जनपक्षधरता पत्रकारिता के अजातशत्रु थे ललित सुरजन
प्रथम पुण्यतिथि पर विशेष
साहित्य समाज का दर्पण है, समाज का प्रतिबिम्ब है। साहित्य समाज का लेखा -जोखा है। किसी भी राष्ट्र या सभ्यता की जानकारी उसके साहित्य से प्राप्त होती है। साहित्य लोकजीवन का अभिन्न अंग है। साहित्य के बिना समाज और समाज के बिना साहित्य निरर्थक और अधूरा है। साहित्य के बिना समाज गुंगा है वही समाज के बिना साहित्य कोरा कल्पना है दोनों अपने अस्तित्व और विकास के लिए एक दूसरे पर निर्भर है।
साहित्य में साहित्यकार की भावनाएं और विचार आकांक्षाएं व सन्देश छिपी रहती है वह साहित्य सृजन से समाज में नई क्रांति नई उमंग जज्बात की जिन्दा रखने की पुरजोर कोशिश करता है और वह साहित्य से समाज में नई सन्देश का आगाज कर नव सृजन करता है। साहित्य लेखन और पत्रकारिता के नींव को समृद्ध रखने के साथ-साथ नई पीढ़ी के मार्गदर्शक रहे विरष्ठ साहित्यकार ललित सुरजन जी को मेरे लिए लिख पाना बहुत ही कठिन काम है उन्होंने अपने जीवन भर लेखन किया और साहित्य को समृद्ध करते हुए समाज का सृजन किया उनकी जीवन नई पीढ़ी को सृजन करने में कट गई। ललित सुरजन जी कहते थे जिस विषय पर आप लिखते हैं उस विषय के बारे में समुचा अगर ज्ञान नहीं है तो मत लिखो सुरजन जी से जब-जब मेरी मुलाकत आमने -सामने हुई है तब -तब कुछ न कुछ नया सीखने को मिला है
सुरजन जी आशावादी, स्वाभिमानी जनपक्षधरता पत्रकारिता के अजातशत्रु थे। उन्होंने अपने जीवन में पत्रकारिता के मूल्यों को बारीकी से समाज के सामने जैसा का तैसा रखे कभी पत्रकारिता और साहित्य लेखन को अपनी निजी स्वार्थ के लिए कलम नहीं चलाये निःस्वार्थ पत्रकारिता साहित्य सृजन के लिए जिये अपनी अन्तिम सांसों तक सृजन करते रहे।
ललित सुरजन का जीवन परिचय
ललित सुरजन देश के वरिष्ठ पत्रकार शिक्षाविद, लेखक, शांतिकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता थे। सुरजन जी ने अप्रैल 1961 में जबलपुर से प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में अपना पत्रकार जीवन प्रारंभ किया था। उन्होंने समाचार पत्र के सम्पादन, प्रबन्धन तथा उत्पादन इन सभी में अनुभव हासिल किया।
1 जनवरी 1995 से वे देशबन्धु पत्र समूह के प्रधान सम्पादक के रूप में कार्यरत रहे थे। उन्होंने 1966 से 1969 के बीच कालेज विद्यार्थियों के लिए स्नातक नामक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 1969 में रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के नवगठित पत्रकारिता विभाग के मानसेवी विभागाध्यक्ष का दायित्व भी 3 वर्ष तक निभाया। श्री सुरजन को 1977 में थामसन फाउण्डेशन, यूके की वरिष्ठ पत्रकार फेलोशिप के लिए चुना गया।
ललित सुरजन एक जाने-माने शिक्षा शास्त्री भी रहे। उन्होंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रायपुर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमेन 2006-2011, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन तथा सर्वशिक्षा अभियान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण समिति के उपाध्यक्ष तथा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं।
ललित सुरजन पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर की कार्यपरिषद (2000-2004 एवं 2010-2017) पं. सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, बिलासपुर की कार्यपरिषद (2012-2015), कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर की विद्यापरिषद (2011-2014) माननीय राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य रहे हैं।
श्री सुरजन अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। वे भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) की कार्यकारिणी व शासी परिषद के सदस्य व छत्तीसगढ़ राज्य के संयोजक, छत्तीसतगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष जैसे अनेक पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे थे।
