बच्चों को बचाने के वाले की बेटी पिता को नहीं पहचानती!
‘योगी जी ही बताएंगे कि क्या मुसलमान होने की वजह से दंडित किया गया?
– डॉ. कफील खान
(वर्तमान में जमानत पर बाहर गोरखपुर के बाल रोग चिकित्सक डॉ. कफील खान उस भयानक रात के बारे में सोनिया सरकार से बात करते हैं जिसने उनका जीवन बदल दिया)
जब मैं उनसे मिलती हूँ तो वे अपनी छोटी-सी बिटिया जबरीना के साथ खेलकर उसको फुसलाने की कोशिश कर रहे हैं। पहले वे उसे हवा में उछाल देते हैं, फिर वे उसे अपनी गोदी में खींच लेते हैं, उसे आगे-पीछे झुलाते हैं। लेकिन उसकी दिलचस्पी इस सबमें नहीं है, वह उनके संधि प्रस्ताव पर ध्यान नहीं देती और भाग जाती है।
जेल में 8 महीने गुजारने के बाद अभी-अभी वापस लौटे उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से 38 साल के बाल रोग विशेषज्ञ कफील खान कहते हैं कि ‘‘मेरी बेटी अब मुझे पहचान नहीं सकती।’’
पिछले सितंबर जब कफील को गिरफ्तार किया गया तो जबरीना मुश्किल से ग्यारह महीने की थी। वह तब घुटनों के बल चला करती थी जो अब चल, दौड़ और चढ़ सकती है। वह तब मुश्किल से ‘पापा’ कह सकती थी, अब वह पूरा वाक्य सुर के साथ बोल सकती है। कफील कहते हैं कि ‘‘एक बाल रोग चिकित्सक के रूप में मैं हमेंशा माँ-बाप से कहता हूँ कि आप अपने बच्चे के महत्वपूर्ण क्षणों को कभी हाथ से न जाने दें। लेकिन मैंने उसके सभी महत्वपूर्ण क्षणों को खो दिया है। मैं उसकी पहली सालगिरह भी नहीं मना सका।’’
गोरखपुर में बाबा राघव दास चिकित्सा महाविद्यालय (बीआरडीएमसी) में सहायक प्रोफेसर रहे कफील और अन्य आठ को 5 दिनों की अल्प अवधि में हुई कम से कम 60 बच्चों की मौत के लिए जबावदेह ठहराया गया था।
यह सब 10 अगस्त 2017 को शुरु हुआ था जब 68 लाख रुपये की अदायगी लंबित होने के कारण पुष्पा सेल्स एजेंसी ने सरकारी चिकित्सालय को ऑक्सीजन की आपूर्ति रोक दी। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि बीआरडीएमसी के प्रधानाचार्य राजीव मिश्रा, उत्तरप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ समेत प्राधिकारियों को यह कंपनी बकाये के भुगतान हेतु 14 अनुस्मारक भेज चुकी थी। लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया।
जब सायं 7.30 बजे अस्पताल में द्रव ऑक्सीजन की आपूर्ति समाप्त हो गई तो चिकित्सकों के व्हाट्स अप समूह पर एक चेतावनी जारी की गई। कफील छुट्टी पर थे किंतु यह संदेश पाकर वे अस्पताल की ओर दौड़ पड़े।
द्वार पर नियुक्त एक हथियारबंद सुरक्षा प्रहरी वाले उत्तरप्रदेश के बसंतपुर में स्थित अपने तीन मंजिले घर में जब कफील मेरे साथ उस दिन घटित घटनाओं में जाते हैं, तो वे दावा करते हैं कि उन्होंने बाल रोग चिकित्सा विभाग की अध्यक्षा महिमा मित्तल और मिश्रा को फोन किये थे लेकिन किसी ने जबाव नहीं दिया।
वे कहते हैं कि उन्होंने एक स्थानीय अस्पताल और स्थानीय एजेंसी से सिलेंडरों की व्यवस्था की – ‘‘अस्पताल में रात्रि 11.30 से देर रात्रि 1.30 तक बिल्कुल ऑक्सीजन नहीं थी। समयपूर्व जन्म या जापानी मस्तिष्क ज्वर के कारण हर रोज 12-13 बच्चे मर रहे थे। लेकिन 10 अगस्त को 30 शिशु मर गये। मैं इससे इनकार नहीं कर सकता कि इन मौतों का एक कारण था – ऑक्सीजन आपूर्ति का अचानक रुक जाना।’’
वे उस भयानक रात्रि की एक तस्वीर मुझे दिखाने के लिए अपना फोन उठाते हैं। अस्पताल की नवजात शिशु गहन देखभाल इकाई में चार जीवित शिशु एक मृत शिशु के साथ इकलौते वार्मर में तंग हालत में हैं। उच्च प्राधिकारियों को किये गये फोनों के स्क्रीन शॉट और स्थानीय विक्रेताओं से खरीदे गये ऑक्सीजन सिलेंडरों के कैश मेमो भी वे मुझे दिखाते हैं।
