खुला दरवाजा

क्या सचमुच होती हैं परियाँ?

 

दुनिया की तमाम संस्कृतियों, कला और साहित्य में कुछ ऐसी रहस्यमय और तर्क से परे चीज़ें हैं जिन्हें हमने देखा तो नहीं, लेकिन जो अनन्त काल से हमारी सोच और जीवन की हिस्सा रही हैं। देवदूत, राक्षस, शैतान और परियाँ उनमें शामिल हैं। उनमें से परियों ने हमारी कल्पनाओं को सबसे ज्यादा उड़ान दी है। स्त्रियों सी शक्ल-सूरत लेकर किसी दूसरे लोक से आने वाली, अपनी जादुई शक्ति के बल पर पंखों से ऊँची उड़ान भरने वाली, छोटे कद और असीम सौन्दर्य वाली शर्मीली परियाँ हमेशा से बच्चों का ही नहीं, बड़े लोगों और दुनिया भर के साहित्यकारों की कल्पनाओं का भी अहम हिस्सा रही हैं। परी मतलब एक ऐसी अलौकिक प्राणी जो बच्चों को बेहद प्यार करती हैं। उनका मन बहलाने के लिए हाथ पकड़ कर उन्हें रहस्यमय परीलोक की सैर पर ले जाती हैं। बेसहारा, दुखी बच्चों और भले लोगों को मदद और दुष्टों को दंड देती हैं। परियाँ हर युग में स्त्री सौन्दर्य का प्रतिमान भी रही हैं। आखिर कौन हैं ये परियाँ ? मानवीय कल्पना की उड़ान या सच में इनका कहीं कोई अस्तित्व भी रहा है ?

विज्ञान परियों को मानवीय फंतासी मानता है। ईश्वर, देवी-देवताओं, परलोक, राक्षस, शैतान, प्रेतात्माओं और स्वर्ग-नरक की तरह मानव मन की अनूठी कल्पनाओं में से एक। उसके अनुसार परियों की कल्पना के पीछे आदिकाल से लोगों में चला आ रहा यह विश्वास है कि दुनिया की सभी चीज़ों – हवा, जंगल, पेड़, फल-फूल, नदी, झरनों, पहाड़ों, पत्थरों और यहाँ तक कि परछाईयों तक में आत्मा है जो हमारे जीवन को प्रभावित और नियन्त्रित कर सकती है। कालान्तर में हमें प्रभावित कर सकने वाले प्रकृति के इन सभी अवदानों का लोगों ने मानवीयकरण किया। परियाँ मानवीकरण की इसी प्रक्रिया की उपज हैं। यह बात सही तो लगती है, लेकिन यह सवाल तो तब भी अनुत्तरित रह जाता है कि परियाँ अगर वाक़ई कल्पना की उड़ान हैं तो यह कैसे संभव हुआ कि प्राचीन दुनिया में जब लोगों के बीच कोई आपसी सम्पर्क नहीं था तब परियों की लगभग एक जैसी कथाएँ एक साथ दुनिया भर की लोकगाथाओं, गीतों, कल्पनाओं, स्वप्नों और साहित्य का हिस्सा कैसे बन गयीं ?

परग्रही प्राणियों के शोधकर्ता मानते हैं कि परियाँ प्राचीन काल में दूसरे ग्रहों से धरती पर आने वाले एलियन थीं जिनकी उड़ने की क्षमता और मानवेत्तर शक्तियों के आगे लोग नतमस्तक हुए। कालान्तर में मौखिक परम्परा से परियों के रूपरंग के साथ उनकी दयालुता, निश्छल बाल प्रेम, असाधारण शक्तियों और चमत्कार के किस्से-दर-किस्से जुड़ते चले गए। परामनोविज्ञान मानता है कि परियाँ हमारी पृथ्वी के वातावरण में रहने वाली दूसरे आयामों की जीव हैं। प्रकृति ने उन्हें अपने जंगलों, वृक्षों, फूलों, नदियों और झरनों की देखभाल का ज़िम्मा सौंपा है। वे पृथ्वी के सौन्दर्य की रक्षा करने वाली छोटी-छोटी अभौतिक अस्तित्व हैं जो आमतौर पर हमारी नज़रों से अदृश्य ही रहती हैं। उन्हें देखा जा सकता है, लेकिन यह देखना सामान्य आंखों से संभव नहीं। उन्हें देखने के लिए हमें चेतना के उस स्तर तक जाना होगा जो स्तर छोटे बच्चों, बहुत मासूम और सरल लोगों का होता है। दुनिया भर में बच्चे और मानसिक तौर पर अविकसित माने जाने वाले लोग परियों को देखने, उनके साथ बातें करने और उनके साथ खेलने की बात करते ही हैं।

