पितृसत्तात्मकता को चुनौती देती ‘काँचली’
{Featured in IMDb Critics Reviews}
फिल्म: काँचली – लाइफ़ इन अ स्लू’
कलाकार: संजय मिश्रा, शिखा मल्होत्रा और ललित परीमू, नरेश पाल सिंह चौहान
निर्माता : अनूप जलोटा
निर्देशक: देदिप्य जोशी
समय : 102 मिनट ए सर्टिफिकेट के साथ
अपनी रेटिंग्स: तीन स्टार
हिन्दी सिनेमा में केवल मसाला फिल्में ही नहीं बनती बल्कि रीयलिस्टिक और साहित्यिक कहानियों को भी सिल्वर स्क्रीन पर पेश किया जाता रहा है। निर्देशक देदिप्य जोशी की ‘काँचली – लाइफ़ इन अ स्लू’ भी उसी का उदाहरण है जो मशहूर साहित्यकार विजयदान देथा की कहानी केंचुली पर फिल्माई गयी है। राजस्थान के लोकप्रिय कथाकार विजयदान देथा यानी ‘बिज्जी’ की कहानियों को सिनेमा में यदा-कदा स्थान मिला ही है। इसमें सबसे बड़ा नाम शाहरुख खान वाली फिल्म ‘पहेली’ का है जो इससे पहले ‘दुविधा’ के रूप में सामने आई थी। निर्देशक दैदीप्य जोशी की यह फिल्म बिज्जी की कहानी ‘केंचुली’ पर आधारित है जो पुरुष सत्तात्मक समाज में एक युवती द्वारा उसका बोझ उतार फेंकने की कोशिश को बारीकी से दिखाती है। देथा की कहानी पढ़ते समय या देखते समय दिल में न उतरे यह मुमकिन नहीं। दैदीप्य के निर्देशन में सटीकता दिखाई देती है। इससे पहले वे सांकल नाम से भी फ़िल्म बना चुके हैं।
इस फिल्म की कहानी कुछ यूँ है कि गाँव की बेहद खूबसूरत महिला कजरी (शिखा मल्होत्रा) के साथ किश्नू (नरेशपाल सिंह) की शादी हो जाती है। मगर गाँव के ठाकुर (ललित परीमू) की कजरी के लिए बुरी नियत है इसलिए वह अपने खास आदमी भोजा (संजय मिश्रा) को उसके लिए कजरी को लाने के लिए कहता है, लेकिन कजरी अपने पति के प्रति बहुत वफादार है तो एक दिन वह अपने बचाव में ठाकुर पर हमला कर देती है। अपनी पत्नी की हिम्मत की दाद देने के बजाय, उसका पति कजरी को चेतावनी देता है कि वह ठाकुर के साथ इस तरह का व्यवहार कभी न करे।
यह भी पढ़ें – जुग जुग जियो सिनेमा हमार
कहानी की नायिका लाछी यानी कजरी इतनी खूबसूरत बताई जाती है कि दुनिया सोचती है कि साढ़े तीन हाथ की देह में ऐसा रूप समाया कैसे! किशनु से जब ब्याह कर आती है तो उसके रूप-सौंदर्य की चर्चा ठाकुर तक भी जा पहुंचती है। वह कजरी को अपने बिस्तर तक लाना चाहता है। गांव की दूसरी औरतों की नज़र में तो ठाकुर के बिस्तर चढ़ना आम बात है लेकिन कजरी अपने घड़े के पानी के अलावा किसी और पानी से कुल्ला करना भी नामंजूर समझती है। इस बीच कजरी कई कोशिश करती दिखाई देरी है ताकि किशनु भड़के लेकिन बात नही बनती। आखिर एक दिन वह पितृसत्तात्मक समाज रूपी केंचुली को उतार फेंकती है। राजस्थान के प्रख्यात लेखक एवं पद्मश्री विजयदान देथा भारतीय और राजस्थानी भाषा के महनीय रचनाकार रहे हैं और उन्हें लोककथा का जादूगर भी कहा जाता है।
दरअसल काँचली फिल्म एक ऐसी कहानी है जो एक स्वतंत्र महिला के लिए अपने दम पर जीवित रहने के नए रास्ते खोजती है। विजयदान देथा की कहानी पर बनी इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट देदिप्य जोशी और बिज्जी के बेटे कैलाश देथा ने मिलकर लिखी है। काँचली का अर्थ सांप की केंचुली होता है और राजस्थान में औरत की इज्जत यानी ब्लाउज नुमा वस्त्र को भी कांचली कहा जाता है। फ़िल्म में शिखा कजरी के किरदार के साथ न्याय करती नजर आती है और एक औरत के दर्द, उसकी स्थिति को शिखा ने बड़े असरदार ढंग से पर्दे पर जिया है। संजय मिश्रा तो कमाल के एक्टर हैं ही। किशनु के किरदार में नरेशपाल सिंह चौहान सहज लगे। ठाकुर बने ललित पारिमू भी सधे हुए लगते हैं। फ़िल्म का गीत-संगीत फिल्म में रचा-बसा हुआ लगता है उसे उससे अलग किया भी नहीं जा सकता अन्यथा फ़िल्म की रंगत में कुछ छींटे कम पड़ जाते।