चर्चा मेंस्त्रीकाल

बलात्कार पीड़िताओं के बयान समाज को आईना दिखाते हैं

ह्युमन राइट्स वॉच की रपट

ह्यूमन राइट्स वॉच ने बलात्कार के बाद उत्तरजीवी महिलाओं के मामलों का अध्ययन कर एक रपट जारी की है. यह रपट पुलिस और समाज की असंवेदनशीलता की बानगी पेश करती है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने जिन राज्यों में अध्ययन किया वहां उसने ऐसे कई उदाहरण देखे जहां पुलिस स्पष्ट क़ानूनी बाध्यता के बावजूद उदासीन रही या उसने इस मामले में समझौता करने के लिए पीड़ित के परिवार पर दबाव डाला, विशेषकर जब कथित अपराधी शक्तिशाली समुदाय का था. रिपोर्ट का वह हिस्सा इस कॉलम के पाठकों के लिए, जिसमें पीड़िताओं और उनके परिजनों के बयान दर्ज हैं.

  • संजीव चन्दन

 

जिन 21 मामलों की जांच की गयी, उनमें महिलाओं, लड़कियों और उनके परिवारों के साथ हुई बातचीत के आधार पर, ह्यूमन राइट्स वॉच ने यह भी पाया कि पुलिस अक्सर प्रक्रियाओं से या तो अनजान थी या उसने सीधे-सीधे इनकी अनदेखी की, विशेष रूप से नई प्रक्रियाओं के मामले में जिन्हें 2012 और 2013 में लागू किया गया है, और जो महिलाओं और बच्चों की सहायता करने के लिए बनी हैं. पुलिस ने पीड़ितों और उनके परिवारों को मुआवजा और नि:शुल्क कानूनी सहायता से संबंधित प्रावधानों के बारे में शायद ही कभी जानकारी दी और अक्सर बाल कल्याण समितियों को सूचित करने में विफल रही. इसका एक कारण यह है कि सरकार के परिपत्र और दिशानिर्देश गांवों और छोटे शहरों के पुलिसकर्मियों तक नहीं पहुंचते हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा अध्ययन किए गए मामलों में पुलिस निष्क्रियता और दुरुपयोग का अवलोकन

राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा अध्ययन किए गए मामलों में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें पुलिस ने:

  • कानून की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए एफआईआर दर्ज करने में देरी की;
  • पीड़ित या उसके परिवार को धमकाया, उनसे कहा कि वे समझौता करें या अपनी शिकायत वापस लें;
  • पीड़ित द्वारा प्राथमिकी में अभियुक्तों को स्पष्ट रूप से पहचानने के बावजूद अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं किया;
  • प्राथमिकी दर्ज करने के बाद अभियुक्तों द्वारा पीडि़तों या उनके परिवारों को दी गई धमकियों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करने में विफल रही; कुछ मामलों में, आरोपी ने जमानत मिलने या बरी किए जाने के बाद पीड़िता को धमकाया और धमकी की शिकायत के बाद भी पुलिस ने अमूमन कभी भी कार्रवाई नहीं की;
  • एफआईआर दर्ज होने के बाद भी जांच रोक दी.

 

पीड़िताओं और उनके परिजनों की गवाही

मालिनी, हरियाणा

हरियाणा की तलाकशुदा 28 वर्षीय मालिनी 2 मार्च, 2017 को यह शिकायत दर्ज कराने के लिए जिंद जिले के एक पुलिस स्टेशन गई थीं कि उस दिन उनके पूर्व पति के भाई ने उनके साथ बलात्कार किया. तलाक के बाद, मालिनी अपने माता-पिता और बेटे के साथ रहती थी. लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में छह दिन लगाए और मालिनी को चिकित्सीय-कानूनी जांच के लिए ले गए, इस देरी से संभावित महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट हो गए. मालिनी ने कहा कि पुलिस ने उस पर समझौता करने का दबाव डाला:

पुलिस ने मुझे आरोपी से कुछ पैसे लेने और मामले को ख़त्म करने को कहा. समझौता करने से इनकार करने पर उन्होंने मुझे गली दी और कहा, “यदि तुम समझौता नहीं करोगी तो हम तुम्हें हवालात में डाल देंगे.” जब तक मुझे एफआईआर की प्रति नहीं मिली, मैं हर दिन पुलिस थाने जाती रही.

पुलिस ने अंततः बलात्कार, हमला करने के मकसद से जबरन घुसने और आपराधिक धमकी देने सम्बन्धी एफआईआर दर्ज की, लेकिन मालिनी ने कहा कि जांच की बजाय पुलिस समझौता करने को मजबूर करने के लिए उसे थाने बुलाती रही.   यह रिपोर्ट लिखे जाने तक, पुलिस ने चार्जशीट दाखिल या अपराधी को गिरफ्तार नहीं किया था.

