बंगाल : भारत विभाजन की प्रयोगशाला
स्वाधीन भारत में जन्म लेने वाले आप और हम शायद विभाजन की विभीषिका वर्ष में एक दो बार पंद्रह अगस्त के समय याद कर लेते होंगे अथवा वो भी नहीं। परन्तु हमारा बंगाल अभी भी नहीं भुला। जी हाँ, बंगाल! विभाजन से पहले आज के बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल को मिलाकर बंगाल कहते थे! अंग्रेजी शासन का सबसे बड़ा ‘प्रोविंस’। 16 अक्टूबर 1905 में कर्जन ने बंगाल को दो भागों में बांटा जिसे 1908 से प्रारम्भ हुए बंग-भंग विरोधी आन्दोलन के कारन वापस लेना पड़ा और 1911 में बंगाल पुनः एक हो गया। इस प्रकार अंग्रेजों का ‘फूट डालो, शासन करो’ वाला षड्यंत्र, हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या की बहुलता के आधार पर शासन की सुलभता के बहाने किए गए बंटवारे को जाग्रत समाज ने विफल कर दिया परन्तु सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि बंगभंग को विफल करने वाला समाज अगस्त 1947 में इसी बंगाल अर्थात भारत के विभाजन को क्यों नहीं रोक पाया?
भारत विभाजन में मूलतः पंजाब और बंगाल का विभाजन हुआ। भारत विभाजन की पहली प्रयोगशाला भी बना बंगाल। स्वतन्त्रता से ठीक एक वर्ष पूर्व 16 अगस्त 1946 का ‘द ग्रेट कोलकाता किलिंग’ बंगाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री और ‘बंगाल का कसाई’ नाम से कुख्यात सुरावर्दी की देखरेख में, जिन्ना, इक़बाल, और रहमत अली के सपनों को साकार करने का एक प्रयोग था। 30 जून 2007 को द टेलीग्राफ में ‘इक़बाल्स हिन्दू रिलेशन्स’ नामक प्रकाशित लेख में खुशवंत सिंह बताते हैं कि मोहम्मद इक़बाल के दादा कन्हैयालाल सप्रु एक कश्मीरी ब्राह्मण थे। यही इक़बाल, जिन्होंने ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ रच कर भारतीयों के ह्रदय में जगह बनाई, पृथक मुस्लिम राष्ट्र के एक वैचारिक सिद्धांतकार थे।
इकबाल 21 जून 1937 को जिन्नाह को एक “निजी और गोपनीय’ पत्र में लिखते हैं “उत्तर-पश्चिम भारत और बंगाल के मुसलमानों को भारत और भारत के बाहर के अन्य राष्ट्रों की तरह अपने राष्ट्र के आत्मनिर्णय का हकदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए? व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि उत्तर-पश्चिम भारत और बंगाल के मुसलमानों को वर्तमान में मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रांतों की उपेक्षा करनी चाहिए। मुस्लिम बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों प्रांतों के हित में अपनाने का यह सबसे अच्छा तरीका है।” मुस्लिम लीग के जुलाई 1946 के मुंबई (बॉम्बे) अधिवेशन में जिन्ना ने कहा “अब समय आ गया है कि संवैधानिक तरीकों को छोड़ दिया जाए…. मुस्लिम राष्ट्र ‘डायरेक्ट एक्शन’ का सहारा ले।…. आज हमारे पास पिस्तौल भी है और हमलोग इसके इस्तेमाल करने की स्थिति में भी है”
जिन्नाह सही कह रहे थे। बंगाल में सुरावर्दी का शासन था और कोलकाता में रहमान अली के गुंडे थे। अंग्रेजों का तो इतना समर्थन था कि बंगाल का गवर्नर फ्रेडरिक बरोज ने कह दिया कि ‘उन्होंने दंगे की कोई खबर ही नहीं सुनी’. दस हजार से ज्यादा हिन्दुओं को मार दिया गया। घायलों और बलतकृत महिलाओं की संख्या भी हजारों में थी। सुरावर्दी पुलिस कंट्रोल रूम से सभी गतिविधियों को नियंत्रित कर रहा था। बाद में प्रशासन की उदासीनता और षड्यंत्र को समझ कर हिन्दुओं ने भी गोपाल मुखर्जी के नेतृत्व में प्रतिकार प्रारम्भ किया। अब सरकार को दंगे रोकने के लिए पुलिस भेजने की सूझी। इस प्रकार द ग्रेट कोलकाता किलिंग्स का भारत विभाजन मॉडल के एक ‘अर्द्ध सफल प्रयोग’ के रूप में अंत हुआ।
तो पहला सफल प्रयोग कौन सा था? नोआखली नरसंहार ! पद्मा और मेघना नदी के संगम स्थल पर कलकत्ता से दूर एक क्षेत्र जहाँ तब 81.4 प्रतिशत मुस्लिम और मात्र 18.6 प्रतिशत हिन्दू रहते थे। आज भी कुछ लोग पूछते हैं क्या हो जाएगा अगर मुस्लिमों की संख्या बढ़ जाएगी और वे बहुसंख्यक हो जाएंगे तो? इस प्रश्न का उत्तर विभाजन की विभीषिका का सबसे करूण और क्रुर अध्याय ‘आपरेशन नोआखाली’ देगा। नोआखाली को मुस्लिम लीग ने इस लिए चुना क्योंकि वो दिल्ली और कोलकाता से बहुत दूर स्थित एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र था। नोआखाली में हिन्दुओं का आर्थिक बहिष्कार शुरू हुआ। मुस्लिम नेशनल गार्ड के सिपाही हिन्दुओं की दुकानों के सामने खड़े रहते थे। अगर कोई उनकी दुकान से कुछ खरीद लेता तो उसे सजा दी जाती थी। हिन्दूओं के घरों में गोमांश दे जाना, बलपूर्वक खाने को बाध्य करना, लड़कियों और महिलाओं का अपहरण कर निकाह करवा देने, जैसी मध्यकालीन कबीलाई बर्बरता के साथ-साथ इस प्रयोग को सफल करने का मुख्य दायित्व भूतपूर्व मुस्लिम सैनिकों को दी गई थी जिन्होंने सेना की रणनीतिक प्रशिक्षण के अनुभव के आधार पर नरसंहार की योजना बनाई थी।
