न्यायपालिका की विश्वसनीयता बहाली कर सकेंगे जस्टिस रमना?
पिछले दिनों जस्टिस नुतालपति वेंकट रमना (एनवी रमना) ने भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में महत्वपूर्ण कार्यभार संभाला था, वह इस पद पर 26 अगस्त 2022 तक रहेंगे। अल्पभाषी और सौम्य स्वभाव वाले चीफ जस्टिस रमना ने ऐसे समय सुप्रीम कोर्ट की कमान संभाली, जिस समय देश में कोरोना की दूसरी लहर सुनामी बनकर उभरी और ऑक्सीजन की कमी के कारण पूरे देश में हाहाकार मचा दिखाई दिया। कोरोना के इस संकट काल में जस्टिस रमना की अगुवाई में सुप्रीम अदालत ने जिस प्रकार ऑक्सीजन संकट पर बड़ा कदम उठाते हुए ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया, उसके लिए अदालत की सराहना की जानी चाहिए।
सीजेआई बनने से पहले सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति रमना ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए थे और फिलहाल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के सीधे प्रसारण को लेकर कदम आगे बढ़ाया है। हालांकि इस महत्वपूर्ण फैसले के बारे में उनका कहना है कि इस दिशा में कोई कदम बढ़ाने से पहले शीर्ष अदालत में सहयोगी जजों से विमर्श किया जाएगा। दरअसल उनका स्पष्ट तौर पर मानना है कि मीडिया को रिपोर्टिग के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कोर्ट की कार्यवाही को कवर करने के लिए पत्रकारों को वकीलों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए ऐसी व्यवस्था बनाने की मांग उठती रही है, जिससे मीडिया के लोग सीधे अदालती कार्यवाही को देख सकें।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे की सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई पद से विदाई के अवसर पर न्यायमूर्ति रमना ने कहा था कि हम कोविड लहर की लड़ाई के दौरान परीक्षण के दौर से गुजर रहे हैं, जिससे न्यायाधीश, वकील और अदालत के कर्मचारी सभी प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा था कि ट्रांसमिशन की श्रृंखला को तोड़ने के लिए उपाय आवश्यक हो सकते हैं और हम समर्पण के साथ महामारी को पराजित कर सकते हैं। कोविड-19 महामारी के इस बुरे दौर में उनके कंधों पर सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तो शीर्ष अदालत के कामकाज में सुगमता रखने की ही होगी। दरअसल पिछले एक वर्ष से भी ज्यादा समय से वीडियो कांफ्रैंसिंग के माध्यम से ही सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सुनवाई हो रही है। ऐसे में इस व्यवस्था को बेहतर बनाना तथा उचित अवसर पर दोबारा नियमित सुनवाई शुरू कराना जस्टिस रमना की बड़ी जिम्मेदारियों में से एक होगा।
शीर्ष अदालत में फिलहाल कई ऐसे महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं, जिन पर समूचे देश की नजरें केन्द्रित हैं। ऐसे ही लंबित मामलों में सीएए कानून की वैधानिकता का मामला, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को चुनौती देने का मामला तथा तीन नए कृषि कानूनों की वैधानिकता का मामला प्रमुख हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होने के नाते जस्टिस रमना ही इन सभी मामलों की सुनवाई के लिए पीठ तथा समय निर्धारित करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल जजों के छह पद रिक्त हैं, उन पर नियुक्ति के लिए सरकार को सिफारिश भेजना भी जस्टिस रमना की अहम प्राथमिकता होगी। दरअसल उनसे पूर्व जस्टिस एसए बोबडे के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक भी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं हुई और अगले पांच वर्षों में कुछ और रिक्तियां इस सूची में जुड़ जाएंगी। वर्तमान समय में देशभर में अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 4.4 करोड़ तक पहुंच गई है, इसी कारण शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए हरी झंडी तो दे दी है लेकिन अब इन नियुक्तियों की जिम्मेदारी जस्टिस रमना पर है। इन रिक्तियों को भरने के अलावा उनके कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी कॉलेजियम में सर्वसम्मति हासिल करने के साथ कार्य के बोझ को कम करना भी है।
करीब पांच वर्ष पूर्व जस्टिस टीएस ठाकुर ने अफसोस जताते हुए कहा था कि न्यायपालिका को विश्वसनीयता के संकट का सामना करना पड़ रहा है। विड़म्बना है कि यह स्थिति सुधरने के बजाय और खराब हो रही है। ऐसे में पूरे देश को उनसे यही उम्मीद रहेगी कि वे अपने कार्यकाल में न्यायपालिका की विश्वसनीयता की बहाली के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और अपने फैसलों से एक मिसाल पेश करेंगे। मौजूदा समय में लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का एकमात्र दायित्व सर्वोच्च न्यायालय के कंधों पर है, इसलिए न्यायपालिका के सिद्धांतों तथा मूल्यों को संरक्षित रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अब जस्टिस रमना के कंधों पर ही है। जस्टिस रमना सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बीच मामलों की सूची और उनके कार्य का फैसला करने वाले ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ हैं। कानूनी जानकारों के अनुसार हालांकि विवादास्पद मामलों को सूचीबद्ध नहीं करने के कारण ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ की संस्था प्रायः अस्पष्टता और निष्पक्षता की कमी को लेकर आलोचना झेलती रही है। अब देखना यह होगा कि न्यायमूर्ति रमना के कार्यकाल के दौरान इसमें कोई बदलाव आता है या नहीं।
राज्य न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति रमना ने न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण मानकों में सुधार के लिए गंभीर प्रयास किया था और बतौर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष वृहद् स्तर पर लोक अदालतों का आयोजन कराने के लिए उनकी खूब वाहवाही हुई थी। हाल ही में उन्होंने कहा था कि खराब कानूनी शिक्षा भी चिंता का प्रमुख कारण है। करीब डेढ़ वर्ष पूर्व संविधान दिवस के अवसर पर अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि हमें नए टूल और नए तरीके बनाने चाहिएं. नई रणनीतियों का नवाचार करना चाहिए और नए न्याय शास्त्र को विकसित कर अपने निर्णय से उचित राहत प्रदान कर न्यायपालिका के उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहिए।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस रमना के कार्यकाल को ‘रे ऑफ होप’ के रूप में वर्णित किया गया है। कानूनी बिरादरी के पर्यवेक्षक जस्टिस रमना के कम महत्वाकांक्षी होने की उम्मीदें लगा रहे हैं। दरअसल उनका मानना है कि वह कानून के कार्य को लोगों की मदद करने के साधन के रूप में देखते रहे हैं और उस तरह के व्यक्ति नहीं हैं, जो अपने निर्णयों के माध्यम से संवैधानिक तूफान पैदा करें। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि अपनी ईमानदारी और निर्भीकता के साथ अपने लिए जाने वाले फैसलों से वे देश की जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरेंगे और न्यायिक व्यवस्था पर मंडरा रहे विश्वसनीयता के संकट को दूर करने में कितने सफल होंगे।
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