मिन्टू तामुलि का यूँ चले जाना…
अरुणाचल प्रदेश की ख़बरें बाहर कम पहुँचती हैं। इस प्रदेश की बड़ी-बड़ी घटनाओं पर भी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल अक्सर मायूस कर देते हैं। उनकी खामोशी सालती है और दुख भी होता है कि कवरेज को लेकर यह अकाल क्यों है? मिन्टू तामुलि जैसे लोग इसकी भरपाई करते रहे थे। इस युवा मीडियाकर्मी को अपने लोगों की फिक्र और चिंता गहरी थी। उनको पता था कि अरुणाचलवासी ख़बरों, सूचनाओं, जानकारियों, मनोरंजन इत्यादि के मामले में बेहद सजग और संवेदनशील लोग हैं। मिन्टु खुद इसके लिए जीजान से जुटे दिखते थे। अपने भूख-प्यास और आराम की परवाह किए बगैर न्यूज़ के पीछे दौड़-भाग करना उनका शगल था, और काम करने की शैली भी।
अचानक गुरुवार शाम को एक बुरी ख़बर से सामना हुआ। मिन्टू तामुलि का कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया। यह सदमा सबके लिए बड़ा आघात था। जिस शख्स को मैं जानती थी, आज उसके मौत की ख़बर पर एतबार करना आसान नहीं था। भला 32 साल की उम्र में कोई इस तरह जाता है। जिसे अभी बहुत दूर जाना था। खूब नाम कमाना था, आज उसे प्रदेश की मीडिया और उनसे जुड़े लोग शोक-श्रद्धाजंलि देने जा रहे थे। सोशल मीडिया में दुःख जाहिर करने का तांता लगा हुआ है जो भी ख़बर सुन रहा है, हतप्रभ और अवाक् है।
अरुणाचल प्रदेश चीन के साथ अन्तरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। अक्सर सीमा पर छिटपुट विवाद होना आम बात है। मिन्टू तामुलि को ऐसे अन्तरराष्ट्रीय मामलों की ख़बर बनाने में दक्षता हासिल थी। उनके पास मीडिया में काम करने का लम्बा अनुभव रहा था और चीन के साथ भारत के सीमा-विवाद को वे सबसे अच्छे से जानते थे। इसलिए कई बार साथी पत्रकार उन्हें ‘चीनी न्यूज़’ कहते थे। मिन्टू तामुलि के मन में भारतीय सैनिकों के प्रति अपार सम्मान था। वह अक्सर सिपाही की तान और बोल में आवाज निकाल सबको सुनाया करते थे।
कहने को तो वे असम से थे लेकिन पैदा अरुणाचल प्रदेश में हुए थे। जब भी बात होती वे अपने मम्मी-पापा की चर्चा करते दिखते थे। उनके मम्मी-पापा सर्विस के सिलसिले में बहुत साल पहले यहाँ आए थे। इस नाते मिन्टू तामुलि की पूरी जिंन्दगी यहीं बीती। मिन्टू अंदर-बाहर से बेहद खुले मन और बिंदास अंदाज के थे। वे सबके साथ घुलमिल जाते थे। ग्लैमर्स की दुनिया उनको पसंद थी। उन्हें कैमरे में आना अच्छा लगता था। पहले वे जीरो में रहते हुए एक केबल नेटवर्क में काम कर रहे थे। फिर बाद में वे ईटानगर कैपिटल आ गए। मिन्टू तामुलि ने बहुत कम समय में मीडिया में अच्छी जगह बना ली थी। उनका अनुभव कई सारे मीडिया चैनलों में काम करने का रहा था। जैसे- न्यूज़18, प्राइम टाइम, प्रतिदिन, सीडीसीएन और अरुणभूमि। इसमें कुछ चैनल स्थानीय और असम के थे, तो कुछ राष्ट्रीय स्तर की भी।
मिन्टू तामुलि अरुणाचल प्रदेश में रहते हुए पूरी तरह यहीं के हो गए थे। उनका खान-पान, बोल-चाल, रहन-सहन सब अरुणाचली ढंग और मिजाज़ का था। पत्रकारिता को लेकर उनमें जुनून और लगाव जबर्दस्त था। जज़्बा और जोश ऐसा कि किसी भी हद्द तक जा सकता थे। मिन्टू तामुलि कुछ वर्ष पहले हुए पीआरसी कांड में अपने बाएँ पैर में गोली खा चुके थे। वह एक चिर-परिचित चेहरा हो चुके थे। मीडिया में उनकी यह अपनी कमाई हुई साख ही थी कि उन्हें इतने कम दिनों में प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक जानने लगे थे। प्रदेश के मंत्री, विधायक, शासक-प्रशासक, कचहरी, थाना, विश्वविद्यालय इत्यादि सब जगह लोग मिन्टू तामुलि को अच्छे से जान चुके थे।