परियाँ दुनिया के हर भूभाग की लोकगाथाओं और लोकगीतों का हिस्सा रही हैं। ज्यादातर लोकगाथाओं के अनुसार छोटे कद की परियों की खूबसूरत प्रजाति दूसरे लोकों से आकर रहने वाली पृथ्वी की सबसे पहली निवासी थीं। बाद में स्वार्थी और हिंसक मानव प्रजाति के उदय और विस्तार के कारण धीरे-धीरे उन्होंने धरती से दूरी बना ली। कुछ यूरोपीय संस्कृतियों, यहाँ तक कि भारतीय संस्कृति में भी मनुष्यों और परलोकवासी परियों के बीच प्रेम, विवाह और यौन-संबंध के कई उल्लेख मिलते हैं। इस पृथ्वी का कोई पुरुष चाहे तो परियों से प्रेम और ब्याह कर सकता है, लेकिन इस असामान्य रिश्ते की शर्तें बहुत कड़ी हैं। इनमें से किसी एक भी शर्त के उल्लंघन से ये रिश्ते न केवल टूट जा सकते हैं, बल्कि इन्हें तोड़ने की कीमत मनुष्य को अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ सकती है। मनुष्यों के परियों से विवाह की यह शर्त सुनकर क्या महाभारत के शांतनु की अलौकिक गंगा के साथ और ऋग्वेद के पुरुरवा की देवलोक की अप्सरा उर्वशी के साथ सशर्त विवाह की याद नहीं आती? उर्वशी और गंगा ने अपने भावी पतियों के आगे विवाह की जो शर्तें रखीं, वे मानवीय तो कतई नहीं थीं। दोनों अपने मानवीय पतियों द्वारा विवाह की शर्तों के उल्लंघन के बाद बहुत निर्ममता से उनसे तमाम नाते तोड़कर अपने-अपने लोक लौट गयी थीं।

परियों के प्रति भरोसा आज के वैज्ञानिक युग में कम तो हुआ है, समाप्त नहीं हुआ है। कुछ दक्षिण अमेरिकी देशों, स्कॉटलैंड और आयरलैंड में आज भी कुछ ऐसे इलाके हैं जिन्हें परियों का क्षेत्र कहकर सम्मान दिया जाता है। ऐसे इलाकों में न तो विकास के कार्य होते हैं और न पेड़ों की कटाई की जाती है। आयरलैंड में शान्नोन एयरपोर्ट के आसपास ऐसा ही एक चर्चित क्षेत्र है जिसे स्थानीय लोग परियों का देश कहते हैं। सदियों से लोग इस इलाके के पर्यावरण में किसी भी मानवीय हस्तक्षेप से बचते रहे हैं। कुछ दशक पहले जब वहाँ एयरपोर्ट के रनवे के विस्तार की कोशिशें हुई तो अजीबोगरीब घटनाएँ घटने लगीं। कभी मशीनें टूट जातीं, कभी औज़ार हवा में उड़ने लगते और कभी वहाँ काम करने वाले मजदूर रहस्यमय ढंग से घायल या मृत पाए जाते। इन उत्पातों की वज़ह जानने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम लगाई गयी, लेकिन किसी की समझ में कुछ नहीं आया।