वे मुझसे बोले, ‘‘तुम हो डॉ. कफील ॽ तुमने खरीदे सिलेंडर ॽ तुम सोचते हो कि तुम एक हीरो हो ॽ मैं देख लूँगा तुम्हें …’’ उन्हें लगा कि मैंने मीडिया को अस्पताल की गड़बड़ के बारे में बताया है। वे याद करते हैं कि ‘‘उसी क्षण मेरा जीवन उलट-पुलट गया।’’
और इससे पहले कि वे कुछ जानते, कफील उद्धारक से खलनायक बन गया था। भ्रष्टाचार के आरोप उस पर जड़ दिये गये ; यह आरोप लगाया गया था कि वह निजी नर्सिंग होम चला रहा था और चिकित्सा महाविद्यालय के सिलेंडर इस नर्सिंग होम में खपा रहा था। उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना अंतर्गत बीआरडीएमसी में 100 बिस्तरों वाले तीव्र मस्तिष्क ज्वर सिंड्रोम वार्ड के नोडल अधिकारी के अपने पद से हटा दिया गया। शुभचिंतकों ने उन्हें चेतावनी दी कि वे किसी मुठभेड़ में मारे जा सकते हैं।
अपने प्राणों के डर से वे अगस्त 17 की रात्रि दिल्ली के लिए निकल गये और एक पखवाड़े तक अज्ञात स्थान पर रहे। उनके पहुँच से दूर होने के कारण पुलिस ने कथित रूप से उनके परिवार का उत्पीड़न किया। उनके बसंतपुर घर की बुजुर्ग सहायिका कफील की दाई भोजपुरी में बताती है कि कैसे पुलिस रात में अक्सर आती थी, घर पर जब कोई पुरुष सदस्य न था, तो कैसे वह दरवाजा खड़खड़ाती थी। जब उसने उन्हें अंदर नहीं आने दिया, तो उन्होंने बलपूर्वक घर में घुसकर घर को छान मारा।
1 सितंबर को विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने कफील के बड़े भाई अदील को लखनऊ में पकड़ लिया। यह महसूसते हुए कि चीजें बदतर हो सकती हैं, अदील ने अपने भाई से वापिस लौटने को कहा। कफील कहते हैं कि ‘‘मैंने 2 सितंबर को लखनऊ में एसटीएफ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।’’
पुलिस को सौंपने से पूर्व एसटीएफ उन्हें लखनऊ से 251 किमी दूर सहजनवा के सरकारी अतिथिगृह ले गया। वे कहते हैं कि ‘‘उन्होंने मेरे ऊपर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत अभियोग लगाने की धमकी दी। उस दिन ईद उल अधा था किंतु मुझे प्रार्थना तक करने की अनुमति नहीं दी गई।’’
यहाँ मैं उनसे पूछती हूँ कि क्या एक मुसलमान होने के कारण उन्हें बलि का बकरा बनाया गया था ; आदित्यनाथ सरकार का राजनीतिक झुकाव आखिरकार सबके लिए ज्ञात चीज है। वे रुकते हैं। उनकी थकी और उनींदी आँखें कुछ सेकंडों के लिए फर्श से जा लगती हैं। ‘‘जब मुहम्मद अखलाक कथित रूप से गौमांस जमा करके रखने के लिए मार दिया गया था और जब एक ट्रेन सीट पर बहस के दरमियान निरुद्देश्य लोगों ने जुनैद खान को मार दिया था, तो मैंने फेसबुक पर उनकी निंदा की थी। लेकिन जब यह मेरे साथ हुआ … ।’’ – वे अपना वाक्य पूरा नहीं करते।
एक दूसरी चुप्पी के बाद वे कहते हैं कि ‘‘योगी जी ही आपको बतायेंगे कि क्या मेरी मुसलिम पहचान मुझे दंडित करने का कारण थी। हाँ, एक बिंदु के बाद मैं सोचता था कि अगले पाँच सालों तक मैं बाहर निकलने में सक्षम नहीं हो पाऊँगा जब तक कि वे (आदित्यनाथ) वहाँ हैं।’’
कफील की बीबी शबिस्ता और अम्मी नुज़हत परवीन उसके मामले में अनुनय-विनय करने के लिए मुख्यमंत्री से मिली थी किंतु जो कुछ आदित्यनाथ ने प्रत्यक्षत: कहा, वह यही था कि – ‘‘न्याय किया जायेगा।’’
यह परिवार महीनों शांत रहा लेकिन जब 9 अप्रैल को पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भंडारी और 9 आरोपियों में से एक को जमानत मिल गई तो उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें कफील के मामले को शीघ्र निपटाने की जरूरत है। 18 अप्रैल को अपनी भूमिका को स्पष्ट करते हुए और न्याय की गुहार लगाते हुए कफील ने दस पृष्ठों का पत्र लिखा। उन्होंने लिखा ‘‘मैंने यह सोचते हुए अपने परिवार को अपमान और यंत्रणा से बचाने के लिए समर्पण किया कि जब मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, तो मुझे न्याय मिलना चाहिए।’’
