बिहार की राजनीति में ललित बाबू के बाद आज तक लालू यादव से बड़ा कोई जननेता नहीं हुआ। अपने दौर में दोनों ने जो चाहा वही किया। नियति और वक्त ने एक को जिंदा रहते, दूसरे को मौत के बाद “मैं” होने का एहसास कराया। नियति का खेल देखिए, आज ललित बाबू की पुण्यतिथि को ही लालू को अदालत ने हैसियत बताई। अभी दो दिन उन्हें अदालत दौड़ाएगी। फिर जेल भेजेगी। उस लालू को जिन्हें किंगमेकर होने का गुमान था। जी! यही गुमान कभी ललित बाबू को भी था कि पार्टी के लिए पैसा वही इकट्ठा करते हैं तो सबसे बड़े वही हुए न।
कभी जब बहुत अहंकार हो जाए कि आप बहुत बड़े हो गये, अदालत की दहलीज पर जिंदा या मुर्दा अवस्था में पहुंचे, अपने दौर के महानायक की हकीकत से रुबरु होईएगा। एक दौर में भारतीय राजनीति में ललित बाबू से कद्दावर सिर्फ इंदिरा और उनके पुत्र संजय थे। बम विस्फोट में घायल ललित बाबू जिंदगी की भीख भी नहीं मांग पाये। समस्तीपुर से पटना तक पहुंचने में देश के घायल रेलमंत्री को 18 घंटे का वक्त लग गया। फिर रेलवे अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
सिर्फ निचली अदालत में 44 साल तक ललित बाबू के मामले की सुनवाई हुई। केस पटना से दिल्ली तक घूमता रहा। 10 साल तक इन पंक्तियों के लेखक ने इस केस की रिपोर्टिंग की। सिर्फ निचली अदालत में देश के रेलमंत्री का केस साढ़े 10 साल तक चला। इस केस के 44 साल के अदालती सफर के दौरान दो दर्जन से ज्यादा जजों के कार्यकाल बदले। 8 जजों की मौत हो गई। वकालत करने वाले चार वकील स्वर्ग सिधार गये। हद तो ये कि जिन्हें सजा दी गई उसे दुनिया ही निर्दोष नहीं मानती, ललित बाबू के भाई और बिहार में अपने दौर के सबसे प्रभावशाली मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और ललित बाबू के बेटे विजय मिश्र भी। सोचिए आपकी हैसियत क्या है?
दूसरी ओर, जब लालू यादव को अदालत में दर-दर की ठोकरें खाते देखता हूं तो सोचता हूं ये 90 के दौर के वही लालू हैं जिनकी तूती बोलती थी। जो खुद को किंगमेकर कहते थे। कहते थे एक दिन तो वे प्रधानमंत्री जरुर बनेंगे। जिनकी एक आवाज पर गांधी मैदान में लाठी में तेल पिलाने लाखों लाख लोग इकट्ठा हो जाते थे। देखिए, नियति ने इस जन्म में ही उनसे विधायक बनने की हैसियत भी छीन ली। एक न्यायिक अधिकारी अभी कई दिन उन्हें दौड़ाएगा। अदालत तब जाकर सजा सुना देगी। कम से कम 3 साल की।
अभी कई और केस में उन्हें सजा होनी है। एक में 5 साल की सजा हुई है। जिसमें 4 साल का वक्त उन्हें जेल में बिताना बाकी है। 70 पार लालू का बाकी जीवन अब जेल में ही कटने वाला है। उस लालू का, जिस कद का नेता बिहार में ललित बाबू के बाद कोई नहीं हुआ।
मनीष ठाकुर
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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