मिन्टू तामुलि को मैं भैया ही कहकर बुलाती थी, वे मुझे कार्पी बहन कहते थे। अक्सर उनसे सामना होता तो, वे बोलते-‘कार्पी बहन, आज क्या ख़बर बनाएगा?’ यह कितना दुखद है कि आज वे मेरी ही स्टोरी का हिस्सा हो गए। किसी ने नहीं सोचा था कि अचानक उनके दिवगंत होने की ख़बर सुनने को मिलेगी। एक हँसता-खिलखिलाता चेहरा हमसे इतनी जल्दी बिछुड़ जाएगा। यह क्षति सिर्फ व्यक्तिगत या सामूहिक नहीं है। पूरा प्रदेश मर्माहत है। चारों ओर शोक की लहर है। नियति इतनी निष्ठुर और निर्दयी हो सकती है, यह भरोसा करना आसान नहीं होता है।
मिन्टू तामुलि को पत्रकारिता का पेशा मजेदार लगता था। लेकिन उनके घर वाले इस नौकरी को अच्छा नहीं मानते थे। क्योंकि वे काम के चक्कर में कई-कई दिन घर ही नहीं पहुँचते थे। उनके मम्मी-पापा चाहते थे कि वे सरकारी नौकरी करे और यह काम छोड़ दे, लेकिन यह मिन्टू भैया को बिल्कुल भी गंवारा नहीं था।
यह सही था कि उनको किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं थी। माँ-पापा नौकरी कर रहे थे। बड़ा-सा चाय बागान है। उनकी माँ ने एकबार खुद प्रयास करके देखा। उन्होंने स्थानीय विधायक की मदद से मिन्टू भैया के लिए यूडीसी पद की नौकरी के लिए बात किया, लेकिन वे अपनी माँ से ही इस बात को लेकर झगड़ बैठे। वे मीडिया के इस पेशे को किसी हाल में नहीं छोड़ना चाहते थे, चाहे जितना भी पैसा कम मिले। वैसे भी इस फील्ड में रहते उनको 14 साल हो गए थे। इस क्षेत्र का अनुभव और उनका अपना सम्पर्क का दायरा काफी बढ़ चुका था, जिसे छोड़ना वे कभी नहीं चाहते थे।
मिन्टू तामुलि के काम करने का ढंग निराला था। वे कई वर्ष मीडिया में रहकर यह जान चुके थे कि दर्शक किस विषय अथवा मुद्दे को लेकर आकर्षित होंगे। घटनाओं की अन्तर्वस्तु कैसे तैयार होने से अधिक से अधिक दर्शक-संख्या उपलब्ध होंगे। वे सबकुछ जानते थे। वह हमेशा पूरी तरह से सक्रिय और लगातार ऊर्जावान दिखाई देते थे। इस नाते वे सबका चहेता भी थे। उन्होंने बहुत सारे प्रशिक्षु पत्रकारों को सिखाया भी काफी कुछ। उनके सिखाने का तरीका ही अलग होता था। आज की तारीख़ में उनके सिखाए कई लोग दूरदर्शन में काम कर रहे हैं। उन्होंने कई लोगों को मीडिया के इस पेशे में काम करना और बने रहना सिखाया।
मिन्टू तामुलि ने कईयों की जिन्दगी बनाई है। उनको भूलना आसान नहीं है। कैसे कोई भूल सकता है उस चेहरे को जो हमेशा दूसरों को हँसाता रहता था। वे इतना जिन्दादिल थे कि दोस्तों में उनकी एक अलग पहचान थी। वह हमेशा खुलकर बात किया करते और कई बार जबर्दस्त मजाक भी कर बैठते थे। वे दोस्तों की कई सारे राज खोलने का हैरतअंगेज कारनामा भी करते रहते थे। ये सब अब यादों के हवाले से ही याद किया जा सकता है। उन पलों को दुबारा जी पाना मुश्किल है। उनके जैसा हरफनमौला व्यक्ति दुबारा मुझे नहीं देखने को मिल सकती है। अपने से जुड़ा और गहरा लगाव रखने वाला ऐसा प्रतिभाशाली और संवेदनशील इंसान अबतक नहीं देखा था मैंने, और भविष्य में शायद ही कोई दुबारा ऐसी शख़्सियत मिले।