लीला, राजस्थान

1 अप्रैल, 2016 को 15 वर्षीय लीला मृत पाई गई. राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के एक गांव में उसका शव पेड़ से लटका मिला. लीला के माता-पिता 18 अप्रैल को लीला को उसकी दादी के साथ छोड़कर गांव से बाहर गए थे, लेकिन उसी रात एक पड़ोसी से फोन पर लीला की गुमशुदगी की खबर मिलने पर वे तुरंत लौट आए. वे रातभर उसे ढूंढ नहीं पाए, सुबह उन्हें उसकी लाश मिली. पुलिस ने कहा कि यह आत्महत्या है. हालांकि, उसके माता-पिता का मानना है कि लीला का संभवतः बलात्कार किया गया और फिर हत्या कर दी गई. उसकी मां ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया: ‘जब हमने उसका शरीर पेड़ से लटकता हुए पाया तो उसके शरीर पर अंडरवियर नहीं था, जबकि वह हमेशा इसे पहनती थी. उसके पेट का निचला हिस्सा सूजा हुआ था और उसकी पीठ पर खरोंच थी.’  लीला के पिता ने कहा कि जिस ऊँचाई पर वह पाई गई, उस पेड़ पर वहां तक चढ़कर वह फांसी नहीं लगा सकती थी.  24 अप्रैल को, लीला के पिता ने अपनी बेटी की मौत की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी को पत्र लिखकर उनसे घटना को हत्या मानकर जांच करने का आग्रह किया. उन्होंने आरोप लगाया कि गांव के कुछ लोगों ने उसे मार डाला है, जो एक साल से उसका पीछा कर रहे थे. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

मई में, उन्होंने मुख्यमंत्री, राज्य के गृह मंत्री, पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस उप-महानिरीक्षक और प्रतापगढ़ पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर उनसे पुलिस को यह निर्देश देने का आग्रह किया कि वह मामले की जांच हत्या के मामले की तरह करे न कि आत्महत्या मानकर. 3 जून को, लीला के पिता ने अंततः अदालत से संपर्क किया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से अपनी बेटी की मौत की जांच का आदेश देने की दरख्वास्त की. इस बीच, जून में राज्य मानवाधिकार आयोग के सवाल के जवाब में, पुलिस अधीक्षक ने कहा कि पुलिस जांच और शव परीक्षा रिपोर्ट के आधार पर लीला ने आत्महत्या की थी. शव परीक्षा से यह बात सामने आई कि फांसी से दम घुटने के कारण लीला की मौत हुई.

जुलाई में, अदालत के निर्देश के बाद, पुलिस ने आखिरकार परिवार द्वारा नामित चार लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया. सितंबर में, लीला के पिता ने पुलिस अधीक्षक को फिर से पत्र लिखा, यह आरोप लगाते हुए कि पुलिस अधिकारी मामले की जांच और आरोप पत्र दाखिल करने के बजाय आरोपी के साथ समझौता करने के लिए दवाब बना रहे हैं. उन्होंने आरोपी द्वारा डराने-धमकाने की भी शिकायत दर्ज कराई और लीला की मौत की उचित जांच की मांग की. रिपोर्ट लिखे जाने तक, पुलिस ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की थी.

 

समीना, राजस्थान

भरतपुर जिले के एक गांव की 25 वर्षीय मुस्लिम महिला समीना, 14 मार्च, 2016 को अपने पति और उनके परिवार के सदस्यों के साथ अपने सामूहिक बलात्कार की घटना के कुछ घंटों बाद उसकी शिकायत दर्ज कराने थाने गई. समीना ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि वह अपनी ननद के साथ जंगल में शौच करने के लिए गई थी. वह अपने छह माह के बेटे को भी साथ लेकर गई थी. गांव के पांच पुरुष ने उन्हें टोका. उनकी ननद बचने में कामयाब रही लेकिन पुरुषों ने उसके बच्चे को बंधक बना लिया और शोर मचाने पर उसके बच्चे को जान से मारने की धमकी दी.

