भाजपा की सुसंगठित कीर्तन मंडली उन सभी 40 लाख लोगों को घुसपैठिया कहकर हल्ला मचाना शुरू कर दिया है जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिकता सूची में रह गये हैं। इनमें कई लाख हिंदू हैं, कई लाख आधार कार्ड-धारी हैं, कई लाख राशनकार्ड-धारी हैं, कई लाख के पास पंचायत के प्रमाणपत्र हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता के लिए पर्याप्त माना है, कई लाख ऐसे मुसलमान हैं जो सदियों से यहीं रह रहे हैं।
यही नहीं, एक स्कूल टीचर राष्ट्रीय नागरिकता सूची तैयार करने वाले 55,000 लोगों के दल में था लेकिन उसका ही नाम कट गया; बहुत-परिवारों में माता-पिता सूची में हैं, बच्चों के नाम नहीं हैं! कुछ लोग आसाम से बाहर नौकरी करते हैं, उनके नाम काट दिये गये हैं। ऐसी असंगतियाँ भरी पड़ी हैं।
खुद सूची तैयार करने वाले अधिकारी कह रहे हैं, भूल-चूक सुधारी जायेगी; चुनाव आयुक्त कह रहे हैं, मतदाता पहचान पत्र है तो वोट देने का अधिकार रहेगा—वोट नागरिक ही देते हैं, विदेशी और अनागरिक नहीं!
लेकिन भाजपा नेता सरकारी पदाधिकारियों से भी आगे बढ़-चढ़ कर दावा कर रहो हैं, राष्ट्रीय नागरिकता सूची सारे विदेशी घुसपैठियों को चुन-चुन कर निकाल बाहर करेगी! यह बयान किसी और का नहीं, तड़ीपार अमित शाह का है जो भाजपा-अध्यक्ष हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला कहते हैं, ऐसी बातें बचकानी हैं। सूची तैयार करने में ग़लतियाँ होती हैं। सुधार के लिए वक़्त दिया गया है, कई चरणों में सुधार होगा, तब अंतिम सूची निकलेगी; उसके बाद भी सुधार के क़ानूनी मौक़े होंगे। पूरी न्यायिक जाँच-पड़ताल के बाद ही तय होगा कि कौन घुसपैठिया है, कौन नहीं।
पर भाजपा का उद्देश्य साफ है। एक तो तार साल से लगातार हमलों द्वारा मुस्लिम विरोधी माहौल बनाया गया है, उसे राष्ट्रीय नागरिकता सूची के बहाने तेज़ किया जायेगा; दूसरे, तब तक 2019 के चुनाव के लिए ध्रुवीकरण जारी रहेगा ताकि अपने पापों से खोई हुई ज़मीन वापस पायी जा सके; और तीसरे, सबसे निंदनीय एवं संविधान-विरोधी क़दम यह है कि बाँग्लादेशी हिंदुओं को तो भारतीय नागरिकता दी जायेगी लेकिन मुसलमानों को, वे भारतीय हों तो भी, विदेशी घुसपैठिया बताकर संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया जायेगा।
यह उसी गृहयुद्ध की तैयारी है, जिसका सपना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सदा से देखता रहा है। मतिमूढ़ कीर्तन मंडली को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं। इस मंडली में सब के सब संघ कार्यकर्ता नहीं हैं। लेकिन निरंतर प्रचार-अफ़वाह से दिग्भ्रमित लोग भी हैं। चुनाव में जीत के लिए राष्ट्रीयता से यह खिलवाड़ बहुत महँगा पड़ेगा।