हेमंत सोरेन तो बाजी मार ले गए!
- शिवानन्द तिवारी
हेमंत सोरेन तो बाजी मार ले गए! तेलंगाना से आए सभी श्रमिकों को उनके उनके शहर में सरकार द्वारा पहुँचा दिया गया। स्वयं मुख्यमन्त्री हेमंत सोरेन ने हटिया स्टेशन पर जाकर सारी तैयारी का जायजा लिया था। आपने प्रशासन के लोगों को ताकीद किया और उसी के अनुसार राँची से अलग-अलग जिलों में या कस्बों में सारे श्रमिकों को पहुँचा दिया गया है। इस मामले में नीतीश कुमार और सुशील मोदी से हेमंत सोरेन ज्यादा कुशल मुख्यमन्त्री साबित हुए। मालूम होगा कि झारखण्ड में गठबन्धन की सरकार है और उस सरकार में राष्ट्रीय जनता दल भी शामिल है।
कोरोना, नेतृत्व की भी परीक्षा ले रहा है। कौन किस प्रकार इसकी चुनौती का मुकाबला कर रहा है, देश की इस पर नजर है। एक समय देश नीतीश कुमार में प्रधानमन्त्री की संभावना देख रहा था। लेकिन आज की मौजूदा चुनौती में नितीश कुमार कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। बल्कि पहली दफा मुख्यमन्त्री बने अनुभवहीन उद्धव ठाकरे अपने कर्म से आज प्रशंसा के पात्र बन गये हैं।
दरअसल नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन में कभी भी जोखिम उठाने का साहस नहीं दिखाया है। आज देख लीजिए, जब से कोरोना का मामला सामने आया है, मुख्यमन्त्री की कोठी के चौखट के बाहर उन्होंने पैर नहीं रखा है। बगल में हेमंत सोरेन को देख लीजिए या ममता बनर्जी को देख लीजिए। सामने खड़ा होकर ये लोग चुनौती का मुकाबला करते दिखाई दे रहे हैं।
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नीतीश जी भाषा और शब्दों के चयन के मामले में बहुत सतर्क रहते हैं। वैसे अपने विरोधियों पर अपने प्रवक्ताओं से अपशब्दों का इस्तेमाल करवाने में उनको परहेज नहीं है। लेकिन याद कीजिए। लॉक डाउन के बाद जो भगदड़ मची थी उसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री की ओर से खबर आई थी वे लोगों को बस में बैठा कर बिहार की सीमा तक पहुँचा देंगे। इससे नितीश जी के अहं को चोट पहुँची थी।
उनको लगा कि हमारे नियम कायदे में हस्तक्षेप करने वाला यह कौन होता है! और तैश मैं उन्होंने कह दिया था कि हम उनको बिहार में घुसने नहीं देंगे। इस शब्द को प्रवासी भूले नहीं है। आज नीतीश कुमार कह रहे हैं कि आने वाले प्रवासियों को उनके हुनर के मुताबिक काम दिया जाएगा! नक्शा खींचने में नितीश जी का कोई जोड़ा नहीं है। भले ही वह नक्शा कागज पर ही रह जाए, जमीन पर कहीं नजर नहीं आए। अगर नीतीश जी की सरकार में यही क्षमता होती तो बिहार के लोग पलायन कर रोजी रोटी के तलाश में दूसरे देश में क्यों जाते!
लेखक बिहार के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं।
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