अन्ततः सरकार को उस क्षेत्र में रनवे के विस्तार का काम रोक देना पड़ा था। इस बहुचर्चित घटना के बाद परामनोवैज्ञानिकों का ध्यान इस इलाके की तरफ आकृष्ट हुआ। हमारे अपने देश में हिमालय के टिहरी गढ़वाल में बुग्याल कहे जाने वाले हरी-भरी घास के मैदान हैं, जिनमें आज भी परियों को देखने और उनके द्वारा ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के किस्से सुने-सुनाए जाते हैं। ये परियाँ वहाँ के लोगों की सोच का अभिन्न हिस्सा हैं। परियों की सकारात्मक ऊर्जा के प्रति उनका विश्वास इतना गहरा है कि उन्होंने वहाँ परियों का एक मंदिर भी बना रखा है। हर साल रक्षा-बन्धन के दिन लोग इस मंदिर में रक्षा-सूत्र बांधकर अपनी,अपने परिवार और गाँव की रक्षा का वरदान मांगते हैं।

परियों की खोज में एक प्रामाणिक और विश्वसनीय तथ्य तब जुड़ा जब पिछले साल वेल्श रैप ग्रुप के कलाकार जॉन रुतलेदगे एक कार्यक्रम के सिलसिले में साउथ वेल्स के भ्रमण पर थे। उन्होंने वहाँ के खूबसूरत मैदानों के कई फोटोग्राफ लिए। घर लौटकर जब उन्होंने तस्वीरें खोलकर देखीं तो उन्हें अपनी आंखों पर यक़ीन नहीं हुआ। कई तस्वीरों में नन्ही लड़कियों जैसी कई छोटी-छोटी जीव कैद थीं। उनके हाथ-पैर भी थे और चिड़ियों की तरह उनके पंख भी। वे सभी हवा में उड़ रही थीं। अखबारों में इन तस्वीरों की चर्चा के बाद कई वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं ने इन दुर्लभ तस्वीरों की जाँच की और पाया कि तस्वीरें असली हैं और उनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी है। क्या वे परियों की तस्वीरें थीं ? जॉन की इन तस्वीरों के वायरल होने के बाद दुनिया भर के परामनोवैज्ञानिकों ने गंभीरता से परियों के अस्तित्व की खोज शुरू कर दी है। इस घटना से यह तो साबित हो गया है कि परियाँ हमारी आंखों की ज़द से भले बाहर हों, उन्नत तकनीक वाले कैमरों से उन्हें पकड़ा जा सकता है। क्या पता तकनीक की सहायता से ये अलौकिक परियाँ किस्से -कहानियों से निकलकर कभी सचमुच हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाएँ !

आज की परिस्थितियों में निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि परियाँ सच हैं या कल्पना, लेकिन वे हमेशा से हमारी जिन्दगी का हिस्सा रही हैं और आगे भी रहेंगी। आज के वैज्ञानिक युग में भी परियों के प्रति दुनिया भर के बच्चों और बड़ों का आकर्षण कम नहीं हुआ है। सिर्फ परियों का नाम बदल गया है। अब उनको ‘एलियन’ कहा जाता है। पंखों के बजाय बड़े-बड़े यानों से दूरस्थ ग्रहों और उपग्रहों से पृथ्वी पर उतरने वाले छोटे कद के मनुष्यों-से दिखने वाले प्राणी। पिछली एक सदी में दुनिया के लगभग हर भाग में लोगों ने इन विचित्र परग्रही प्राणियों को देखने और उनसे मिलने के दावे किए हैं। क्या फर्क पड़ता है कि आज के बच्चे परियों की जगह असाधारण शक्तियों वाले एलियन के बारे में सोचते हैं, उनके सपने देखते हैं, उनसे मिलने की कल्पना करते हैं और उनके साथ आकाश की अनन्त ऊंचाईयों में उड़ जाना चाहते हैं

.

Show More

ध्रुव गुप्त

लेखक भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी तथा कवि एवं कथाकार हैं। सम्पर्क +919934990254, dhruva.n.gupta@gmail.com
5 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x