हिन्दू वहाँ से भाग न पाए इसलिए रास्ते खोद कर, नहरों और नदियों में गस्त लगा कर तथा अन्य माध्यमों से बहार के लोगो से पूर्णतः सम्पर्क काट दिया गया था। (22 अक्टूबर 1946, अमृत बाजार पत्रिका) इस प्रकार एक सुनियोजित तरीके से नोआखली के अल्पसंख्यक हिन्दुओं को मार कर ऑपरेशन नोआखली सफल किया गया। आगे के दिनों में हम देखते हैं मुस्लिम लीग यही मॉडल प्रस्तावित पाकिस्तान के सभी भागों में लागु करती है और इस प्रकार वो काँग्रेस को भय तथा ख़राब भविष्य की चिंता से ग्रस्त करने के दुष्चक्र रचती है। अंग्रेज भी इन रक्पातों का दोष अपने पर नहीं लेना चाह रहे थे। अन्य सभी राजनैतिक तथा वैश्विक परिस्थितयों के साथ-साथ ये भी एक कारण था कि भारत का विभाजन समय से पूर्व ही कर दिया गया। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर और सरदार पटेल जैसे नेता भी ‘एक्सचेंज ऑफ़ पापुलेशन’ और ‘भारत विभाजन’ के समर्थन में अपने विचार व्यक्त किए थे।
भारत विभाजन पर बहुत चर्चा होती है परन्तु प्रस्तावित पाकिस्तान के विभाजन पर बहुत कम चर्चा प्रबुद्ध समाज में होती है। जिन्ना की द्विराष्ट्र सिद्धांत और मुस्लिम लीग के योजना के अनुसार बंगाल और उत्तर पश्चिम भारत के मुस्लिम बहुल प्रदेशों को मिला कर अलग मुस्लिम देश पाकिस्तान का गठन होना था। इस पर मुस्लिम लीग, काँग्रेस और ब्रिटिश सरकार तीनों एकमत हो गए थे। इसी बीच सुहरावर्दी ने देखा कि अगर बंगाल का विभाजन होता है तो यह पूर्वी बंगाल के लिए आर्थिक रूप से बहुत खतरनाक सिद्ध होगा क्योंकि अधिकांश जूट मील, कोयले की खदाने ,महत्वपूर्ण उद्योग सभी पश्चिम बंगाल में रह जायेंगे। तब उसने शरत चंद्र बोस और कुछ प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञों के साथ विभाजन का एक नया विकल्प सुझाया : अखंड और स्वतन्त्र बंगाल !
1941 की जनगणना के अनुसार बंगाल में 53.4 % और 41.7% हिन्दू थे। बंगाल मुस्लिम बहुल प्रदेश था। यहाँ की हिन्दू जनता ‘द ग्रेट कोलकाता किलिंग्स’ और ‘नोआखली नरसंहार’ की बर्बरता को भूली नहीं थी। इन नरसंहारों के नायक सुहरावर्दी का यह प्रस्ताव अधिकांश लोगों को पसन्द ही नहीं आया। हिन्दू महासभा के नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी और कई नेताओं ने इस प्रस्ताव के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। डॉ मुख़र्जी ने वायसराय को पत्र लिखा। “अगर पिछले दस वर्षों में बंगाल के प्रशासन का निष्पक्ष सर्वेक्षण किया जाता है, तो ऐसा प्रतीत होगा कि हिन्दुओं ने न केवल साम्प्रदायिक दंगों और अशांति के कारण, बल्कि राष्ट्रीय गतिविधियों के हर क्षेत्र में, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक और यहाँ तक कि धार्मिक आधार पर भी प्रताड़ना झेला हैं।”
उन्हें समाज के विभिन्न वर्गों से भी समर्थन प्राप्त हुआ। काँग्रेस, वामपंथी नेताओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठित बंगाली ‘भद्रोलोक’ का भी समर्थन मिला। यह मूहिम संपूर्ण हिन्दू समाज का था जिसके एक अंश तथा मुख थे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी। हिन्दू वामपंथी नेता भी कोलकाता किलिंग्स की घटना के बाद अंदर तक दहल गए थे जब उन्होंने मुस्लिम कामरेडों के द्वारा न्यूअलिपुर में अपने ही हिन्दू कामरेडों की बर्बर हत्या देखी। आम जनता भी बंगाली हिन्दु होमलैंड के पक्ष में थी।
अंततः प्रस्तावित पाकिस्तान की सीमा निर्धारित होने से पूर्व ही 20 जुन 1947 को यह निश्चय हो गया कि अगर मुस्लिम राष्ट्र बनता है तो पश्चिम बंगाल पाकिस्तान का हिस्सा नहीं होगा। बाद में बंगाल से अलग हुआ हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान कहलया जो 1971 के बाद पाकिस्तान से स्वतन्त्र हो कर बांग्लादेश बना। आज 1946 के लक्ष्मी पूजा की रात को मजहबी नारों के साथ अल्पसंख्यक हिन्दुओं की हत्या का साक्षी नोआखली बांग्लादेश में और कोलकाता भारत में है!!