कोरोना से निकल रहा सामाजिक तनाव का जिन्न
धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह, हृदयहीन संसार का हृदय और आत्माहीन स्थितियों की आत्मा है। यह लोगों की अफीम है। : कार्ल मार्क्स
भारत में हर समस्या या घटना साम्प्रदायिक रंग ले ही लेती है। कुछ दिनों बाद समस्या खत्म हो जाती है, लोग घटनाओं से भी उबर जाते हैं, लेकिन इनकी आड़ में पनपा साम्प्रदायिक तनाव कई सालों तक देश की शान्ति पर आघात करता रहता है। आजादी के बाद से अबतक भारत की छाती पर हर घाव साम्प्रदायिकता की ही देन है। धर्म के प्रति कट्टरता इसकी सबसे बड़ी और शायद इकलौती वजह है।
कोरोना जैसी महामारी भी भारत में आकर लोगों को बांटती हुई नजर आ रही है। चीन के नाम से शुरू हुई कोरोना से जंग में अब मंदिर, मस्जिद के नाम आने लगे हैं। कोरोना से बचाव के बजाय हम एक-दूसरे को कोरोना के लिए जिम्मेदार ठहराने लगे हैं। सोशल मीडिया पर अलग तरह का तनाव दिखने लगा है। ऐसा लगने लगा है कि कोरोना के खिलाफ जंग में भारत रास्ता भटक चुका है।
तब्लीगी जमात के द्वारा दिल्ली के निजामउद्दीन में हुए आयोजन ने कोरोना से लड़ाई का रुख ही मोड़ दिया है। देश के लगभग सभी राज्यों से हो रहे मजदूरों के पलायन का मुद्दा तब्लीगी जमात का मुद्दा आने भर से गौण हो गया। जबकि दोनों से देश को समान खतरा है और दोनो पर बात होनी चाहिए थी। पूछा जाना चाहिए था कि क्या अन्य राज्यों से लौटे मजदूरों की जांच की गयी, क्या उन्हें क्वारंटीन किया गया, जैसा कि निर्देश दिया गया था? देखा जाना चाहिए कि पंचायत स्तर पर जितने आइसोलेशन वार्ड बनाने की बात हुई थी, उनमे से कितने वार्ड बने और उनकी स्थिति क्या है? यदि तब्लीगी जमात पर सारा ठीकरा फोड़कर हम उसे ही सारी बर्बादी की वजह मान रहे हैं और बाकी तैयारियों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो हम सबसे बड़ी गलती कर रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान लोगों के मन का जहर सोशल मीडिया पर नजर आ रहा है। ऐसे में ‘कोरोना जिहाद’ जैसे टि्वटर ट्रेंड से साम्प्रदायिकता की बू आती है। दूसरी ओर तब्लीगी जमात के चीफ मौलाना साद द्वारा कोरोना को साजिश बताना और यह कहना कि मस्जिद में मरने से जन्नत मिलेगी, भी इसी मानसिकता को बढ़ावा दे रही है। मुस्लिम समाज द्वारा इस बात का विरोध करने के बजाय जमात को डिफेंड करना भी ऐसा ही है। रूढ़ीवादिता और गैरजिम्मेदाराना रवैया हमें एक देश के बजाय सम्प्रदाय और कौम के रूप में खड़ा कर रहा है।
इधर मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा कोरोना को सीरियसली नहीं लेना, डॉक्टरों पर थूकना, मुहल्ले में आए डॉक्टरों पर पत्थर चलाना आदि की वजह धार्मिक अंधभक्ति है। अल्पसंख्यक समाज के बुद्धिजीवियों एवं नेताओं द्वारा इन बातों की पुरजोर निन्दा होनी चाहिए थी, जिससे लोगों मे पल रही साजिश की भ्रांति टूटती, पर ऐसा नहीं हो रहा है। आइसोलेशन में तथा क्वारंटीन में रखे तबलीगी जमात के लोगों द्वारा नर्सों के सामने अश्लीलता ऐसी घृणात्मक हरकत है, जिसके विरुद्ध हर कौम के लोगों की आवाज़ उथनी चाहिए थी, पर ऐसा नहीं हो रहा है, जो समझ से परे है। पूरा देश यह देख कर परेशान है कि एक खास समुदाय के लोगों द्वारा कोरोना से निजात पाने के सारे प्रयासों का हर जगह से विरोध हो रहा है। आखिर कारण क्या है?
निश्चित तौर पर ये स्थितियाँ चिन्ता में डाल रही हैं। निजामउद्दीन के मरकज में हुए आयोजन के बाद स्थितियाँ बिगड़ी हैं और आयोजन में सम्मलित कई लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। इस पर बात होनी ही चाहिए, लेकिन यह मानने में कोई गुरेज भी नहीं होना चाहिए कि हर रोज टीवी पर तब्लीगी जमात के नाम पर हो रही बहस आपको कई जरूरी सूचनाओं से वंचित कर रही हैं। इसमें मीडिया के अपने फायदे हैं और हमारा नुकसान है। एक बड़े मीडिया चैनल ने तब्लागी जमात को रिश्ता अलकायदा से भी जोड़ने की कोशिश की है।
पलायन के अलावा दो बड़ी चीजें जिसपर मीडिया बात नहीं कर रही, वह है स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए वेंटिलेशन बेड और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट के बिना इलाज कर रहे डॉक्टर। पीपीई की माँग कर रहे डॉक्टर अपनी आवाज सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं, जिस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इलाज के दौरान हजारों डॉक्टरों पर कोरोना का खतरा मंडरा रहा है। फटे हुए रेनकोट पहने डॉक्टरों की तस्वीर से ज्यादा शर्मिंदगी की बात क्या होगी? इनपर रिपोर्टिंग न के बराबर हो रही है।
लेकिन हम अपनी प्राथमिकताएं तय करने में असफल हैं। बड़ी चालाकी से पूरी बहस को एक ही जगह केंद्रित कर हमें अन्य जरूरी बातों से दूर रखा जा रहा है। हमें धर्म के नाम पर बहलाकर कोरोना के गम्भीर खतरे को झुठलाने की केशिश की जा रही है। भारत में साम्प्रदायिकता की जड़ें बेहद मजबूत हैं। आज जिस दिशा में चीजें जा रही हैं, आगे यह खतरनाक रूप ले सकता है। इस मसले का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू होते ही, लोगों का गुस्सा बाहर निकलेगा। निश्चित ही कोरोना की वजह से मरने वालों की संख्या में इजाफा होगा।इस इजाफे का ठीकरा किस किस के सिर फोड़ा जाएगा, कहना मुश्किल है। अभी से बनती हवा लोगों के गुस्से को क्या रूप देगी, यह अनुमान से परे है। क्या हम कोरोना से उबरने के पहले ही एक और तनाव की ओर बढ़ रहे हैं?
.