सुशांत और रिया का मच मच
सुशांत मर गया। बिना बोले मर गया। बोल कर कोई मरता भी कब है? लेकिन सुशांत ऐसे मरा कि कई की बोलती बन्द हो गयी। जिनकी बोलती बन्द हुई, वह हुई। लेकिन जिनने बोला था अब उनकी बोलती बन्द है। रिया चक्रवर्ती बोली थीं। सबसे पहले उनने ही बोला था। बोला था कि सुशांत की मौत की सीबीआई जाँच होनी चाहिए। उनके बाद अनेक ने यह माँग की है। जब अनेक ने माँग की हैं, तब रिया चुप हैं। केवल चुप नहीं हैं, दुहाई भी माँग रहीं हैं। कभी उच्चतम न्यायालय में तो कभी मुंबई उच्च न्यायालय में। अब रिया चक्रवर्ती आरोप के दायरे में हैं। अकेले नहीं हैं। उनके माता पिता और भाई भी आरोप के घेरे में हैं। सुशांत के पिता ने एफआईआर कर दिया है। पटना में। बिहार पुलिस तलाश कर रही है। रिया भाग रही हैं। आमतौर से बॉलीवुडी सिनेमा में चेजिंग शॉट कुछ अनावश्यक लम्बा होता ही है। कई बार उबाऊ भी, मगर सेंसेशन तो बनता है। गुदगुदाता भी है।
लेकिन रिया और उसके हमदर्द भी यह जानते हैं कि वह अकेले में भी अपने मन में यह नहीं बुदबुदा सकतीं कि रिया को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। रिया पर आरोप सिद्ध न भी हो तब भी वे सच तक पहुँचाने की सारथी अवश्य बनेंगी। अगर सुशांत की मौत हत्या है, तो खुदा करे कि रिया कातिल तक पहुँचाने का जरिया मात्र बनें। अगर रिया हत्यारिन नहीं हैं तो भी अपनी मुहब्बत को इंसाफ की मंजिल तक पहुँचा सकें। वे कबूल कर चुकी हैं कि सुशांत के साथ उनका लिव – इन रिलेशन था। लव इन रिलेशन में मुहब्बत भी कुछ फीसदी होती होगी !
आरोप है कि रिया ने सुशांत को अगवा कर लिया था। उनका लोकेशन बदल दिया था। इसके लिए उनने भूत का सहारा लिया। भूत होता है कि नहीं, नहीं मालूम। अपनी कभी भूत से मुलाकात नहीं हुई। हाँ, भूत की कहानी होती है। भूत डराए या न डराए, कहानी तो डराती है। केवल डराती नहीं है, गुदगुदाती भी है। हमें अच्छा बनाती है, हमें बुराई की ओर भी ढकेलती है। कुल मिला कर सच यह है कि हमारा निर्माण कहानियों से होता है। हम कहानियों की कठपुतली हैं। सुशांत प्रतिभाशाली तो थे मगर अपवाद नहीं। अपवाद अगर होते भी तो? मर्द तो थे। मर्द जज्बाती तो होते ही हैं। जज्बाती मर्द डरते भी खूब हैं। पुरुषों में मानसिक बल कम ही होता है। जितना भी होता है अगर स्त्री का मानसिक बल उसे न मिले तो वह अधूरा ही होता है। इसीलिए पुरुष स्त्री के लिए तड़पता रहता है।
अगवा करने का मकसद बड़ा नहीं होता है, छोटा होता है। छोटा मकसद यह होता है कि बड़ा फायदा मिल जाए। बड़े फायदे का मतलब बड़ी राशि होती है। उस पर पन्द्रह करोड़ के गबन का आरोप भी है। आमतौर से फिरौती की रकम मिलने पर अगवा की गयी कंसाइनमेंट छोड़ ही दी जाती है। लेकिन हमेशा नहीं। और फिर सुशांत का माथा ऐसा भी नहीं था कि उसे काला जादू के बल से ज्यादा दिनों तक मुर्गा बना कर रखा जा सकता था। बिहारी था, कभी भी उसका माथा ठनक सकता था। सनक सकता था। सनक जाता तो? इस गणित का हल ही उसकी मौत हो सकती है। अगर अदालत में अगवा साबित किया जा सका तो सुशांत की मौत पहेली नहीं है।
मगर सुशांत की मौत अभी पहेली बनी हुई है। रिया ने उस पहेली में पेंच डाल दिया है। कयास लगाने का मौका भरपूर दे दिया है। कानून के अल्फाज में इसे जाँच में सहयोग करने से भागना कहते हैं। आम बोलचाल की भाषा में खलल डालना भी कह सकते हैं। उनने कहा है कि ऐसा वे अपने वकील की सलाह पर कर रही हैं। फिल्मों के डायलॉग में हमने अक्सर वकील के साथ काबिल विशेषण सुना है यानी काबिल वकील। हालांकि ‘हमारे काबिल दोस्त बकईल’ कहने में व्यंग्य की ध्वनि निहित रहती है। खुदा जाने मंशा क्या होती है? मगर यह भेद अभी अभेद बना हुआ है कि रिया एकवचन है या बहुवचन?