- डॉ. दीपक भास्कर
दिल्ली विश्वविद्यालय भारत के कुछ बचे विश्वविद्यालयों में से एक है जहां लगभग सुचारू रूप से पढ़ाई-लिखाई का काम हो रहा है। लेकिन इस विश्वविद्यालय को खत्म करने की साजिश सब तरफ से हो रही है।
DU के वाईस चांसलर (VC) साहब भी इसमें कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। 2015 से लेकर आजतक उन्होंने विश्वविद्यालय की रफ्तार को इतना धीमा कर दिया है कि पता ही नहीं चलता कि DU चल रहा है या कहीं रुका पड़ा है।
UGC रेगुलेशन को अडॉप्ट करने की अंतिम तारीख बीती जा रही है लेकिन उसे एजेंडा में रखा तक नहीं जा रहा है।
शिक्षकों ने चुनाव में AC मेंबर को चुना लेकिन लोकतांत्रिक बॉडी की मीटिंग तक नहीं हुई। बिना किसी मीटिंग के यह बॉडी दुबारा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है।
EC मीटिंग एक दो बार हुई भी तो बिना किसी ठोस काम किये। सभी केंद्र सरकार के कर्मियों को 7th पे मिल रहा है, एरियर मिल चुका है लेकिन DU में अभी तक इसका इन्तजार किया जा रहा है।
लाखों बेरोजगारों के 20 से 30 हजार रुपये नियुक्ति के नाम पर उगाह लिए गए, लेकिन नियुक्ति नहीं हुई और अब विज्ञापन लैप्स होने के कगार पर है।
VC साहब को शिक्षक की नियुक्ति से ज्यादा प्रिंसिपल की नियुक्ति की पड़ी है। DU को प्रिंसिपल मैनेज करने में सहायक होंगे लेकिन विश्विद्यालय में मैनेजमेंट से ज्यादा पढ़ाने-लिखाने की जरूरत है और उसके लिये शिक्षक की ज्यादा जरूरत है बजाय प्रिंसिपल के।
यूं कहें तो DU में एक अराजक माहौल है, कुछ भी हो नहीं रहा या कहें जो, जो चाह रहा है वो हो रहा है।
एक टीम तक का गठन नहीं हुआ और तीन साल बीत गए। ऐसे में DU कैसे चलेगा।
ADHOC शिक्षक अपनी सारी उम्मीदें छोड़ चुके हैं। वो सरकार से लड़े की VC से, इस उधेड़बुन में उन्होंने अपना भविष्य अंधकारमय कर लिया है।
HRA का रुपया आजतक नहीं मिला। वो पता नहीं किस लेटर का इन्तजार कर रहे हैं। कॉलेज को फरमान भेजने में तो रात दिन कुछ नहीं देखते लेकिन असली काम के लिए महीने-साल भी कम पड़ जाते हैं।
अब तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि या तो VC साहब विश्वविद्यालय को गति दें या फिर तीव्र गति से छोड़कर चले जाएं।
आप अच्छे शिक्षक रहे हैं, कुछ कीजिये वरना जाइये। बस भी कीजिये। हमने बहुत इन्तजार किया।
डॉ. दीपक भास्कर
दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलतराम कॉलेज में राजनीतिशास्त्र के सहायक प्रोफ़ेसर हैं.
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