प्रवासी श्रमिकों की व्यथा
- शिवानन्द तिवारी
हमने कोरोना और उसके बाद लॉक डाउन में अपने प्रवासी श्रमिकों के साथ जिस प्रकार का सलूक किया है वह अत्यन्त अमानवीय है। प्रवासी श्रमिक हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन्हीं के श्रम से हमारे देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी चल रही है। अगर प्रवासी श्रमिक और विशेष रूप से बिहार के श्रमिक नहीं होते तो शायद पंजाब-हरियाणा की हरित क्रांति संभव नहीं हो पाती। इतना ही नहीं केरल के वित्त मन्त्री ने कहीं कहा है कि हमारे यहाँ प्रवासी श्रमिकों के बगैर तो काम ही नहीं चल सकता है। क्योंकि केरल की स्थानीय (मलयाली) आबादी लाखों की संख्या में गल्फ के देशों में कार्यरत है। स्थानीय श्रमिकों का वहाँ नितान्त अभाव है।
प्रवासी श्रमिक अगर वहाँ नहीं जाएँ तो वहाँ की विकास की गाड़ी ठप्प हो जाएगी। वहाँ के वित्त मन्त्री जी ने एक मित्र को बता रहे थे कि हम लोग चाहते हैं कि जो प्रवासी हमारे यहाँ काम करने आते हैं वे स्थाई रूप से यहीँ बस जाएँ। लेकिन भाषा और संस्कृति के अलगाव की वजह से यह संभव नहीं है। यही हाल पंजाब का है। पंजाब के मुख्यमन्त्री जी को पता है रबी की फसल की कटनी तो हो गयी। लेकिन खरीफ की फसल के समय प्रवासी श्रमिक नहीं आए तो संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी।
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कोरोना और उसके बाद लॉक डाउन की जिस तरीके से घोषणा की गयी उससे प्रवासी श्रमिकों के मन में भय और दहशत व्याप्त हो गया है। आप उस दृश्य को याद कीजिए जब प्रधानमन्त्री जी ने चार घंटे की नोटिस पर लॉक डाउन की घोषणा कर दी थी। उसके बाद जो भगदड़ मची उसको हम लोगों ने अपने जीवन में तो नहीं देखा है। पुराने लोग बताते हैं कि देश के विभाजन के समय जो भगदड़ हुआ था उसीकी झलक लॉक डाउन की घोषणा के बाद हुई भागदड़ में दिखाई दी। हजार-डेढ़ हजार किलोमीटर की यात्रा करके लोग अपने अपने गाँव पहुँचे रहे थे। रास्ते में कितनों के साथ क्या क्या गुजरी है उसका अध्ययन होना चाहिए।
हमने कहीं पढ़ा था कि दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था भी प्रवासी श्रमिकों के बल पर चलती है। वहाँ भी लॉक डाउन हुआ है। लेकिन वहाँ लॉक डाउन लागू करने के पहले प्रवासी श्रमिकों को अपने-अपने घर लौट जाने के लिए तीन दिन का समय दिया गया था। इसलिए वहाँ वैसी अफरा तफरी नहीं मची जैसा हम लोगों ने अपने यहाँ देखा। हमारे यहाँ प्रधानमन्त्री जी ने लॉक डाउन की घोषणा उसी तरह से किया जैसे उन्होंने नोटबन्दी का किया था। और दोनों का नतीजा हम लोगों ने एक जैसा ही देखा। चार घंटे की नोटिस पर पाँच सौ और हजार रुपये के नोट रद्दी कागज में बदल दिए गए थे।
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यह भी याद कीजिए कि किस तरह पुराने नोटों को बदलने के लिए बैंकों में आपाधापी मची थी! उस आपाधापी में। सौ-डेढ़ सौ लोग तो मर गए थे। लेकिन प्रधानमन्त्री जी ने उनके प्रति संवेदना व्यक्त करना तो दूर, कभी उनकी चर्चा तक उन्होंने नहीं किया। लगभग लगभग उसी अंदाज में लॉक डाउन की भी घोषणा की गयी है । इस डरावने तजुर्बे के बाद प्रवासी श्रमिक बाहर निकलने के पहले हजार दफा सोचेंगे। संभवत: आधा पेट खाना मंजूर कर लें लेकिन तत्काल बाहर जाएँगे इसकी कल्पना करना तो कठिन है।
अकेले बिहार के लगभग 29 लाख प्रवासी श्रमिकों ने बिहार लौटने की के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। यह पहली मर्तबा है कि बिहार सरकार को अपने यहाँ से पलायन करने वालों की आधिकारिक सूची मिल रही है। जिन लोगों ने लौटने के लिए अपना नाम रजिस्टर कराया है, उनके अतिरिक्त ऐसे लोग भी हैं जिनके खाते में बिहार सरकार ने एक-एक हजार रुपये जमा करवाया है। इसलिए बेहतर होगा कि बिहार सरकार इन तमाम प्रवासी श्रमिकों की प्रखण्ड वार सूची तैयार कर ले। बल्कि यह भी देखे कि पलायन करने वाले लोग समाज के किस समूह के हैं। ऐसा करने से भविष्य में योजना बनाते समय सरकार के सामने समाज के अलग-अलग समूहों की स्थिति की जानकारी सामने रहेगी।
भारत सरकार ने फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को वापस लौटाने के सम्बन्ध में जो दिशा निर्देश जारी किया है, वह आश्चर्यजनक है। हमारे देश को किस प्रकार के लोग चला रहे हैं, य़ह निर्देश उसका एक नमूना है। कहा गया है कि विद्यार्थियों और प्रवासी श्रमिकों को सड़क मार्ग से वापस लाया जाएगा।
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यानी केरल, महाराष्ट्र, गुजरात आदि हजार-डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी से प्रवासी श्रमिकों को वापस सड़क मार्ग से लाया जाएगा। वापस लाने में दो गज की दूरी बना कर रखने का भी निर्देश है। दो गज की दूरी का मतलब है एक बस में दस या पन्द्रह आदमी से ज्यादा नहीं बैठ पाएँगे। ऐसी हालत में प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने में छह महीना से साल भर तक का भी समय लग सकता है। अब इस तरह का निर्देश देने वाले को क्या कहा जाएगा!
स्मरण होगा की रेलवे मन्त्री ने घोषणा किया था कि हम लोग एक लाख लोगों को क्वारंटाइन कराने की तैयारी कर रखे हैं। यानी रेल के डब्बों में एक लाख लोगों को रखने की व्यवस्था रेल मन्त्रालय ने कर रखी है। ये गाड़ियाँ जो निरर्थक खड़ी हैं, उनका इस्तेमाल क्यों नहीं प्रवासी श्रमिकों को या विद्यार्थियों को वापस ले आने में किया जा सकता है! क्या प्रवासी श्रमिकों के प्रति भारत सरकार का कोई दायित्व नहीं है! कोरोना से लड़ने की जवाबदेही क्या सिर्फ राज्य सरकारों की ही है! केन्द्र सरकार का काम क्या सिर्फ दिशानिर्देश जारी करना है!
इसलिए हम भी भारत सरकार के गृह मन्त्रालय से अनुरोध करेंगे कि प्रवासी श्रमिकों और विद्यार्थियों को वापस बुलाने के अपने अव्यवहारिक दिशा निर्देश को वापस ले और तत्काल विशेष रेल गाड़ी चला कर विद्यार्थियों और प्रवासी श्रमिकों को जल्द से जल्द वापस ले आने में राज्य सरकारों की सहायता करे।
लेखक बिहार के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं।
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