- विमल कुमार
हर सरकार कुछ न कुछ काम करती ही है, उसकी कुछ प्राथमिकताएँ होती हैं| लेकिन वह कई काम नहीं भी करती है| यह अलग बात है कि काम करने में कुछ की रफ़्तार तेज होती है तो कुछ की रफ़्तार बहुत धीमी होती है| कुछ अपनी उपलब्धियों को जोर से प्रसारित प्रचारित करती है तो कुछ इस पर अधिक ध्यान नहीं देती है| इसी तरह हर दौर में विपक्ष भी सवाल उठाता रहता है लेकिन यह अलग सवाल है कि वह किस तरह के सवाल उठाता है और इसके पीछे उसकी क्या राजनीति रहती है और उसकी नीयत क्या रहती है, उसका क्या अजेंडा रहता है| इसलिए सरकार और विपक्ष दोनों के कुछ उत्तरदायित्व होते हैं, दोनों की राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका होती है| एक लोकतान्त्रिक समाज में सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं| लेकिन अब प्रश्न यह है कि क्या वे दोनों अपने समय में कसौटियों पर खरे उतरे हैं? लेकिन यहाँ यह प्रश्न भी महत्त्वपूर्ण है कि आखिर वह कौन सी कसौटियाँ हैं, जिस पर दोनों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए? क्या कसौटियाँ भी समय बदलने के साथ साथ बदलती रहती हैं क्योंकि हर सरकार और हर विपक्ष की प्राथमिकताएँ भी बदलती रहती हैं|
गठबंधन सरकार के दौर में दोनों की भूमिका को उस दौर की वस्तुगत स्थितियों के हिसाब से ही रेखांकित किया जा सकता है| यूपीए एक और यूपीए दो के बाद अब एनडीए दो का भी कार्यकाल समाप्त हो गया है और अब देश 17वीं लोकसभा के चुनाव से गुजर रहा है| यह चुनाव 1977 के चुनाव की तरह बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है| इस से देश की राजनीति और भविष्य की दिशा के संकेत मिलेंगे| 77 का चुनाव उस समय आपातकाल के बाद का वह चुनाव था, इस बार अघोषित आपातकाल का दौर है| जयप्रकाश नारायण आन्दोलन में भी गरीबी बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का मुद्दा खूब छाया था लेकिन आज साम्रदायिकता के साथ साथ किसानों की बदहाली और स्त्री के खिलाफ हिंसा का भी मुद्दा जुड़ गया है| इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया का भी मामला जुड़ गया है| इस बीच नयी आर्थिक नीति के कारण राज्य का कारपोरेटीकरण भी तेजी से हुआ है| इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष की चुनौतियाँ पहले से बढी हैं| जाहिर है जब चुनौतियाँ बड़ी हैं तो उसकी कसौटियों का स्वरुप भी बदला है|
मोदी जब सत्ता में आये थे तो वे राष्ट्र निर्माण और विकास का बड़ा सपना दिखाकर आये थे| उन्होंने जनता से कई वादे किये लेकिन क्या पाँच सालों में वे उन पर खरे उतरे? आज बहुत लोगों का मोदी सरकार से मोहभंग हुआ है| लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है कि जिसकी अंधभक्त आस्था मोदी और उसकी सरकार पर अभी भी बनी हुई है| इसी तरह विपक्ष से भी कुछ लोगों की उम्मीदें हैं लेकिन प्रश्न यह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष उन उम्मीदों को पूरा करने में कितना सक्षम हो सकेगा?
नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में आये थे और उन्होंने 15 लाख रुपये प्रत्येक नागरिक को देने का वादा किया था लेकिन 5 साल गुजर जाने के बाद भी वे इस वायदे को पूरा नहीं कर पाये| इसके अलावा वह महँगाई के मोर्चे पर भी विफल हुए जबकि खुद उन्होंने महँगाई कम करने का वादा किया था| उन्होंने दो करोड़ हर साल नौकरी देने का वादा किया था लेकिन वे इस मोर्चे पर भी विफल हुए| किसानों की समस्याओं को सुलझाने में भी वे पूरी तरह सफल नहीं हुए| भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर उनके कार्यकाल में करीब चालीस प्रतिशत एनपीए बढ़ गया| करीब चालीस से अधिक आर्थिक अपराधी भागे और चार प्रमुख अपराधियों नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या और ललित मोदी आजतक वापस भारत नहीं लौटे| नोटबन्दी से जितने फायदे अरुण जेटली ने गिनाये वे सब व्यर्थ साबित हुए| केवल एक फायदा यह हुआ कि, करों की वसूली का विस्तार और आयकर रिटर्न में वृद्धि हुई| प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क योजना के निर्माण की रफ़्तार जरुर तेज हुई और शौचालयों एवं प्रधानमन्त्री ग्रामीण आवास के निर्माण में तेजी आयी तथा उज्ज्वला योजना एवं शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा मिला| लेकिन यह भी सच है कि मोदी सरकार ने कांग्रेस की ही योजनाओं को नए नाम