ललित सुरजन की रचनाएं
एक लेखक के रूप में भी सुरजन जी की पहचान राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रही है। सन् 1960 से लेखन में सक्रिय रहते हुए उनके दो कविता संकलन एवं पांच निबन्ध संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी रचनाओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। उनके दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए- अलाव में तपकर, तिमिर के झरने में तैरती अंधी मछलियां, और एक निबन्ध संग्रह समय की साखी।
यात्रा संस्मरण हैं- शरणार्थी शिविर में विवाह गीत, दक्षिण के अवकाश पर ध्रुवतारा और नील नदी की सावित्री, द बनाना पील (अंग्रेजी)। वे देशबन्धु में हर गुरुवार साप्ताहिक स्तम्भ लिखते रहे हैं और देशबन्धु का चौथा खम्भा होने से इंकार शृंखला अन्तिम समय तक लिखते रहे। जिसकी अब आगे की कड़ी अधूरी रह गई। उन्होंने छत्तीसगढ़ में विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘अक्षर पर्व’ का प्रकाशन किया जिसको देश भर में प्रतिष्ठा मिली। वे देशबन्धु के साथ-साथ अक्षर पर्व के सम्पादक भी रहे।
ललित सुरजन ने रोटरी इंटरनेशनल के डिस्ट्रिक्ट 3260 (उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाकौशल) के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में भी सेवाएं दीं। रोटेरियन सुरजन को आर.आई. से बेस्ट गवर्नर का अवार्ड मिला तथा रोटरी फाउण्डेशन से उन्हें साइटेशन ऑफ मेरिट प्रदान किया गया। इसके अलावा उन्हें रोटरी सेवाओं के लिए अलग-अलग अवसरों पर सम्मानित किया गया। उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता, विश्व शांति व सद्भाव के प्रयोजन से विश्व के अनेक देशों की यात्रा की तथा अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में सक्रिय व नेतृत्वकारी भूमिक निभाई। वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाते थे।
वे देश के प्रसिद्ध पत्रकार मायाराम सुरजन की स्मृति में स्थापित ‘मायाराम सुरजन फाउंडेशन’ के अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष, भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) छत्तीसगढ़ अध्याय के संयोजक रहे हैं।
उन्होंने गरीब छात्रों व जरूरतमदों को मदद पहुंचाने 1984 में ‘देशबन्धु प्रतिभा प्रोत्साहन कोष’ ट्रस्ट की स्थापना की जिससे हर साल करीब दो सौ छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान कर शिक्षण कार्य में मदद पहुंचाई जाती है। 1996 में अंग्रेजी माध्यम स्कूल मानसरोवर विद्यालय की स्थापना भी उन्होंने की। उन्होंने उभरते रचनाकारों को प्रोत्साहित करने साहित्य के अनेक शिविर लगाए तथा रचनाकारों से मार्गदर्शन करवाते रहे। रायपुर, चम्पारण, महासमुन्द, कुरूद में शिविर आयोजित किए। व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई को उन्होंने छत्तीसगढ़ भ्रमण कराकर व्यंग्य लेखन की सार्थकता पर नव रचनाकारों को परिचित कराया। उन्होंने अपने जीवन में अनेक विदेश यात्राएं भी की।
ललित सुरजन का परिवार
ललित सुरजन का जन्म 22 जुलाई 1946 को महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के के उंद्री में हुआ था। 1966 में उन्होंने हिन्दी में एमए किया तथा 1977 में यूके में उच्चतर अध्ययन किया। उनकी चार पुत्रियां नवनीता, तरूशिखा व सर्वमित्रा तथा एक दत्तक पुत्री गुंजन हैं। जीवन संगिनी श्रीमती माया सुरजन हैं।
कोरोना काल के समय वे अस्वस्थ चल रहे थे उनकी इलाज दिल्ली के निजी अस्पताल में चल रही थी। 02 दिसम्बर 2020 को मस्तिष्काघात से निधन हो गया वे 74 वर्ष के थे। उनके निधन के खबर से पत्रकारिता जगत में उथल -पुथल मच गई उनका जाना हर वर्ग के लिए बड़ी छति है। समाज को लेखन से सृजन करने की जो बीड़ा सुरजन जी ने उठाई थी वह कार्य हमेशा उनकी हमें याद दिलायेगी। आज 02 दिसम्बर उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर सुरजन जी को नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।