समीना और उसके परिवार ने शिकायत की कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की. समीना के परिवार के पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने के बाद ही पुलिस ने घटना के 11 दिन बाद  25 मार्च को एफआईआर दर्ज की

 

सरिता, राजस्थान

27 जनवरी, 2016 को, भरतपुर जिले के एक गांव की 17 वर्षीय छात्रा सरिता शौच के लिए जंगल गई थी. उसने आरोप लगाया कि गांव के दो लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया, इसके बाद जब वह नग्न थी तो उन्होंने उसका वीडियो भी बनाया. पुरुषों ने धमकी दी कि अगर उसने बलात्कार के बारे में किसी को बताया वे सोशल नेटवर्किंग साइट पर वीडियो डाल देंगे. आतंकित सरिता ने शुरू में ऐसा ही किया, लेकिन कुछ दिनों बाद उसने अपनी मां को यह बात बताई और उसका परिवार 13 फरवरी को शिकायत दर्ज कराने पुलिस के पास गया. उसके पिता ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि पुलिस ने उस दिन प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया. अगले दिन, पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए उनसे 300 रुपए मांगे. उसके पिता ने कहा कि उनके पास केवल 200 रुपये हैं जो उन्होंने दे दिए, और वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत करने की बात कहने पर पुलिस ने 14 फरवरी को प्राथमिकी दायर की.

सितंबर 2016 में, सरिता ने पुलिस के पास आरोपी से धमकियां मिलने की शिकायत दर्ज कराई. उसने कहा कि सितंबर में जमानत पर रिहा होने के बाद, एक आरोपी अपने चाचा के साथ उसके घर पहुंचा और धमकी दी कि अगर उसने अपना बयान वापस नहीं लिया तो वह उसे बर्बाद कर देगा, उसके भाई का अपहरण कर लेगा और उसके परिवार के सदस्यों को मार डालेगा. आरोपी और उसके रिश्तेदार डंडों और अन्य हथियारों के साथ सरिता के घर के बाहर बैठ गए. सरिता ने पुलिस से सुरक्षा मांगी. उसके पिता ने कहा कि पुलिस ने आरोपी को सरिता और उसके परिवार से दूर रहने की चेतावनी दी और उसके बाद से हालत सुधरे हैं. उसका मामला अभी अदालत में लंबित है.

 

बरखा, उत्तर प्रदेश

बरखा के मामले में जब उसने पहली बार जनवरी 2016 में पुलिस से संपर्क किया तो ललितपुर जिले की पुलिस ने बलात्कार और अपहरण की शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया. 22 साल की बरखा ललितपुर जिले के एक गांव के दलित परिवार से आती है.22 वर्षीय बरखा और उसके पति पर 30 जनवरी, 2016 को उनके घर पर आधी रात के करीब उनके गांव के तीन लोगों ने हमला किया. बरखा ने कहा कि दो लोगों ने उसके पति को पीटा और उन्हें उठा कर ले गए और तीसरा, जो एक प्रभावशाली जाति से आता है, ने उनके साथ बलात्कार किया, उन्हें जातिसूचक गलियां दीं. जब बरखा अपने माता-पिता के साथ 31 जनवरी को पुलिस थाने गईं, तो उन्हें वापस लौटा दिया गया.  बरखा के पति उस वक्त 3 फरवरी तक लापता थे, जब उन्होंने ललितपुर जिला पुलिस अधीक्षक को बलात्कार और अपहरण की जांच के लिए पत्र लिखा था. अपने पत्र में, बरखा ने शिकायत की थी कि पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया क्योंकि मुख्य आरोपी तत्कालीन सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का स्थानीय नेता था.  लेकिन जब यह पत्र लिखने से भी कुछ हासिल नहीं हुआ, तो बरखा ने गैर-सरकारी संगठन जन साहस की मदद से अदालत का दरवाजा खटखटाया.

6 फरवरी को बरखा ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें अदालत से अनुरोध किया गया कि वह पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और मामले की जांच करने का आदेश दे.    बरखा के पति गायब होने के 10 दिन बाद लौट आए. 2 मार्च को अदालत ने पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने और बलात्कार, आपराधिक धमकी, जबरन घुसने, स्वेच्छापूर्वक नुकसान पहुंचाने और अत्याचार रोकथाम अधिनियम के तहत अपराधों के आरोपों की जांच करने का आदेश दिया. अदालत के आदेश के बाद भी पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में आठ महीने 6 फरवरी को बरखा ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें अदालत से अनुरोध किया गया कि वह पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और मामले की जांच करने का आदेश दे.  बरखा के पति गायब होने के 10 दिन बाद लौट आए. 2 मार्च को अदालत ने पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने और बलात्कार, आपराधिक धमकी, जबरन घुसने, स्वेच्छापूर्वक नुकसान पहुंचाने और अत्याचार रोकथाम अधिनियम के तहत अपराधों के आरोपों की जांच करने का आदेश दिया. अदालत के आदेश के बाद भी पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में आठ महीने लग गए.  इस बीच, बरखा का गर्भपात हो गया जिसने बताया कि बलात्कार के समय वह गर्भवती थी. यह रिपोर्ट लिखे जाने तक, हालाँकि पुलिस द्वारा प्राथमिकी दायर किए महीनों बीत गए, परिवार का मानना है कि जांच औपचारिक रूप से चल रही है क्योंकि उनके पास क्लोजर रिपोर्ट या अंतिम चार्जशीट के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

