ब्लैक होल : वैज्ञानिकों के लिए भी अबूझ पहेली
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा इस वर्ष 2020 का भौतिक विज्ञान में अपने उल्लेखनीय कार्यों और वैज्ञानिक शोधों के लिए प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार भौतिकी के उन महान तीन वैज्ञानिकों को दिया जा रहा है, जो इस ब्रह्मांड के सबसे अबूझ, अजूबा व अद्भुत कृति ब्लैक होल पर से कुछ पर्दा हटाए हैं। ये तीन महान वैज्ञानिक हैं, क्रमशः पहले ब्रिटिश वैज्ञानिक 89 वर्षीय रोजर पेनरोज हैं, जो अभी भी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, दूसरे जर्मन वैज्ञानिक 68 वर्षीय लॉरियट रेनहार्ड जेनजेल हैं, जो जर्मनी के विश्वप्रसिद्ध मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर एक्स्ट्रा- ट्रेस्टियल, गार्चिंग, जर्मनी के डायरेक्टर और यूक- बर्केले, अमेरिका में प्रोफेसर हैं, तीसरी एक 55 वर्षीय अमेरिकी महिला वैज्ञानिक एंड्रिया गेज हैं, जो यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजेलिस में प्रोफेसर हैं।
उक्त इन तीनों वैज्ञानिकों को इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार इस ब्रह्मांड के सबसे अनोखी व रहस्यमय चीज ब्लैक होल के बारे में विशिष्ट अन्वेषण व खोज के लिए प्रदान किया गया है। रोजर पेनरोज ने शोध करके यह सिद्ध किया कि ‘ब्लैक होल अलबर्ट आइंस्टाइन के जनरल रिलेटिविटी के सिद्धांत का ही एक जरूरी परिणाम हैं’, लॉरियट रेनहार्ड जेनजेल और अमेरिकी महिला वैज्ञानिक एंड्रिया गेज का संयुक्त रूप से किये शोध का निष्कर्ष है कि ‘आकाशगंगा (गैलेक्सी) के केन्द्र में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल है, इसका निश्चित ठोस प्रमाण है, इसे सैजिटेरस ए *(Sagittarius A*) कहते हैं।
यह आकाशगंगा के लगभग मध्य में स्थित है तथा हमारे सूर्य से लगभग 43 लाख गुना भारी है, यह सुपरमैसिव ब्लैक होल इस पूरे आकाशगंगा के खरबों तारों और उनके ग्रहों को एक धुरी में व निश्चित परिधि व गति में अपने चारों तरफ परिक्रमा करने को संचालित करता है, अब यह भी सिद्ध हो चुका है कि इस ब्रह्मांड में स्थित अरबों-खरबों आकाशगंगाओं में हरेक आकाशगंगा के बीच में निश्चि रूप से एक अतिविशालकाय सुपरमैसिव ब्लैक होल का अस्तित्व अवश्य है।
अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में करोड़ो-अरबों प्रकाश वर्ष दूर स्थित इन ब्लैक होल्स की बनने की प्रक्रिया, इनके गुण-धर्म आदि विज्ञान की भाषा में और अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए भी वैसे तो बहुत ही गूढ़ और जटिलतम् है, फिर भी आइए बहुत ही सरल शब्दों में ब्लैक होल्स के बनने और इनके गुण-धर्म के बारे में समझने की कोशिश करते हैं। ब्लैक होल या कृष्ण विवर सूदूर अंतरिक्ष में एक ऐसा महाशक्तिशाली, अतिविशालकाय (सुपरमैसिव) गुरूत्वाकर्षण वाला एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके गुरूत्वाकर्षण या खिंचाव से प्रकाश सहित कोई भी वस्तु नहीं बच सकती! जब किसी अतिविशालकाय तारे का पूरा ईंधन जल जाता है, तो उसमें एक जबर्दस्त बिस्फोट होता है, उसे सुपरनोवा बिस्फोट कहते हैं।
