मौलाना साद की धर्मान्धता और उपजे सवाल
- मेहजबीं
निजामुद्दीन की घटना के पीछे कितने सच हैं, कितने झूठ हैं, कैसे कोई जानेगा? कौन किसपर यक़ीन करेगा, गोदी मीडिया ने तो झोल बना दिया है। ख़ूब हिन्दू-मुस्लिम किया है इस घटना पर। कैसे इस घटना के पीछे का सच सामने आएगा? असली कसूरवार सामने आएगा? जमात में अनपढ़ लोग भी हैं मौलाना लोग भी हैं और हिन्दी, इंग्लिश, साइंस पढ़े लिखे डॉक्टर्स इंजीनियर प्रोफेसर अध्यापक भी। फिर कैसे लापरवाही हुई? क्यों महामारी में भी एक देश से दूसरे देश, एक शहर से दूसरे शहर यात्राएं हुई? जमातियों की कोरोना महामारी के फैलने के बाद हुई यात्राओं के लिए तब्लीग़ जमात के जिम्मेदार व्यक्तियों के साथ सभी देशों का प्रशासन भी जिम्मेदार है। अगर हर मुल्क़ का प्रशासन अपने सभी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर सख़्ती से जाँच करते तब कोरोना पॉजिटिव लोग, चाहे वे जमाती हों या ग़ैर जमाती, बिजनेसमैन हों या सेलिब्रिटी कैसे इधर उधर जाकर दूसरे लोगों को कोरोना पॉजिटिव करते? प्रशासनों ने ऐसा नहीं किया।
सभी जगह लापरवाही हुई हैं। वक़्त रहते मरकज के प्रमुख को अपने अनुयायियों को घर में रहने की अपील करनी चाहिए थी। पाकिस्तान के मौलाना तारीक़ जमील ने भी पाकिस्तान की अवाम से, नमाज़ियों से, जमातियों से घर में रहकर इबादत करने की अपील की थी। यहाँ भारत में भी लॉकडाउन लगने के बाद मस्जिदों में ऐलान कर घरों में रहकर नमाज़ पढ़ने के लिए कहा गया। मदरसे तो जनता कर्फ्यू से पहले ही बन्द हो गये थे। वहाँ के तलबा को वक़्त रहते घर भेज दिया गया था। मौलाना सज्जाद नौमानी ने भी लोगों से घरों में रहने की अपील की थी।
सिर्फ़ मौलाना साद ने अपनी हठ और धर्मान्धता दिखायी। उन्हें जनता कर्फ्यू का ऐलान होते ही जमातियों को घर में रहने की अपील करनी चाहिए थी, उन्होंने ऐसा नहीं किया। फिर जब अचानक लॉकडाउन लगा तो दूर-दूर से आए जमाती वहाँ फँस गये, तब उन्हें फिक्र हुई। उन्होंने जमातियों को वहाँ से निकालने के लिए पत्र लिखा। उनकी फिक्र वाजिब थी, मगर यही फिक्र उन्हें बहुत पहले करनी चाहिए थी। खैर जब वे सब जमाती वहाँ फँस ही गये तब प्रशासन को चाहिए था कि उन सबको वहाँ से निकालकर उनकी टेस्टिंग की जाती। जो पॉजिटिव होते उन्हें आईसोलेट बाकियों को भी क्वांरीटीन किया जाता या घर भेज दिया जाता। ऐसा ही विदेशियों के साथ भी किया जाता।
साथ ही इस लापरवाही के लिए मर्क़ज़ के प्रमुख को गिरफ्तार किया जाना चाहिए था, सारी जवाबदेही उन्हीं की है, उन्हीं का हुक्म ये सारे जमाती मानते हैं। उन्होंने जनता कर्फ्यू से कुछ दिन पहले और बाद में, जो भी ग़ैरजिम्मेदाराना, लापरवाही वाले नियम जमातियों को अपनाने के लिए कहे उसके लिए उनपर कारवाई होनी चाहिए, क्योंकि ये उनकी अपनी हठ थी, धर्मान्धता थी। क़ुर्आन तो यह कहता है कि जब कहीं पर वबा (महामारी) फैली हो तो सब अपने शहरों में, घरों में रहें , अपने शहर को न छोड़ें, जो जहाँ है वह वहीं रहे। फिर मौलाना साद ने कौन से दीन के तहत, मसाइल के तहत जमातियों को जनता कर्फ्यू में भी अपनी-अपनी मस्जिदों में तीन दिन का वक़्त लगाने के लिए कहा, और मस्जिदों को वीरान न करने के लिए कहा। कहा कि रोज 4/6 जमाती ड्यूटी बांधकर मस्जिद में रहें।