से लागू किया| हकीकत यह है कि मोदी सरकार ने विज्ञापनों के जरिये इन कार्यों का ढिंढोरा भी बहुत पीटा, जिससे यह तस्वीर उभर कर आयी कि मोदी ने बहुत काम किया| इतना काम तो किसी कार्यकाल में हुआ ही नहीं| मोदी ने भाजपा आईटी सेल से एक नया झूठ गढ़ने और अपने समय के सत्य को नकारने, उसका गला दबाने का काम किया| दरअसल मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने एक नया और नकली नैरेटिव रचने का पूरा प्रयास किया और जब कुछ लोगों ने इस झूठ का पर्दाफाश करने की कोशिश की तो उनका दमन भी शुरू किया| इसके बावजूद एक बड़े वर्ग पर मोदी सरकार का जादू कायम है, इसका कारण यह है कि शहरी मध्यवर्ग का नायक अब मोदी हैं| उनकी गतिशीलता, उर्जा, भाव-भंगिमा, जोश, भाषण की कला और सकारात्मकता, आत्मविश्वास से मध्यवर्ग आकृष्ट है| यह सच है मोदी विपक्ष की विफलताओं विशेषकर कांग्रेस की विफलताओं का दिया हुआ एक उपहार है| आर्थिक नीति के मामले में कांग्रेस और भाजपा में कोई बुनियादी फर्क नहीं है| किसानों की आत्महत्या दोनों के काल में हुई| कृषि संकट के लिए कांग्रेस भी जिम्मेदार है| सांप्रदायिक दंगे दोनों के कार्यकाल में हुए| भ्रष्टाचार के दाग दोनों के चेहरे पर लगे हैं| बैंकों का एनपीए दोनों के कार्यकाल में बढे हैं| शिक्षा का निजीकरण दोनों के कार्यकाल में हुए लेकिन मोदी सरकार ने समाज में गिरावट की रफ़्तार को और तेज किया है| कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के नाम पर कांग्रेस की बुराइयों का अनुसरण किया| दरअसल गत दो-तीन दशकों में सत्ता और विपक्ष के स्वरुप में बदलाव आया है| सत्ता पक्ष के लोग विपक्ष में आते ही अपने सुर बदल देते हैं और विपक्ष के लोग सत्ता में आते ही वही आचरण करने लगते हैं| भाजपा ने आधार, जीएसटी मनरेगा सबका विरोध किया पर सत्ता में आते ही उसे अपना लिया और उसकी खूबियाँ भी गिनने लगे| ,कांग्रेस भी कमोबेश वही लटके झटके अपनाती है जो भाजपा अपनाती है| महिला आरक्षण विधयेक अगर २० साल से पास नहीं हुआ तो इसके लिए दोनों दल ही जिम्मेदार हैं क्योंकि दस प्रतिशत स्वर्ण आरक्षण जब दोनों की सहमती से पास हो सकता है तो महिला आरक्षण क्यों नहीं, जब इलेक्शन बांड्स का विरोध कांग्रेस नहीं करेगी और राजनीतिक दलों के चंदे के स्रोत को गोपनीय रखने का कानून भाजपा कांग्रेस की मिली भगत से बना सकती है तो जाहिर है कि जनता की कसौटियों पर दोनों दल खरे नहीं है लेकिन मोदी सरकार की तुलना में कांग्रेस के कार्यकाल में आज़ादी का स्पेस मिलने से प्रगतिशील आधुनिक और उदार लोग कांग्रेस को ही स्वीकारते हैं क्योंकि भाजपा तो साम्प्रदायिकता, छद्म राष्ट्रवाद, उग्र हिंदुत्व, अवैज्ञानिकता, रुढ़िवाद की प्रतीक बन गयी है| वह अल्पसंख्यकों, प्रगतिशीलों को साथ लेकर चलती है लेकिन भाजपा तो उन्हें तिरस्कृत करती है और उनके खिलाफ विष वमन करती है| उसके नेताओं में स्त्रियों को लेकर सामन्तवादी दृष्टिकोण मौजूद है| उस पार्टी में पढने लिखने बौद्धिकता की संस्कृति नहीं है| गाय मन्दिर मस्जिद, दंगा, लव जिहाद नफरत साम्प्रदायिक अशांति उनकी संस्कृति है, उनका राजनीतिक अजेंडा है| ऐसे में विपक्ष को जनता के वास्तविक मुद्दों को उठाने की जरुरत है| विपक्ष भी एकजुट पुरी तरह नहीं है, उसके अपने अन्तर्विरोध हैं, उनमे भी सत्ता की बन्दरबांट है उसमे भी बहुत बिखराव और खींचतान है जिसका फायदा भाजपा और संघ परिवार उठा रहा है| अगर इस चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बन जाता तो मोदी की हार तय थी| मोदी सरकार चुनाव में धन बल का प्रयोग कांग्रेस से अधिक करती है, शायद यही कारण है कि भ्रष्टाचार मिटने का दावा करने वाले मोदी ने 5 सालों मे चुनाव सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया| अब जाकर उन्होंने लोकपाल नियुक्त किया, इस से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि वे इस मुद्दे पर कितने गंभीर थे| अगर इसके बाद भी भारतीय जनता मोदी की प्रशंसक बनी हुयी है तो यही कहा जा सकता है कि यह देश के इतिहास का सबसे बुरा दौर है जिसमे झूठ को बहुत चालाकी से सत्य में बदल दिया गया है, इस तरह मोदी ने अपना बहुरुपिया स्वरुप प्रदर्शित किया और लोगों को झांसे में रखा, यह अत्यंत चिंता और दुर्भाग्य की बात है कि लोकतंत्र अब झांसातंत्र बनता जा रहा है|
लेखक वरिष्ठ कवि और पत्रकार हैं|
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