जार्ज साहब का जाना – रामदेव सिंह
- रामदेव सिंह
जार्ज साहब उन दिनों रेल मंत्री थे।हमलोग इंडियन रेलवे टिकट चेकिंग स्टाफ एसोसिएशन के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर उनके कृष्ण मेनन मार्ग स्थित आवास के सामने धरना देने पहुंचे थे। भारतीय रेल के प्रायः सभी मंडलों से लगभग तीन-चार सौ की संख्या में टिकट चेकिंग स्टाफ आये थे। हावड़ा के मुख्य टिकट निरीक्षक श्री डी बी रे हमारे सेक्रेटरी जनरल थे। मैं मुगलसराय मंडल का सचिव और केन्द्रीय कार्यकारिणी का सदस्य था। जार्ज साहब के आवास के सामने चौड़े फुटपाथ पर हमने दरी-चादर बिछा कर माइक वगैरह लगाकर भाषण देना शुरू कर दिया था। जार्ज साहब ने घर से बाहर निकल कर ऐसे किसी धरना के बारे में पहले से सूचित न होने की बात कही। उन्होंने अपने निजी सचिव विजय नारायण जी को भेजा। विजय नारायण जी ने हमसे बात की और कहा कि आप अपना कार्यक्रम जारी रखिये। दोपहर बाद जार्ज साहब स्वयं आकर आपका ज्ञापन लेंगे और आपसे बात करेंगे। अभी कैबिनेट की एक जरुरी मीटिंग में उन्हें शामिल होना है।
बरसात का मौसम था और काले बादल उमड़-घुमड़ रहे थे। जार्ज साहब बंगले से निकलने लगे तो मौसम का रुख देखकर कार से उतरकर हमारे बीच आये और कहा कि बारिश की पूरी संभावना है आपलोग भीतर ही चले जाइए। उन्होंने अपने स्टाफ से कह दिया कि कमरे और टायलेट भी खोल देना। और बारिश शुरू भी हो गयी। बंगले के लम्बे-चौड़े बरामदे पर दरी-चादर बिछाकर हम पुनः बैठ गये। रह-रहकर मुसलाधार बारिश होती रही। तीन बजे तक जार्ज साहब नहीं आये। पता चला वे रेल भवन में हैं। हमने अपना धरना जारी रखने का निर्णय ले लिया, भले रात हो जाय। तभी चार बजे के करीब उनकी कार आयी तो हमने सोचा जार्ज साहब होंगे लेकिन कार में वे नहीं थे। उन्होंने हमारे पांच प्रतिनिधियों को लेने अपनी कार भेजी थी। हमारे नेता डी बी रे मुझे भी चलने कहा लेकिन मैंने कहा कि रेल भवन बुलाने की बजाए उन्हें ही हमारे बीच आना चाहिए। यहीं ज्ञापन लेकर हमारे सभी साथियों के सामने आश्वासन देना चाहिए। लेकिन बारिश की वजह से अस्तव्यस्तता हो गयी थी । कुछ लोग लौट भी गये थे अपनी-अपनी गाड़ी पकड़ने। डी बी रे को लगा कि यहाँ कम संख्या देख संगठन की शक्ति क्षीण दिखाई देगी। आखिर एक और गाड़ी की व्यवस्था कर पांच-छह लोग रेल भवन गये जहाँ जार्ज साहब ने ज्ञापन लिया और रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी बना कर इस पर विचार करने के लिए कहा।
हालांकि हमारी मांगें रेलवे बोर्ड की फाईलों में दब कर रह गयी। लेकिन जार्ज साहब के व्यवहार ने यह एहसास जरूर कराया कि जनता के नुमाइंदे को ऐसा ही होना चाहिए।
जार्ज फर्नांडीस जब रेल मंत्री थे तो रेल मंत्रालय ने भ्रष्टाचार को लेकर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया था। जिसमें रेल के अलावा मुख्य सतर्कता आयुक्त के साथ सभी जांच एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल थे। दिल्ली के मावलंकर हाल में यह आयोजन हुआ था। तब के पूर्व रेलवे के चेकिंग स्टाफ का प्रतिनिधित्व मैंने और डी बी रे ने किया था। जार्ज साहब लगभग छह घंटे तक इस बड़ी बहस का संचालन किया था। बहुत खुलकर बहस हुई थी। जार्ज साहब की एक बात मुझे अब भी याद है, उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार चाहे एक लाख रुपये की हो या एक रुपये की दोनों अपराध है।
केन्द्र में सरकार बदल चुकी थी। जार्ज साहब अब रेल मंत्री नहीं थे। हाँ, सांसद तब भी थे। मैं मुगलसराय में नाइट शिफ्ट में बैच इंचार्ज के रुप में ड्यूटी पर था। दिल्ली सियालदह राजधानी से उतर कर वे पटना जाने के लिए उतरे थे। किसी दूसरी गाड़ी में उनका रिजर्वेशन था। किसी स्टाफ ने मुझे सूचित किया कि लगता है जार्ज फर्नांडीस बैठे हैं। मैं वहाँ पहुंचा। देखा, वे सीमेंट वाली एक बेंच पर बैठे थे। मैंने नमस्ते किया और उन्हें आफिस में चलकर बैठने कहा लेकिन उन्होंने टाल दिया और अपनी आरक्षित ट्रेन के बारे में पूछा। ट्रेन सही समय पर ही आने वाली थी। वे उसी बेंच पर एक आम यात्री की तरह ही बैठे रहे और गाड़ी आयी तो मैं उनके आरक्षित डिब्बे तक साथ गया। हालांकि उन्होंने कई बार कहा कि आप अपनी ड्यूटी देखिए मैं चला जाऊंगा।
लेखक रिटायर्ड रेलकर्मी हैं तथा हिन्दी के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित|
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