मौलाना साद पर तो सख्त कारवाई होनी चाहिए। इनसे तो बहुत से मुसलमान वैसे भी परेशान हैं। इनके बनाए नियम के मुताबिक, हर शख़्स को रोज जमात में 8 घण्टे देने चाहिए। जो शख़्स रोज़ जमात में आठ घण्टे देगा वो अपना निजी काम कब करेगा, कमाएगा कब? हर पन्द्रह दिन में मस्जिद में जोड़ करवाते हैं। जोड़ इस्तमें (तब्लीगी जमात का धार्मिक जमावड़ा) में तीन दिन के जमात के वक़्त में इस्तिमा के नाम पर करोड़ों रुपये बहाएँगे, कोरमा बिरयानी खाएँगे, बीवियों को खर्चा-पानी से तंग करेंगे, और उन्हें नाशुक्री कहेंगे। साल में दसियों बार किसी न किसी शहर में बड़ा इस्तिमा करवाते हैं, जिसमें तीन दिन में करोड़ों रुपये बहाए जाते हैं, ये सारा पैसा कौम की तालीम , स्वास्थ्य एवं रोजगार पर भी खर्च हो सकता है, लेकिन उधर इनका योगदान शून्य है। तब्लीग़ी जमात के प्रमुख के ऐसे सख़्त नियमों का पालन करने के चक्कर में ही जमातियों का ज़्यादा वक़्त खर्च होता है, नतीजा इनमें से 30%/40% तो बिल्कुल कामचोर बन गये हैं – काहिलवजूद, परिवार की तरफ़ से बीवी की तरफ़ से बिल्कुल ग़ैरजिम्मेदार।
एक और समझदारी की आवश्यकता – प्रकाश देवकुलिश
जो मुसलमान तब्लीग़ी जमात के अन्धभक्त हैं वे अन्धभक्ति ही दिखाएँगे इंसानियत की बात नहीं करेंगे, जिम्मेदारी की भी नहीं करेंगे, गोदी मीडिया को कोसकर तब्लीग़ी जमात मौलाना साद की बेवक़ूफी और ग़ैरजिम्मेदारी पर पर्दा डालते रहेंगे।
मौलाना साद को उम्र क़ैद होनी चाहिए। इस शख़्स ने भोले-भाले मुस्लिम लोगों को अपने जाल में फँसा कर उनकी प्रगतिशीलता समाप्त करके उन्हें कूढ़मग़ज़, बेवकूफ़, कामचोर और काहिल बनाया है और अपना अन्धभक्त बनाया है। कौनसा इसलाम है इनका, अलग ही अपने क़ायदे कानून बनाते हैं। मन तो करता है इनसे जाकर पूछूँ कि क़ुर्आन में कहाँ लिखा है, वबा में अपने शहर से दूसरे शहर जाया जाए सफ़र में? एक देश से दूसरे देश में जाया जाए सफ़र करने? जब दूसरे मुमालिक में वबा फैल चुकी थी तभी जमात के काम स्थगित क्यों नहीं किये? कौनसा ख़ुदा लापरवाही ग़ैरजिम्मेदारी कामचोरी से खुश होता है?
मीडिया में मर्क़ज़ का मामला अब सामने आया है, मैं बहुत पहले से डरी हुई थी, जब चीन का मामला चल रहा था जनवरी में, मैं तभी सोच रही थी कि तब्लीग़ वाले पूरी दुनिया में घूमते हैं, और अभी भी घूम रहे हैं चैन से नहीं बैठ रहे, जबकि क़ुर्आन में साफ है कि वबा के वक़्त जो जहाँ है वहीं रहे। तब ये तब्लीग़ वाले क्यों नहीं थमे घूमने से? इनकी वजह से सबको सुनना पड़ रहा है। और इन्होंने बहुत बड़ी तादाद में अपने अन्धभक्त अनुयायी बना लिए हैं। इन अन्धभक्तों को मरना मंजूर है मगर जमात की तब्लीग़ की मर्क़ज़ की लापरवाही की आलोचना सुनना पसन्द नहीं। गोदी मीडिया जिस तरह से इस न्यूज़ को हिन्दू-मुस्लिम बनाकर दिखा रहा है सही नहीं है। मगर तब्लीग़ी जमात के लोगों ने, तब्लीग़ के जिम्मेदार लोगों ने, मर्क़ज़ के प्रमुख मौलाना साद ने पिछले तीन महीनों में जो जहालत लापरवाही दिखायी है उसके लिए उन्हें माफ नहीं करना चाहिए, इनपर सख़्त कार्यवाही होनी चाहिए। लॉकडाउन खुलने के बाद भी इनपर सख़्ती ज़रूरी है जबतक बीमारी पूरी दुनिया में थम नहीं जाती।
कोरोना से भी बड़ा रोना है उसे कौमी रंग देना
मर्क़ज़ के प्रमुख मौलाना साद ने अपनी ग़लती, लापरवाही, हठ, धर्मान्धता और बेवक़ूफी से प्रशासन और गोदी मीडिया को हिन्दू – मुस्लिम करने का मौक़ा अपने हाथों से थाली में सजाकर दे दिया।
