‘वक्त तो रेत है फिसलता ही जायेगा, जीवन एक कारवां है चलता चला जायेगा, मिलेंगे कुछ खास इस रिश्ते के दरमियां, थाम लेना उन्हें वरना कोई लौट के न आयेगा।’ शुक्रवार की रिलीज़ ‘कारवां’। आकर्ष खुराना की फिल्म। निर्देशन के साथ स्क्रीनप्ले में हाथ आजमाया। शौकत (इरफान खान) और अविनाश (दलकीर सलमान) की बांडिंग। साथ मिलता है तान्या (मिथिला) का। दरअसल, पिता की मौत के बाद अविनाश को खुद को समझने का मौका मिलता है। पिता के शव की जगह एक महिला का शव उसके पास पहुंच जाता है। उसी को सही मुकाम तक पहुंचाने के लिए अविनाश दोस्त शौकत के साथ बेंगलुरू से कोच्चि की यात्रा शुरू करता है।
फिल्म का प्लॉट इसी के इर्द-गिर्द बुना गया है। ‘कारवां’ की कहानी इसी थीम पर बेस्ड है। थीम के हिसाब से पंच लाइन मिलती है ‘हर सफर उस तरह खत्म नहीं होता, जिस तरह आपने सोचा है।’ पिता के शव को लाने के लिए निकला अविनाश सफर के दौरान अपने अस्तित्व के बेहद, बेहत करीब पहुंचते जाता है। अविनाश के पास तान्या (मिथिला) की नानी का शव है। वो भी सफर में जुड़ जाती है। समझिए तीन लोग एक मंज़िल की ओर बढ़ते जाते हैं। और, आखिर में मंज़िल को नहीं खुद को पा लेते हैं। यही तो जीवन का असली मर्म है। खुद को खुद से पा लेना। लोग कितनी कोशिशें करते हैं, लेकिन सफलता किसी-किसी को मिलती है।
अगर फिल्म के ट्रीटमेंट की बात करें तो आकर्ष की मेहनत झलकती है। वहीं स्क्रीन पर इरफान और दलकीर की सधी हुई एक्टिंग छाप जरूर छोड़ती है। फिल्म में कॉमेडी भी दिखाने की कोशिश की गई है। जबकि अस्पताल में महिलाओं को शायरी सुनाते इरफान जंच पड़े हैं। दलकीर सलमान खुद कहते हैं ‘शौकत का किरदार इरफान के अलावा कोई नहीं निभा सकता।‘ दलकीर साउथ के सुपरस्टार हैं। ‘कारवां’ फिल्म में वो सबकुछ है, जो भीतर से खाली इंसान की खुराक बन सकता है। अगर आप भी खुद को समझने के सवाल से लगातार उलझ रहे हैं तो इस फिल्म को देखिए। शायद रील लाइफ के सहारे आप रियल लाइफ को करीब से जान जाएंगे।
(समाप्त)
अभिषेक मिश्रा
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