उदाहरणार्थ हमारे सूर्य जैसे तारे में भी अरबों-खरबों साल बाद इसके ईंधन चुकने के बाद, जब यह निस्तेज होकर अपने प्रकाश विकिरण बिखेरना बंद कर देगा, तब इसमें एक जबर्दस्त बिस्फोट होगा इसका आकार लाखों गुना बढ़ जाएगा। यहाँ तक कि यह अपने निकटवर्ती ग्रहों यथा बुध, पृथ्वी आदि को भी अपने आगोश में ले लेगा, निगल जाएगा, तब उसे सुपरनोवा कहते हैं, इस महाशक्तिशाली सुपरनोवा बिस्फोट के बाद जो पदार्थ बचेगा, वह धीरे-धीरे सिमटना या सिकुड़ना या संघनित होना शुरू हो जाएगा, वह एक बहुत ही घने पिंड के रूप में संघनित हो जायेगा, उसे अब न्यूट्रॉन तारा कहते हैं, अगर न्यूट्रॉन तारा बहुत छोटा होगा तो वह एक प्रकाशहीन, निस्तेज बौने तारे में बदलकर अंतरिक्ष में ही विलुप्त सा हो जाता है।
परन्तु अगर न्यूट्रॉन तारा बहुत विशाल है, तो उसके गुरूत्वाकर्षण का दबाव इतना होगा कि वह अपने ही गुरूत्वाकर्षण के बोझ से सिमटता चला जाएगा और अंततः वह एक ब्लैक होल के रूप में बदल जाएगा। ब्लैक होल के चारों तरफ एक घटना क्षितिज नामक सीमा होती है, जिसमें प्रकाश सहित कुछ भी गिर तो सकता है, परन्तु उससे बाहर नहीं निकल सकता! इसे ब्लैक होल या कृष्ण विवर इसलिए कहते हैं, क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं नहीं होने देता। यह उष्मागतिकी में ठीक एक आदर्श ‘कृष्णिका’ की तरह होता है।
अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, ब्लैकहोल अन्य पदार्थों के साथ अंतः क्रिया के द्वारा अपनी उपस्थिति दर्शाता है, उदाहरणार्थ ब्लैकहोल का पता उसके आसपास के तारों की अनियमित गति से लगाया जा सकता है, क्योंकि तारे अंतरिक्ष में खाली और काले से स्थान की तेजी से परिक्रमा करते दिखाई पड़ते हैं, कभी-कभी एक बहुत बड़े तारे के द्रव्यमान को एक छोटे से ब्लैकहोल में गिरते हुए अपनी धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रहे अतिशक्तिशाली दूरबीनों से वैज्ञानिकों द्वारा देखा जा चुका है।
हमारे ब्रह्मांड की आकाशगंगा (गैलेक्सी) के मध्य में भी एक अतिविशालकाय (सुपरमैसिव) ब्लैकहोल स्थित है, जो हमारे सूर्य से भी लगभग 43 लाख गुना बड़ा, भारी और विशाल है! इसका नाम सैजिटेरस ए* (Sagittarius A*) रखा गया है। ब्लैकहोल के गुरूत्वाकर्षण के दबाव का अंदाजा हम ऐसे लगा सकते हैं कि जिस सूर्य का व्यास 13लाख 92 हजार 700 किलोमीटर है, वह ब्लैकहोल के गुरूत्वाकर्षणीय दबाव से मात्र 6 किलोमीटर व्यास के एक अति छोटे छुद्र स्टार में बदलकर रह जाएगा ! हमारी धरती का तो और भी बुरा हाल होगा, वह ब्लैकहोल के असीम गुरूत्वाकर्षणीय दबाव से अपने 12 हजार 742 किलोमीटर व्यास के आकार से सिकुड़कर मात्र 18 मिलीमीटर के आकार के एक छोटे से गेंद के आकार में आ जाएगी!
उक्त विवरणों से सूदूर अंतरिक्ष में स्थित ब्लैकहोल्स के असीम गुरूत्वाकर्षणीय बल, प्रकाश सहित सभी वस्तुओं आदि के अपरिमित अवशोषित करने की अपनी विकट क्षमता और उसके भौतिक कारणों को हम समझ सकते हैं, आशा है भविष्य में हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक ब्लैकहोल्स के बारे में और भी विस्तृत व अद्भुत जानकारी की खोज करते ही जाएंगे।