देग में पकती सियासी खिचड़ी
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में बस दो माह बचे हैं। दो सियासी देग हैं एक सत्ता पर काबिज महायुति (बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और एनसीपी अजित पवार गुट) की देग है, जिसमें खिचड़ी के चावल और दाल अभी भी अलग-अलग दिखाई दे रहे हैं। दूसरी महाविकास अघाड़ी (कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और शरद पवार की एनसीपी) की देग, इससे बढ़िया पकती खिचड़ी की सुगंध अभी से आने लगी है। चुनाव में मुकाबला मुख्य रूप से महा अघाड़ी और महायुति के बीच ही होगा। कुछ छोटी पार्टियां भी है लेकिन उनका हाल पनियल दाल में दाल ढूंढ़ने जैसा है। प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी की महाराष्ट्र की राजनीति में भूमिका वैसी ही है जैसी उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा की, खेलेंगे, हारेंगे लेकिन खेल बिगाड़ेंगे।
राज ठाकरे की मनसे की दशा ‘न भाजी में न भटन में’ जैसी हो रही है। राज ठाकरे के करीबी और कभी पार्टी की पुणे ईकाई के अध्यक्ष रहे वसंत मोरे ने बड़ी संख्या में मनसे के नेताओं और पदाधिकारियों के साथ लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मनसे छोड़कर उद्धव ठाकरे से हाथ मिला लिया। उद्धव ठाकरे ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सबका शिवसेना (यूबीटी) में स्वागत किया। उद्धव ठाकरे और उनके शिवसैनिकों ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है। लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली सफलता का उत्साह पार्टी के वार्ड कार्यालयों में नज़र आ रहा है। इसके विपरीत शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के कार्यालयों में कार्यकर्ता निरुत्साहित और निराश दिखाई देते हैं।
सत्ता में महायुति की सरकार में तनातनी चुनाव के पहले ही सतह पर दिख रही है। शिवसेना (शिंदे गुट) लोकसभा में शिवसेना (यूबीटी) के बराबर सीटें जीतने के बाद मूछें मरोड़ रही है। ऐसे में तीनों के बीच चुनाव से पहले ही सीटों के बंटवारे पर असहमति चुनाव में बंटाधार कर सकती है। राजनीति के पंडितों की माने तो महाराष्ट्र में लोकसभा में दिखी परिवर्तन की बयार विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देगी।
दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी की हाल ही में सीट शेयरिंग के लिए एक मीटिंग हो भी चुकी है। सीट शेयरिंग का जो फार्मूला पता चला है उसके अनुसार कांग्रेस को 100-105 सीटें, दूसरे क्रम पर शिवसेना (यूबीटी) को 90-95 सीटें और एनसीआर (शरद पवार) को 80-85 सीटें।
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नहीं थी। कांग्रेस के पुराने वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। शिवसेना और एनसीपी भी पार्टी में टूट के कारण अच्छी हालत में नहीं थी। लेकिन तीनों घटकों ने सामंजस्य और तालमेल से गठबंधन का बेहतरीन उदाहरण महाराष्ट्र में पेश किया। परिणाम अपेक्षानुरूप रहे। लोस चुनाव परिणामों से उत्साहित नेताओं और कार्यकर्ताओं को लेकर कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जोरशोर से तैयारियों में जुट गई है। महाराष्ट्र के सभी कांग्रेस सांसदों को उनके क्षेत्र में जुट जाने को कहा गया है। रमेश चैन्निथला, शशिकांत सैंथिल, मधुसूदन मिस्री और पृथ्वीराज चव्हाण की टीम के हाथों में चुनाव की कमान है। आइएएस छोड़कर कांग्रेस में आए सैंथिल वार रूम के प्रभारी है। लोकसभा चुनाव में वे इस जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक संभाल चुके हैं। पृथ्वीराज चव्हाण को महाराष्ट्र की राजनीति की गहरी समझ है। मधुसूदन मिस्री के नेतृत्व में चार लोगों की टीम उम्मीदवारों का चयन करेगी। कह सकते हैं कि पिछली कुछ असफलताओं से सबक सीखकर चुनावी मशीनरी का गठन किया है।
महाराष्ट्र में जनता का मूड मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की महायुति सरकार के खिलाफ है जो लोस चुनाव में दिख ही गया है। इसके कई कारण हैं। शिंदे ने मुख्यमंत्री पद के लालच में उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात किया। महाराष्ट्र की जनता की नज़रों में शिंदे और पवार दोनों एक जैसे कारण से विलन बन गये हैं। बीजेपी की छवि घरफोड़ू की है। लोस चुनाव में जनता की महायुति सरकार के प्रति चिढ़ की भी महाविकास अघाड़ी की बड़ी विजय में भूमिका रही।
विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र और मुंबई में महाविकास अघाड़ी का काफी विस्तार हुआ है। कांग्रेस ने विदर्भ में खोई हुई जमीन पर इस बार मजबूत पकड़ बनाई है। शरद पवार की एनसीपी ने पश्चिम महाराष्ट्र में अपना गढ़ सुरक्षित कर लिया है। वसंत मोरे के मनसे छोड़कर उद्धव से हाथ मिलाने के कारण पुणे और आसपास के क्षेत्र में भी शिवसेना (यूबीटी) मजबूत हुई है। उद्धव ठाकरे ने वसंत मोरे को पुणे का प्रभारी बनाया है।
महाविकास अघाड़ी के पक्ष में काफी बातें हैं। कांग्रेस से जुड़ने के प्रभाव के अलावा उद्धव ठाकरे ने मुस्लिमों और उत्तर भारतीय लोगों को शिवसेना से जोड़ने के लिए निरंतर, अथक प्रयास किए हैं। उद्धव ठाकरे के प्रयास रंग लाए हैं। धारावी को अदाणी को सौंपने के खिलाफ शिवसेना (यूबीटी) ने लगभग तीन महीने पहले धारावी से बांद्रा-कुर्ला कांप्लेक्स स्थित अदाणी के कार्पोरेट ऑफिस तक एक सफल और विशाल रैली का आयोजन किया था। इस रैली में बड़ी संख्या में मुस्लिमों और उत्तर भारतीयों की उपस्थिति से उद्धव ठाकरे में उनका विश्वास साफ नज़र आ रहा था। मैंने स्वयं इस विशाल रैली को देखा है। जो वक़्त पर काम आए वही अपना है। यही वजह है कि कभी बीजेपी के साथ खड़े उत्तर भारतीय अब कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव) के साथ नज़र आ रहे हैं। धारावी में मुस्लिम बहुलता से हैं लेकिन उत्तर और दक्षिण भारत के लोग भी अच्छी खासी संख्या में है। केंद्र सरकार के धारावी प्रोजेक्ट के कारण संकट में इन सबके ठिकाने और दुकाने भी हैं। उद्धव ठाकरे में धारावी के लोगों को संकटमोचक दिखाई दे रहा है। इसके ठीक विपरीत शिवसेना (शिंदे गुट), अजीत पवार वाली एनसीपी बीजेपी के साथ सरकार में होने के कारण इनकी नज़र में खलनायक हैं। धारावी प्रोजेक्ट बीजेपी ने बनाया है इसलिए बीजेपी सबसे बड़ी खलनायक है। सारा धारावी क्षेत्र कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के पीछे लामबंद दिखाई देता है।
मनोज जरांगे का आरक्षण आन्दोलन महायुति सरकार के लिए विधानसभा चुनाव में नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है। विपक्ष बीजेपी की दलित विरोधी छवि बनाने में कामयाब हो गया है। महाराष्ट्र में दलित की अच्छी खासी संख्या है। कुछ क्षेत्रों में तो यह चुनावों में उलटफेर कर सकती है।
शिंदे सरकार भी मोदी-शाह की तरह सेल्फ गोल करने में पीछे नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र में किसानों द्वारा बड़ी संख्या में आत्महत्याओं पर ध्यान देने की बजाए शिंदे सरकार के प्याज के निर्यात पर रोक के निर्णय ने किसानों में पहले से भड़की आग में घी का काम किया। सरकार ने स्थिति की नज़ाकत के मद्देनज़र रोक हटा ली है। विभाग के मंत्री अजीत पवार ने गलती मानते हुए माफी भी मांग ली है। लेकिन किसान जानते हैं कि यह सब सरकार ने चुनाव के कारण किया है जैसे मोदीजी ने यूपी चुनाव के पहले किसान बिल वापस लेकर माफी मांगी थी।
मोदी-शाह नये भारत की बात करते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि वोटर की सोच भी नयी है और पहले की तुलना में वोटर अधिक चतुर हो गया है। इसीलिए जली काठ की हाँडी फिर-फिर आग पर चढ़ाते हैं।
अमित शाह ने एक सभा में महाविकास अघाड़ी को औरंगजेब फैंस क्लब और उद्धव ठाकरे को क्लब का चैयरमैन बताया। शरद पवार को भ्रष्टाचार का सरगना बताया। यह कोढ़ में खाज सिद्ध होगा।
बीजेपी की पकड़ उत्तर भारत तक ही सीमित रही है जहाँ स्थानीय अस्मिता का सवाल उतना बड़ा नहीं होता जैसा दक्षिण में मराठी, तेलगू, कन्नड़, तमिल और बंगाल में बंगाली अस्मिता का होता है। वहाँ स्थानीय अस्मिता से खेलना आग से खेलने से कम नहीं होता। महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता पर इन्होंने चोट करके महाविकास अघाड़ी को हथियार खुद ही तश्तरी में पेश किया है और वह इस हथियार का इस्तेमाल जरूर करेगी।
चुनाव को अभी दो माह शेष हैं। लोकसभा चुनाव परिणामों के मद्देनज़र ऊंट किस करवट बैठेगा इस सवाल का जवाब फिलहाल तो आसान दिख रहा हैं। लेकिन राजनीति में साफ चुनावी आसमान कब साफ से धुंधला या धुंधले से साफ हो जाएगा कोई नहीं कह सकता। चुनाव परिणाम क्या होंगे इसके लिए महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति पर आलेख का समापन मैं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे चैंबरलेन के कथन से करूंगा कि राजनीति में कभी भी केवल एक सप्ताह तक की ही भविष्यवाणी करो।