कफील के परिवार ने राष्ट्रीय मीडिया को यह पत्र जारी कर दिया। उनके खिलाफ लगाये लापरवाही के आरोप को नकारते हुए एक सप्ताह बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा कफील को जमानत दे दी गई। कफील कहते हैं कि ‘‘अगस्त 10 की रात्रि से अगस्त 12 के बीच के उन 48 घंटों को मैं जेल के आठ महीनों से ज्यादा भयावह मानता हूँ। मैं अब बाहर हूँ, मेरी अम्मी को उसका बच्चा वापिस मिल गया है। किंतु उन माता-पिता को अपने बच्चे कभी वापिस नहीं मिल पायेंगे।’’
वास्तव में जिन परिवारों से मैंने बात की थी, उनमें से कुछ परिवार अब भी कफील को निर्दोष नहीं मानते। अस्पताल के कुछ कर्मचारियों का भी विश्वास है कि उसने जीवन बचाने के लिए कुछ नहीं किया। यह तय नहीं कि क्या कफील कभी उस अस्पताल में वापिस लौट पायेगें ; उनका निलंबन अब भी वापिस लिया जाना है। वे कहते हैं कि ‘‘अगर वे ससम्मान बुलाते हैं तो मैं वापिस लौट जाऊँगा। लेकिन मैं उनसे जुड़ने के लिए मरा नहीं जा रहा। मैंने बहुत ही ज्यादा अपमान और दुर्दशा झेली है।’’
उनकी योजना जापानी मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित बच्चों के लिए अस्पताल खोलने की है। गोरखपुर को एक अस्पताल की बहुत ज्यादा जरूरत है। ठीक अभी तो बीआरडीएमसी इकलौता ही है जो उत्तरप्रदेश, बिहार और नेपाल के रोगग्रस्त शिशुओं का उपचार करता है। आदित्यनाथ के चुनाव क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र निष्क्रिय हालत में हैं अत: पूरा दबाव इसी अस्पताल पर रहता है। अपनी नुकीली दाढ़ी के साथ कफील विश्वासपूर्वक वादा करते हैं कि ‘‘मेरा अस्पताल जरूरतमंदों का इलाज करेगा।’’
आठ महीनों में उनकी दाढ़ी सामान्य से ज्यादा बढ़ गई थी लेकिन दाढ़ी का नुकीलापन अब वापिस लौट आया है। वे सफेद कमीज, काली पतलून और चारखानेदार टाई में हैं। शायद दिन में पहले एक टेलीविज़न साक्षात्कार के लिए उन्होंने यह सजधज की थी। लगभग 10 किलो वज़न उनका घट गया है।
जेल में उन्हें पुस्तकों से सांत्वना मिली – केन फोलेट कृत ‘दि पिलर्स ऑफ दि अर्थ’, एस.जे. व्हिटकॉम्ब कृत दि वर्ल्ड नीवर एंड्स’ और रॉबिन शर्मा कृत ‘हू विल क्राइ व्हैन यू डाइ’। कफील कहते हैं कि ‘‘इनसे सीखा गया मेरा सबसे बड़ा सबक था कि मुझे किसी भी स्थिति से कभी नहीं भागना चाहिए।’’
हमारी बैठक में आगंतुकों से व्यवधान आता है। जब वे सच्चाई की अपनी यह परीक्षा उनके साथ साझा करते हैं तो मैं उनकी माँ के कमरे में प्रवेश करती हूँ। वे समाचा चैनलों को देखने में व्यस्त हैं। अपने बेटे के मामले से जुड़े कुछ समाचार सुनने की आशा लगाये इन महीनों वे टेलीविज़न से चिपकी रही हैं।वे शिकायत करती हैं कि उसकी गिरफ्तारी और रिहाई को छोड़कर उन्होंने उस पर कभी कुछ नहीं दिखाया।
कफील भी सोचते थे कि लोग उन्हें भूल चुके हैं। लेकिन उनकी रिहाई के दिन ‘डॉक्टर कफील हमारा हीरो है’ और ‘बधाइयाँ’ लिखे बैनरों के साथ सैकड़ों ने उनका अभिवादन किया। वे कहते हैं कि ‘‘मुझे लगा कि मैं दोषी नहीं रह गया हूँ।’’
आज मुसलिमों की माफी की रात्रि ‘शब-ए-बारात’ है। प्रार्थना के लिए उनके जाने से पूर्व मैं एक पारिवारिक तस्वीर के लिए उनसे अनुरोध करती हूँ। वे शबिस्ता के पास खड़े हो जाते हैं जो रसोई में बिरयानी बनाने में लगी हुई है। वे अनिच्छुक जबरीना को भी फोटो के फ्रेम में खींच लेते हैं। लेकिन कुछ ही सेकंडों में बच्ची उन्हें छोड़ मुख्य दरवाजे पर गाय को कुछ खिलाने के लिए दौड़ पड़ती है। शौक से उसे गौवंश को खिलाते देख मैं आश्चर्यचकित हूँ कि इस पर आदित्यनाथ क्या कहेंगे !
6 मई 2018 के दि टेलीग्राफ में डॉ. कफील खान के साथ सोनिया सरकार की बातचीत।