ को एलिस के योग्य नहीं मानते थे लेकिन बाद में उन्होंने फ़ैज़ को अपना साढ़ू कबूल कर लिया।
एलिस को अमृतसर के रोजमेरी इंटर गर्ल्स कॉलेज में अंग्रेजी और रेंज बढ़ाने की नौकरी मिल गई और वह टीचर्स हॉस्टल में रहने लगी जब की तासीर साहब कश्मीर में एक कॉलेज के प्रिंसिपल बन कर कश्मीर चले गए। फ़ैज़ की मुलाकातें एलिस से अधिक होने लगी और मोहब्बत परवान चढ़ने लगी। एलिस ने कहा है कि अमृतसर ही मेरे लिए हिंदुस्तान था और फ़ैज़ साहब ही मेरे लिए वह हिन्दुस्तान थे। “
फ़ैज़ की अम्मी और बहनों की ख्वाहिश थी की फ़ैज़ साहब एक समृद्ध परिवार में शादी करें। मगर फ़ैज़ एलिस से निकाह करने का अपना मन बना चुके थे। फैज़ का परिवार मुश्किलों के दौर से गुजर रहा था क्योंकि फ़ैज़ के वालीद के इंतक़ाल के समय इस परिवार पर ₹80000 का कर्ज़ और परिवार की ज्यादात जमीन बिक चुकी थी और बाकी जमीन मुकदमे में फंसी थी। फ़ैज़ ने एलिस को यह सब पहले से बता दिया था। एलिस भी जानती थी कि वह केवल फ़ैज़ से नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार से शादी कर रही है जो उनके ऊपर ही आश्रित था।
लंबे इंतजार के बाद आखिर फ़ैज़ की अम्मी राजी हुई तो फ़ैज़ ने एलिस से कहा अगर तासीर और क्रिस्टिना बेल तैयार हो तो वह उसी साल सादे ढंग से शादी कर सकते हैं। एलिस की बड़ी बहन तथा उनके पति भी काफी खुश हुए क्योंकि इसका मतलब था दोनों बहनें भारत में ही रहेंगी। तब तक डॉक्टर तासीर अपनी पत्नी के समझाने पर एलिस की फ़ैज़ से शादी के लिए राजी हो गए थे। फ़ैज़ और एलिस की शादी 28 अक्टूबर 1941 को हुई। फ़ैज़ ने एलिस के लिए शादी की जो अंगूठी ली वह भी उन्होंने अपने दोस्त मियां इफ्तिखार उद्दीन से ₹300 उधार ले कर लिए थे। शेख अब्दुल्ला ने फैज की शादी में काजी की भूमिका निभाई थी। नए जोड़े ने 2 दिन श्रीनगर में हनीमून मनाया और फिर लाहौर लौट आया।
एलिस ने लाहौर में अपनी मेहनत से कई औरतों के लिए एक मिसाल पेश की। लाहौर आर्ट काउंसिल में पहला कठपुतली थिएटर, चिल्ड्रंस एंड सोसाइटी, पाकिस्तान टीवी एसोसिएशन के गठन के लिए उन्होंने खूब काम किया और यह सब के लिए वह प्रेरणास्रोत ही बनी रहीं। वह पाकिस्तान की पहली महिला पत्रकार थीं। उन्होंने पाकिस्तान टाइम्स में महिलाओं और बच्चों के लिए एक पन्ना शुरू कराया था।
फ़ैज़ की जब रावलपिंडी कॉन्सपिरेसी केस में गिरफ्तारी हुई तो शुरु में एलिस को बताया नहीं गया वह किस जेल में हैं,बाद में जब वह जेल में फ़ैज़ से मिली तो वह मुलाकात एक फिल्मी किस्से की तरह दर्द भरा था। क्या एलिस की शख्सियत फ़ैज़ से कम थी तो फिर उनके बारे में यह जानकारी आम लोगों तक क्यों नहीं पहुंची। क्या वह पति के साये में दब कर रह गयी?