प्रशासन ने मर्क़ज़ वाली घटना को दूसरा रुख़ दे दिया, बजाए इसके की मौलाना साद को गिरफ्तार करती उनपर सख़्त कारवाई करती। गोदी मीडिया का इस्तेमाल करके इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बना दिया। हमेशा से तो भाजपा यही करती आयी है, बाँटने वाली राजनीति करती है। हिन्दू मुस्लिम करने के बजाए अस्पताल की सुविधाओं को दुरुस्त करने पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए, ज़्यादा से ज़्यादा टेस्टिंग करवानी चाहिए, जैसे बाक़ी देश भी कर रहे हैं, डॉक्टर्स को मास्क सेनीटाइजर, पीपीई उपलब्ध कराने चाहिए, हॉस्पिटल्स में वेंटीलेटर उपलब्ध करवाने चाहिए। मजदूरों के किसानों के लिए, बेरोजगार लोगों के लिए आर्थिक मदद के तौर पर बड़े कदम उठाने चाहिए। भयावह स्थिति हैं जिसपर गंभीरता से सोचना चाहिए। एक तरफ़ तो प्रशासन सब नागरिकों को एकजुट होकर कोरोना से लड़ने की अपील करती है, दूसरी तरफ़ गोदी मीडिया के द्वारा झूठे वीडियो दिखवाकर लोगों को बाँट रही है। इन झूठे विडियो को देखकर सभी नागरिक एक विशेष धर्म के लोगों से नाराज़ हो गये हैं, उनसे घृणा कर रहे हैं। गोदी मीडिया ने कोरोना महामारी का सारा ठीकरा जमातीयों पर फोड़ दिया है, जबकि ग़लतियाँ सबसे हुई हैं हो रही हैं, प्रशासन से भी नागरिकों से भी।
ये बर्तन चाटने वाली बाहर के देश के बोहरा लोगों का वीडियो दिखाकर क्यों ग़लत तरीके से लोगों का माइंडसेट किया जा रहा है, थूकने का वीडियो भी दूसरी घटना है जिसमें एक क़ैदी घर का खाना न मिलने पर पुलिस पर थूक रहा है, उसे भी झूठ बोलकर दिखाया जा रहा है। इतने भयावह दौर में भी मीडिया बाज नहीं आ रहा, जिम्मेदार पत्रकार इस भयावह स्थिति में तो कम से कम नागरिकों को जोड़ने का काम करते।
छद्म धर्मनिरपेक्षता और नागरिकता का सवाल
जब गोदी मीडिया ने इस घटना का इस्तेमाल हिन्दू-मुस्लिम करने के लिए किया झूठे विडियो दिखाये, कहीं और के विडियो जमाती बनाकर दिखाये, तो मुसलमान सोशल मीडिया पर इन ग़लत तरीक़े से दिखाए विडियोज़ का खण्डन करने में लग गये। प्रगतिशील और गम्भीर मुसलमान निषपक्षता से इस घटना को देख रहे हैं, और मौलाना साद की लापरवाही बेवक़ूफी की आलोचना भी कर रहे हैं। कुछ नहीं कर रहे इसका यह मतलब नहीं कि वे देशद्रोही हैं, लापरवाह हैं। बल्कि वे दूसरी ओर लग गये हैं, गोदी मीडिया के अन्धभक्तों से फेसबुक व्हाट्सएप पर बहस करने में लग गये हैं, गोदी मीडिया ने अच्छी तरह बैठा दी है कि भारत में कोरोना सिर्फ़ तब्लीग़ी जमात के लोगों ने साजिश करके फैलाया है, और मुसलमान उन विडियो की सच्चाई बताने में लगे हैं। जो तब्लीग़ी जमात के अन्धभक्त हैं वे तो मौलाना साद की ग़लती नहीं मानेंगे वे तो जमातियों पर जान छिड़कते हैं। और मोदी के अन्धभक्त भी थेथरई से नहीं मानेंगे।
मुसलमानों को भी निषपक्षता से इस घटना को देखना चाहिए, धर्मांधता में नहीं बहना चाहिए, और प्रशासन मीडिया को भी इस घटना की आलोचना रिपोर्टिंग निष्पक्षता से करनी चाहिए। जमाती भी इसी दुनिया और इसी देश का हिस्सा हैं, उनसे ग़लती हुई है लापरवाही भी हुई है उनके लिए नफरत घृणा न फैलाएँ। उनकी ग़लती की सजा दें उन्हें ताकि भविष्य में वे इबरत हासिल करें, जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाएँ। उन्हें देशद्रोही न बताएँ, धर्मान्धता बेवक़ूफी करवाती है। यह समय हिन्दू-मुस्लिम में लोगों को बाँटने का नहीं है।
स्वतन्त्र लेखिका मेहजबीं संस्मरण, लेख, टिप्पणी और फिल्म समीक्षा लिखती हैं|
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