धर्मनिरपेक्ष संविधान को धता बताने की विद्या भाजपा से ज़्यादा कौन जानता है? हाँ, यह सवाल कल 27 जुलाई को अमित शाह की इलाहाबाद यात्रा के बाद ज़रूर पैदा होता है। यह यात्रा 2019 के चुनाव की तैयारी के लिए की गयी। यही इसका घोषित लक्ष्य था। पर वे वहाँ के सभी प्रसिद्ध मंदिरों में गये, मठों में गये, अखाड़ों में गये। सभी पुजारियों-मठाधीशों-महंतो से उन्होंने चुनाव में जीत के लिए उन सबसे आशीर्वाद लिया। सबको चुनाव के समय हिंदू मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में प्रेरित करने का दायित्व सौंपा। यह सब हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण में न गिना जायगा!!
दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम का कहना दिल्ली के ही मुसलमान नहीं सुनते; उसके ‘फतवे’ को मुद्दा बनाकर मुसलमानों के विरुद्ध ध्रुवीकरण करने में भाजपा एक पल की देर नहीं करती; वही भाजपा प्रयाग में खुलेआम हिंदू संस्थाओं का चुनाव के लिए इस्तेमाल करने का आह्वान कर रही है, लेकिन इसपर सवाल उठाते ही आप हिंदू-विरोधी, सिकुलरिस्ट, तुष्टीकरण वग़ैरह की पदबी से नवाजे जायेंगे!!
क्या यह एक सुविचारित रणनीति नहीं है? क्या इसे एक पाखण्ड के सिवा कुछ कहा जा सकता है?
इस हिंदूवाद के नतीजे समझाने की बहुत ज़हमत नहीं उठाना पड़ेगी। एक उदाहरण लें। गोरक्षा के नामपर सीधे सत्ता के संरक्षण में मुसलमानों और दलितों के उत्पीड़न का भयावह दौर चल रहा है। इससे भावनाएँ भड़कती हैं। चुनाव में लाभ होता है।
लेकिन इसका व्यावहारिक नतीजा यह है कि गाँवों में आवारा पशुओं की बाढ़ आ गयी है। किसान गाय की बछिया को तो रख लेते हैं, बछड़ों को हाँक देते हैं। इन बछड़ों को बधिया भी नहीं किया दाता। वे साँड़ बन जाते हैं। अब हांवो में हाल यह है कि एक तरफ नीलगायों के झुंड, दूसरी तरफ साँड़ों के झुंड, दोनों मिलकर खेतों को तबाह कर रहे हैं, दो-एक किसान अगर रोकने की कोशिश करते हैं तो साँड़ उन्हें घायल कर देते हैं सा मार डालते हैं। ये पुराने सामंती मालिकों से भी अधिक ख़तरनाक सिद्ध हो रहे हैं।
समस्या यह है कि नीलगाय हो या साँड़, ‘गोवंश’ का तमग़ा होने के कारण खेतिहर उन्हें मार नहीं सकते वरना संघ-संरक्षित हिंदू गोरक्षक आ धमकते हैं। प्रशासन उन्हीं को मदद देता है। कल शाम मेरे मोदीभक्त मित्र घर आये। देर तक बातें हुईं। उन्हीं के खेत की अरहर नीलगायो और साँड़ों ने पूरी तरह बरबाद कर दी है। खेत को बाड़ से घेर भी नहीं सकते क्योंकि वह इन साँड़ों के लिए निरर्थक है।
मतलब यह कि राजनीति की फ़सल किसान की फ़सल को चौपट कर रही है और भाजपा नेता हिंदुत्व के रास्ते पर सरपट दौड़ रहे हैं। बाकी राजनीतिज्ञ वास्तविकता से इतने कटे हैं कि वे हिंदुत्व के इन परिणामों को लेकर कोई कार्यक्रम बनाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं। यहाँ हम गोरक्षा के अर्थशास्त्र की पूरी समीक्षा नहीं कर रहे हैं। केवल उसके एक पहलू से यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि तुम्हारी राजनीति सामाजिक जीवन के लिए कितनी ध्वंसात्मक है। आज ही दिल्ली के द्वारका क्षेत्र की गोशाला में 35 से अधिक गायों के मरने का समाचार आया है। पहले राजस्थान में सैकड़ों गायों के मरने का समाचार आया था। इतने आवारा पशुओं की रखवाली करना किसी के लिए संभव नहीं है। लेकिन वोट के लिए समाज को संकट में डालने वाले इन बातों की परवाह नहीं करते।
हिंदुत्व के दूसरे मुद्दे भी इसी तरह विनाशकारी है। सोचने-विचारने वाले मित्रो को इन सभी पक्षों का विवेचन करके जागरूकता लाने का प्रयास करना पड़ेगा, तभी वैकल्पिक राजनीति के पुरोधाओं को भी कुछ दृष्टि मिलेगी।