संतोष बघेल
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May- 2020 -2 Mayशख्सियत
बीहड़ में तो बागी होते हैं
इस कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने हमारे जीवन को पहले ही कई परेशानियों में डाल रखा है। इस बीच अधिकांश लोगों का सबसे बड़ा सहारा टीवी ही बना हुआ है। 29 अप्रैल में टीवी पर एक ऐसी बुरी खबर…
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Apr- 2020 -18 Aprilसाहित्य
महामारी के बीच मैला आँचल के डॉ. प्रशान्त
फिल्म और साहित्य को तो सदियों से ही समाज के दर्पण के रूप में पहचान मिली हुई है। फिल्म और साहित्य दोनों समाज से जुड़े विभिन्न पक्षों को निरन्तर दिखाता रहा है। वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें, हर तरफ…
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Mar- 2020 -8 Marchसामयिक
मोहन राकेश की ‘सावित्री’ और समकालीन स्त्री विमर्श
भारतीय समाज की कल्पना स्त्री और पुरूष की स्थापना के साथ ही होता है, जहाँ पितृसत्ता का वर्चस्व प्रारम्भ से अब तक बना रहा है। पुरूषों की पितृसत्तात्मक सोच आज भी कई मामलों में वैसी ही दिखाई पड़ती है…
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Jul- 2018 -30 Julyसाहित्य
प्रेमचंद का साहित्यिक चिन्तन
यों तो प्रेमचंद जैसे कालजयी लेखक को तब तक नहीं भूला जा सकता है जबतक साहित्य से लोगों का नाता रहेगा। लेकिन उनके जन्मदिवस पर उनके साहित्य का स्मरण इसीलिए और भी आवश्यक हो जाता है क्योंकि प्रेमचंद के…
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