 

काजल, मध्य प्रदेश

14 सितंबर, 2015 को, नीमच जिले की 23 वर्षीय विवाहित महिला काजल अपनी बीमार मां का भोजन लाने के लिए पास के गांव के एक परिचित पुरुष के वाहन पर सवार होकर गईं. काजल ने बताया कि उस आदमी और उसके दो दोस्तों ने उनका बलात्कार किया और उन्हें सड़क के किनारे छोड़ दिया.  उसकी चीख सुनकर सड़क से गुजरने वाले एक व्यक्ति ने उसके पिता को सूचित किया, जो उसी दिन उसे  पुलिस के पास ले गए. पुलिस ने सामूहिक बलात्कार की शिकायत दर्ज की और उसे मेडिकल टेस्ट के ले गई. लेकिन पुलिस ने उसे एफआईआर की प्रति नहीं दी.

काजल के अनुसार, बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने के एक दिन बाद, पुलिस ने उसे पिता से उसे साथ लेकर थाने आने को कहा ताकि वे उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के लिए अदालत ले जा सकें. काजल ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि थाने पर पुलिस ने उसके  पिता को हिरासत में ले लिया और एक महिला पुलिसकर्मी उसे अकेले अदालत ले गई. वहां महिला पुलिसकर्मी के मोबाइल फोन पर कॉल आया और वह मजिस्ट्रेट के समक्ष काजल का बयान दर्ज कराए बिना उसे पुलिस स्टेशन वापस ले आई. काजल ने कहा कि पुलिस इसके बाद उसे उस स्थान पर ले गई जहां उसके साथ बलात्कार किया गया था और उसे अदालत में यह बयान देने के लिए कहा गया कि अपने पिता के कहने पर उसने बलात्कार की झूठी शिकायत दायर की थी. पुलिस ने उसे बात न मानने पर नशीली दवा देने और जेल भेजने की धमकी दी. काजल ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि पुलिस उसे वापस थाने ले गई और उससे कई सादे पन्नों पर हस्ताक्षर कराया, उसे थप्पड़ मारा और डंडे से पिटाई की. काजल ने कहा कि उसने डर से अदालत में यह झूठा बयान दिया कि उसने अपने पिता के कहने पर झूठा मुकदमा दायर किया था.

काजल ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि पुलिस ने उसके पिता को धमकी दी अगर उसने उस बयान पर हस्ताक्षर नहीं किया कि मैंने झूठी शिकायत दर्ज की थी तो उसे  झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया जायेगा.. पुलिस ने उसके पिता को भी पीटा और दो दिन तक उन्हें हिरासत में रखा.

राज्य के कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और राज्य मानवाधिकार आयोग को 26 सितंबर, 2015 को लिखे पत्र में काजल ने पुलिस की धमकी और पुलिस द्वारा उसके एवं उसके परिवार के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में विस्तार से बताया.   यह रिपोर्ट लिखे जाने तक पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू नहीं हुई थी.

दिसंबर 2015 में पुलिस ने एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि उसकी जांच से पता चला है कि काजल और उसके पिता ने मुख्य आरोपी के साथ जमीन विवाद के कारण झूठी शिकायत दर्ज की थी  हालांकि, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट क्लोजर रिपोर्ट से असहमत थे और उन्होंने जांच अधिकारी को अदालत में पेश होने के लिए कहा. काजल ने भी नवंबर 2016 में अदालत में गवाही दी, और कहा कि पुलिस ने उस पर झूठा बयान देने के लिए दवाब डाला था.

नोट: पीड़िताओं के नाम बदल दिये गये हैं

संस्था का परिचय

(ह्यूमन राइट्स वॉच पूरी दुनिया के लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है. हम उत्पीड़न की घटनाओं की पूरी निष्ठापूर्वक जांच-पड़ताल करते हैं, तथ्यों को व्यापक रूप से उद्घाटित करते हैं, और अधिकारों का सम्मान करने तथा न्याय सुनिश्चित करने हेतु सत्ता-संपन्न लोगों पर दवाब डालते हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच एक स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो मानव गरिमा को बनाए रखने के जीवंत आंदोलन का हिस्सा है और सबों के लिए मानवाधिकार के आन्दोलन को आगे बढ़ाता है.)

 

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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